भौगोलिक स्थलाकृति से जुड़े ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं व्याख्या - Topography GK Quiz (Set-2)

भौगोलिक स्थलाकृति (Topography) से सम्बंधित ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे एसएससी, बैंकिंग, रेलवे इत्यादि लिए महत्वपूर्ण है।

भौगोलिक स्थलाकृति

व्याख्या: रेगिस्तानी भागों में बरखानों की दो समानांतर श्रेणियों के मध्य रेत मुक्त गलियारा, जिससे होकर कारवाँ मार्ग आगे बढ़ते हैं, गासी कहलाता है।

व्याख्या: पवन द्वारा उडाई गई धूलो के निक्षेप से निर्मित जमाव को लोयस कहते हैं। लोयस का नामकरण फ्रांस के अलसस प्रान्त के लोयस नामक ग्राम के आधार पर किया गया हैं, क्योंकि यहाँ पर लोयस के समान ही मिट्टी का निक्षेप पाया जाता हैं।

व्याख्या: प्लाया या सैलनास झील – ये अस्थायी झीले होती है तथा पवन के अपरदन के कारण बनते है।

व्याख्या: लोएस मरुस्थलीय क्षेत्रों के बाहर पवन द्वारा उड़ाकर लाए गए धूल व मिट्टी के महीन कणों के वृहद जमाव को कहा जाता है। ये कण इतने महीन होते हैं कि, हवा इन्हें बहुत दूर तक उड़ा ले जाती है। लोएस के जमाव में अन्य अवसादी चट्टानों की भांति संस्तरों का पूर्णत: अभाव होता है। इस तरह के जमावों का 'लोएस' नाम जर्मनी के अल्सेस प्रांत में स्थित 'लोएस ग्राम' के नाम पर पड़ा है, जहां ऐसी सूक्ष्म मिट्टियों का निक्षेप प्रचुर मात्रा में मिलता है।

व्याख्या: बरखान (Barchan) अथवा बरखान स्तूप एक प्रकार के बालुका स्तूप हैं जिनकी आकृति अर्द्ध-चन्द्राकार होती है और अक्सर समूहों में पाए जाते हैं। ये ऐसे रेगिस्तानों में बनते हैं जहाँ पवन वर्ष भर एक ही दिशा से बहती है, इनका पवनानुवर्ती ढाल मंद और उत्तल होता है जबकि दूसरी तरफ़ का ढाल तेज होता है और अर्द्ध-चन्द्र के दोनों नुकीले हिस्से, जिन्हें स्तूप शृंग कहा जाता, पवन के बहाव की दिशा में आगे निकले हुए होते हैं।

व्याख्या: जब मरुस्थली भागो में कठोर चट्टानों के ऊपर कोमल संरचना वाली चट्टानें क्षेतिज रूप में बिछी होती हैं, तब कोमल चट्टानों को हवा शीघ्रता से काट देती हैं। चट्टानों में पाई जाने वाली नमी भी अपरदन का एक सहायक कारक बनती हैं। परिणामस्वरुप उनके बीच में पतली घाटियों का निर्माण हो जाता हैं। कठोर चाट्टानी भाग कोमल चट्टनों पर टोपी की तरह अवस्थित रहता हैं। ये ढक्कनदार दवात के समान होते हैं।

व्याख्या: गारा (Gara) स्थलाकृति मरुस्थलों में मिलती है।

व्याख्या: उत्तर रेगिस्तानीक्षेत्रों में जब ऊपर कठोर शैल और नीचे कोमल शैल लम्बवत रूप में मिलते हैं तो पवन के अपघर्षण से निर्मित विभिन्न प्रकार के स्थलरूप छत्रक शिला कहलाते हैं।

व्याख्या: बालसन – मरुस्थलीय प्रदेशो में पर्वतों से घिरी निम्न भूमि क्षेत्र को बेसिन या बालसन कहते है

व्याख्या: तापमान में तेज परिवर्तन होने से सायंकाल के समय तेज ऑधियाँ चलती हैं जिन्हें ‘धूल-दानव’ कहा जाता है। झुलसा देने वाली गर्म पवनों को सिमूम, शहाली, खमसिन और भारत में ‘लू’ कहा जाता है।

व्याख्या: हिमनद के निक्षेप द्वारा निर्मित स्थलरुपों में ड्रमलीन द्वारा निर्मित एक प्रकार के ढेर या टीले होते हैं, जिनका आकार उल्टी नाव या कटे हुए उल्टे अण्डे के समान होता हैं। हिमनद के मुख की ओर का भाग खडे ढाल वाला तथा खुरदरा होता हैं परन्तु दूसरा पाश्र्व मन्द ढाल वाला होता हैं।

व्याख्या: हिमनद के निक्षेप द्वारा निर्मित स्थलरुपों में ड्रमलीन गोलाश्म म्रतिका द्वारा निर्मित एक प्रकार के ढेर या टीले होते हैं, जिनका आकार उल्टी नाव या कटे हुए उल्टे अण्डे के समान होता हैं। हिमनद के मुख की ओर का भाग खडे ढाल वाला तथा खुरदरा होता हैं परन्तु दूसरा पाश्र्व मन्द ढाल वाला होता हैं।

व्याख्या: मेष शिला या भेड़ पीठ शैल Sheep Rocks- हिमानी की क्षयात्मक प्रक्रिया प्रणाली मुख्यतः शिलाखण्डों और शैलों को घिसने तथा उन्हें उखाड़कर अलग कर देने या दूर हटा देने की है। तली में जमे हुए रोड़े, कंकड़, पत्थर शैलों को रगड़ते तो हैं ही, साथ ही उन्हें खोखला तथा कहीं-कहीं घिसकर चमकाते भी जाते हैं। मार्ग की समतल और ऊबड़खाबड़ सभी शैलें इनकी रगड़ से घिसकर चिकनी हो जाती हैं।

इस प्रकार से धिसी हुई शैलों का रूप विचित्र हो जाता है, जिन्हें फ्रेंच भाषा में सुमार्जित टीला या मेष टीला (Roches moutonnees) कहते हैं। इनका आकार भेड़ों की पीठ की तरह होता है। इनके पिछले किनारों का ढाल मन्द और अगले किनारों का तेज होता है। अगला भाग किनारे पर टूटफूट होने के कारण सीढ़ीनुमा आकृति वाला हो जाता है।


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