हवाएं से सम्बंधित प्रश्न एवं व्याख्या - GK Quiz (Set-1)

पवन (Wind) से सम्बंधित ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे एसएससी, बैंकिंग, रेलवे इत्यादि लिए महत्वपूर्ण है।

पवन समान्य ज्ञान क्विज

व्याख्या: पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति में लगभग 5° से 30° डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर पृथ्वी के दोनों गोलाद्र्धे में वर्षभर निरंतर प्रवाहित होने वाली हवाओं को व्यापारिक पवन कहा जाता है। इन्हें अंग्रेजी में 'ट्रेड विंड्स' कहते हैं।

व्याख्या: दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से भूमध्यरेखिय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलाद्धों में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन (trade winds) कहा जाता हैं। ये पवन वर्ष भर एक ही दिशा में निरन्तर बहती हैं। सामान्यतः इस पवन को उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर से दक्षिण दिशा में तथा दक्षिण गोलार्द्ध में दक्षिण से उत्तरी दिशा में प्रवाहित होना चाहिए, किन्तु फेरेल के नियम एवं कोरोऑलिस बल के कारण ये उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं और तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। व्यापारिक पवन को पुरवाई पवन भी कहा जाता है।

व्याख्या: उपोष्ण उच्च दाब से भूमध्य निम्न दाब की ओर उत्तरी गोलार्ध में उत्तर पश्चिम एवं दक्षिण गोलार्ध में दक्षिण पश्चिम की ओर चलने वाली हवाओ को व्यापारिक पवन कहते है। चूंकि उस समय इन हवाओं के माध्यम से व्यापार संभव होता था इसलिये इन हवाओ को व्यापारिक पवन कहा जाने लगा।

व्याख्या: जो पवन वायुदाब के अक्षांशीय अन्तर के कारण वर्ष भर एक से दूसरे कटिबन्धकी ओर प्रवाहित होता रहता हैं उसे प्रचलित पवन या स्थायी पवन, निश्चित पवन, ग्रहीय पवन या सनातनी पवने भी भी कहा जाता हैं।

व्याख्या: उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत रेखीय निम्न दाब की ओर चलने वाली पवनें व्यापारिक पवनें कहलाती है।
पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति में लगभग 5° से 30°° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर पृथ्वी के दोनों गोलाद्र्धे में वर्षभर निरंतर प्रवाहित होने वाली हवाओं को व्यापारिक पवन कहा जाता है। इन्हें अंग्रेजी में 'ट्रेड विंड्स' कहते हैं।

व्याख्या: दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से भूमध्यरेखिय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलाद्धों में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन (trade winds) कहा जाता हैं

व्याख्या: पृथ्वी के दोनों गोलार्धो में उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबंधो से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटीबंधो की ओर बहने वाली स्थायी हवाओ को इनकी पश्चिम दिशा के कारण पछुआ पवन कहा जाता है। उत्तरी गोलार्ध में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर -पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर - पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है। पछुआ हवाओ का सर्वश्रेष्ठ विकास 40° से 65° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनो की गति अपेक्षाकृत तेज तथा दिशा निश्चित होती है। दक्षिणी गोलार्ध में इनकी प्रचंडता के कारण ही 40 से 50° दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें ' चीख़ती चालिस ' 50° दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाको में ' प्रचंड पचासा ' तथा 60° दक्षिणी अक्षांश के पास ' चीखती साठा ' कहा जाता है।

उत्तरी गोलार्ध में असमान उच्चदाब वाले विशाल स्थल खंड तथा वायुदाब के परिवर्तनशील मौसमी प्रारूप के कारण इस पवन का सामान्य पश्चिमी दिशा से प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है। ध्रुवो की ओर इन पवनो की सीमा काफी अस्थिर होती है, जो मौसम एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।

व्याख्या: पृथ्वी के दोनों गोलार्धो में उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबंधो से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटीबंधो की ओर बहने वाली स्थायी हवाओ को इनकी पश्चिम दिशा के कारण पछुआ पवन कहा जाता है। उत्तरी गोलार्ध में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर -पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर - पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है। पछुआ हवाओ का सर्वश्रेष्ठ विकास 40° से 65° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनो की गति अपेक्षाकृत तेज तथा दिशा निश्चित होती है। दक्षिणी गोलार्ध में इनकी प्रचंडता के कारण ही 40 से 50° दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें ' चीख़ती चालिस ' 50° दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाको में ' प्रचंड पचासा ' तथा 60° दक्षिणी अक्षांश के पास ' चीखती साठा ' कहा जाता है।

उत्तरी गोलार्ध में असमान उच्चदाब वाले विशाल स्थल खंड तथा वायुदाब के परिवर्तनशील मौसमी प्रारूप के कारण इस पवन का सामान्य पश्चिमी दिशा से प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है। ध्रुवो की ओर इन पवनो की सीमा काफी अस्थिर होती है, जो मौसम एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।

व्याख्या: मानसून' शब्द अरबी शब्द 'मौसम' से बना है और इसका अर्थ होता है हवा की दिशा में मौसमी बदलाव हिता है।भारत की सालाना बारिश में 73 फीसदी हिस्सा मॉनसून का है। सामान्य तौर पर यह 1 जून को केरल पहुंचता है पर इस बार इसके 3 दिन पहले दस्तक देने की उम्मीद है। दक्षिण–पश्चिम मानसून भारत में जून की शुरुआत में पहुंचता है और सितंबर तक रहता है। मानसून के समय ही भारत में सबसे अधिक वर्षा जल प्राप्त होता है। भारत में अर्थव्यवस्था की वृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावनाओं का पता लगाने में मानसून का आगमन और उसकी असमानता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत में वर्षा का वितरण असमान है, इसका मतलब है कि कहीं भारी सुखा पड़ा तो कहीं जानलेवा बाढ़ तक आई।हमारा देश का करीब 35% क्षेत्र वर्षा की कमी वाली श्रेणी में है, जबकि 35% क्षेत्र में सामान्य वर्षा वाला है।भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मॉनसून का काफी महत्व है। इससे सीधे तौर पर किसान प्रभावित होते हैं।

व्याख्या: चिनूक - यह स्थानीय हवा हैँ, संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट से प्रारम्भ होकर रॉकी पर्वत को पार करके उसके नीचे उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा, इसका औसत तापक्रम 40° फारेनहाइट/लगभग 4॰C अचानक तापक्रम कम होने पर बर्फ पिघलने लगती हैं,

व्याख्या: स्थानीय वायुदाब प्रवणता के कारण वायुमंडल अल्प्स पर्वत के दक्षिणी ढलानों पर चढती है।चढ़ते समय इन ढलानों पर कुछ वर्षो भी करती हैं।परन्तु पर्वतमाला को पार करने के बाद ये पवने गर्व पवनो का रूप में नीचे उतरती है।इनका तापमान 15° से - 20° से तक होता है। जिसके कारण यह पर्वत की हिम को पिघला देती हैं।इनसे चारागाह पशुओं के करने योग्य बन जातें हैं। और वहां की स्थानीय फसल अंगूरों को जल्दी पकने में सहायता मिलती है।

व्याख्या: अत्यधिक ठंडी पवन जो दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई अर्जेन्टाइना के घास के मैदानों और उरुग्वे तक पहुंचती है। यह पवन तापमान में भारी गिरावट लाने के साथ तूफान भी लाती है।

व्याख्या: नारवेस्टर: यह न्यूजीलैंड में उच्च पर्वतों से उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।


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