मेघ एवं वर्षण से सम्बंधित ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं उत्तर - Clouds GK Quiz (Set-1)

मेघ एवं वर्षण (Clouds and Precipitation) से सम्बंधित ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे एसएससी, बैंकिंग, रेलवे इत्यादि लिए महत्वपूर्ण है।

मेघ एवं वर्षण

व्याख्या: पक्षाभ मेघ (Cirrus): ये बादल बहुत ऊंचाई पर बनते हैं इनका रंग सफेद होता है और ये चिड़िया के पंख की भांति दिखते हैं इनकी ऊंचाई धरती से 8 से 11 कि. मी. (5 से 7 मील) तक होती है ये बर्फ के छोटे-छोटे कणों से मिलकर बनते हैं

व्याख्या: ये भी स्तरी बादल ही हैं। अंतर यह है, कि इनमें हाइग्रोस्कोपिक कणों की सांद्रता ज्यादा होती है, जिसके कारण इनका रंग धूसर होता है। हाइग्रोस्कोपिक कणों पर अत्यधिक संघनन के कारण ये वर्षा करने में समर्थ हो जाते हैं।

व्याख्या: ओक्टास मापनी का प्रयोग मेघाच्छादन की मात्रा मापने के लिए किया जाता है।

व्याख्या: नेफोमीटर से बादलों की दिशा एवं गति का माप लगाया जाता है।

व्याख्या: पक्षाभ मेघ (Cirrus) : ये बादल बहुत ऊंचाई पर बनते हैं l इनका रंग सफेद होता है और ये चिड़िया के पंख की भांति दिखते हैं l इनकी ऊंचाई धरती से 8 से 11 कि. मी. (5 से 7 मील) तक होती है l ये बर्फ के छोटे-छोटे कणों से मिलकर बनते हैं l

व्याख्या: पक्षाभ मेघ (Cirrus) - ये बादल बहुत ऊंचाई पर बनते हैं l इनका रंग सफेद होता है और ये चिड़िया के पंख की भांति दिखते हैं l इनकी ऊंचाई धरती से 8 से 11 कि. मी. (5 से 7 मील) तक होती है l ये बर्फ के छोटे-छोटे कणों से मिलकर बनते हैं l

व्याख्या: कपासी बादलों (Cumulus clouds) की उत्पत्ति वायु की संवहनीय धाराओं के कारण होती है जिसके कारण ये ऊर्ध्वाधर रूप से विकसित होते हैं। इनके कपास के ढेर जैसा दिखने के कारण यह नाम है। शीत वाताग्र पर ऐसे बादल, वायु के ऊर्ध्वाधर रूप से ऊपर उठने के कारण बन जाते हैं। इसी प्रकार भारत में किसी-किसी अत्यधिक गर्म दिन में, जलवाष्प युक्त हवा के सीधे ऊपर उठने से ऐसे बादल बन जाते हैं

व्याख्या: कपासी बादलों का ही एक प्रकार कपासी वर्षी बादल हैं जो बारिश भी करते हैं, वैसे सामान्य कपासी बादल साफ़ मौसम की सूचना देते हैं। साफ़ मौसम के बाद इनका दिखाना शीत वाताग्र के आने की सूचना होता है और थोड़ी देर बाद बारिश की भी। बारिश के बाद इनका दिखाना मौसम के साफ़ हो जाने की सूचना देता है। भारत में कपासी बादल सामान्य रूप से बारिश के गुजर जाने के बाद नीले आकाश में सफ़ेद रुई के गोलों जैसे दीखते हैं।

व्याख्या: कपासी वर्षा मेघ - उर्ध्वाधर विकास वाले मेघों के भारी समूह जिनके शिखर पर्वत अथवा टावर की भांति होते हैं, कपासी वर्षा मेघ कहलाते हैं। इसकी विशेषता इसके उपरी भाग का निहाई आकृति का होना है। इसके साथ भारी वर्षा, झंझा, तड़ित झंझा और कभी-कभी ओलों का गिरना भी जुड़ा हुआ है।

व्याख्या: बादल मौसम और होने वाली वर्षा की जानकारी देते हैं। आसमान में काफी ऊंचाई पर हिमकण वाले बादल तो बालों की लटें या घूंघट की तरह दीखते हैं। सीरस प्रकार के बादल होते हैं। ये बादल खराब मौसम का संकेत हैं। पतली-पतली तहों वाले सफेद दूधिया बादल, काफी ऊंचाई पर होने पर भी चौबीस घंटों से वर्षा देते हैं जिन्हें पक्षाभ-स्तरी (सिरोटस्ट्रेटस) बादल कहते हैं।

व्याख्या: इस क्षेत्र का वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा होता है। यह ऊंचाई पर मौजूद ठंडी ड्राई या शुष्क हवा को जमीन तक लाता है। इस दौरान सूरज की सीधी किरणें इस हवा की नमी को खत्म कर देती हैं और उसे बहुत तेज गर्म कर देती हैं। नतीजतन वहां बारिश नहीं हो पाती, जमीन शुष्क और गर्म हो जाती है और यह उष्ण या गर्म रेगिस्तान का रूप ले लेती है।

व्याख्या: किसी स्थान विशेष की वर्षा पर्वतों की दिशा पर निर्भर करती है

व्याख्या: प्रकार की वर्षा अधिकतर भूमध्यरेखीय प्रदेशों में प्राय: प्रति दिन होती है। भूमध्यरेखा पर अधिक गरमी पड़ने से समुद्रों से प्रचुर मात्रा में जलवाष्प बनकर वायु में मिला करता है; गरमी और वाष्प के कारण आर्द्र वायु हल्की होकर ऊपर उठती है और इसका स्थान ग्रहण करने के लिए अन्य हवाएँ आती रहती हैं। वायु ऊपर जाकर ठंडी होती है तथा फैलती है। वाष्प की मात्रा अधिक होने से ओसांक तक पहुंचने के लिए ताप को कम गिरना पड़ता है। अत: वाष्प शीघ्र जल का रूप ले लेता है और प्रति दिन प्राय: दो बजे के बाद घनघोर वर्षा होती है। इस वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं।

व्याख्या: दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब विपरीत दिशाओं से आकर मिलती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता हैं। इस वाताग्र के सहारे गर्म हवाएं ऊपर उठ जाती हैं तथा ठंडी हवाएं नीचे हो जाती हैं। इस तरह का चक्रवातीय वाताग्र प्रायः शीतोष्ण कटिबन्धों में बनता हैं जहां पर ध्रवीय ठंडी तथा भारी हवाएं (उ0 पू0) तथा गर्म, हल्की पछुवा हवाएं (द0 प0) मिलती हैं। इसके विपरीत भूमध्य रेखा के पास समान स्वाभाव वाली व्यापारिक हवाएं (परन्तु विपरीत दिशाओं वाली) के मिलने से भी वाताग्र का निर्माण होता हैं।

वास्तव में चक्रवात हवाओं का एक क्रम होता हैं, जिसके मध्य में निम्न दाब तथा परिधी की ओर उच्च दाब होता हैं, हवाएं बाहर से अन्दर की ओर चलती हैं। जब गर्म तथा ठंडी हवाएं आमने-सामने मिलती हैं तो कम घनत्ववाली हलकी हवा ज्यादा धनत्व तथा भारी ठंडी हवा के ऊपर उठने लगती हैं, परन्तु यहां पर हवा का ऊपर उठना संवाहनीय हवाओं की तरह ऊध्वार्धर न होकर तिरछे रूप में होता हैं। ऊपर की गर्म हवा स्थिर नही हो पाती तथा नीचे ठंडी हवा के कारण ठंडी होने जगती हैं और धीरे-धीरे उसका संघनन प्रारम्भ हो जाता हैं और इसके परिणामस्वरूप वर्षा होती है।

व्याख्या: पर्वतकृत वर्षा (Orographical rain) - वाष्प से भरी हवाओं के मार्ग में पर्वतों का अवरोध आने पर इन हवाओं को ऊपर उठना पड़ता है जिससे पर्वतों के ऊपर जमे हिम के प्रभाव से तथा हवा के फैलकर ठंडा होने के कारण हवा का वाष्प बूँदों के रूप में आकर धरातल पर बरस पड़ता है। ये हवाएँ पर्वत के दूसरी ओर मैदान में उतरते ही गरम हो जाती हैं और आसपास के वातावरण को भी गरम कर देती है। विश्व के अधिकतर भागों में इसी प्रकार की वर्षा होती है। मानसूनी प्रदेशों (भारत) में भी इसी प्रकार की वर्षा होती है। इस वर्षा को पर्वतकृत वर्षा कहते हैं।


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