भौगोलिक स्थलाकृति से जुड़े ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं व्याख्या - Topography GK Quiz (Set-3)

भौगोलिक स्थलाकृति (Topography) से सम्बंधित ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे एसएससी, बैंकिंग, रेलवे इत्यादि लिए महत्वपूर्ण है।

भौगोलिक स्थलाकृति

व्याख्या: मेष शिला या भेड़ पीठ शैल Sheep Rocks- हिमानी की क्षयात्मक प्रक्रिया प्रणाली मुख्यतः शिलाखण्डों और शैलों को घिसने तथा उन्हें उखाड़कर अलग कर देने या दूर हटा देने की है। तली में जमे हुए रोड़े, कंकड़, पत्थर शैलों को रगड़ते तो हैं ही, साथ ही उन्हें खोखला तथा कहीं-कहीं घिसकर चमकाते भी जाते हैं। मार्ग की समतल और ऊबड़खाबड़ सभी शैलें इनकी रगड़ से घिसकर चिकनी हो जाती हैं।

इस प्रकार से धिसी हुई शैलों का रूप विचित्र हो जाता है, जिन्हें फ्रेंच भाषा में सुमार्जित टीला या मेष टीला (Roches moutonnees) कहते हैं। इनका आकार भेड़ों की पीठ की तरह होता है। इनके पिछले किनारों का ढाल मन्द और अगले किनारों का तेज होता है। अगला भाग किनारे पर टूटफूट होने के कारण सीढ़ीनुमा आकृति वाला हो जाता है।

व्याख्या: U- आकार और लटकती घाटियाँ U-shaped and Hanging Valleys- हिमानी द्वारा घाटियों की रचना नहीं होती, परन्तु पुरानी घाटियों का रूप परिवर्तन अवश्य होता है। ज्यों-ज्यों हिमानी घाटी में आगे बढ़ती है त्योंत्यों शैलें घिसती जाती हैं और शैल बाहुओं के अग्र भाग एवं तीव्र धारें घिस-घिसकर चिकनी और सीधी हो जाती हैं।

V-आकार की घाटियाँ (जो जलधारा की प्रक्रिया से बनी थीं) U-आकार में बदल जाती हैं। इन्हें U- आकार की घाटी कहते हैं। इनमें हिमानी बिना रुकावट बहती रहती है। शैल बाहुओं के घिस जाने से उनके बीच की सहायक नदियों की घाटी का रूप भी बदल जाता है। इन सहायक नदियों की घाटियों के मुख हिमानी द्वारा घर्षण के फलस्वरूप घिसते और पीछे हटते जाते हैं, परन्तु इनमें बहने वाली नदी इतनी शीघ्रता से अपना नितल गहरा नहीं कर पाती।

अत: धीरे-धीरे सहायक नदी के प्रवेश द्वारा ढाल नष्ट हो जाता है और नदी को ऊँचाई से एकदम मुख्य घाटी में गिरना पड़ता है। जब हिमानी नष्ट हो जाती है तब उन लटकती हुई नदियों का जल झरने के रूप में बहता है। इस प्रकार की घाटियों को लटकती हुई घाटियाँ कहते हैं। इस प्रकार घाटियां स्विट्जरलैण्ड, नावें और अलास्का में पायी जाती हैं।

व्याख्या: शीत प्रधान प्रदेशों, ऊंचे अक्षांशों में स्थित क्षेत्रों अथवा समुद्रतट से अधिक ऊँचाई पर स्थित पहाड़ी प्रदेशों में वर्षा प्रायः हिम के रूप में होती है। शीतकाल में पड़ी हिम ग्रीष्म ऋतु में भी नहीं पिघल पाती। अतः प्रतिवर्ष हिमराशि में निरन्तर वृद्धि होती जाती है और इन प्रदेशों में वर्ष भर हिम जमा रहता है और वहां हिम क्षेत्र (Snow fields) बनते जाते हैं। प्रो. सेलिसबरी और चेम्बरलेन (Chamberlain) के अनुसार, “भूमण्डल के अवशिष्ट ऐसे हिमक्षेत्रों में लगभग 41 लाख घन किलोमीटर हिम संचित है। यदि वह समस्त राशि पिघलने लगे तो समुद्र का तल वर्तमान से 27 मीटर ऊँचा उठ जाएगा।”

अभी भी ग्रीनलैण्ड का 16 लाख वर्ग किलोमीटर और अण्टार्कटिका महाद्वीप का लगभग 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सैकड़ों मीटर मोटे हिम आवरण से ढका है।

व्याख्या: हिमानी या हिमनद (अंग्रेज़ी Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है।

व्याख्या: लटकती घाटियों की रचना उस समय होती है, जब हिमानी की मुख्य घाटी में मिलने वाली सहायक हिमानियों की घाटियों का तल उसकी अपेक्षा काफी ऊंचा दिखाई देता हैं और ये सहायक घाटियां मुख्य घाटी पर लटकती सी दिखायी देती हैं। लटकती घाटियों का निर्माण मुख्य घाटी एवं सहायक घाटियों की अपरदन क्रिया में विभिन्न्ता के कारण होता हैं।

व्याख्या: हिमनद के निक्षेप द्वारा निर्मित स्थलरुपों में ड्रमलीन द्वारा निर्मित एक प्रकार के ढेर या टीले होते हैं, जिनका आकार उल्टी नाव या कटे हुए उल्टे अण्डे के समान होता हैं। हिमनद के मुख की ओर का भाग खडे ढाल वाला तथा खुरदरा होता हैं परन्तु दूसरा पाश्र्व मन्द ढाल वाला होता हैं।

व्याख्या: यू आकार की घाटी का निर्माण हिमनदों द्वारा होता है और इसका नामकरण अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर U के आधार पर हुआ है , जिससे इस घाटी की आकृति मिलती है पर्वतीय भागों में हिमानियों द्वारा बनायी घाटियाँ पार्श्ववर्ती और तली अपरदन के कारण सपाट तल वाली तथा चौरस खुली हुई होती हैं।

व्याख्या: यू आकार की घाटी का निर्माण हिमनदों द्वारा होता है और इसका नामकरण अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर “U” के आधार पर हुआ है जिससे इस घाटी की आकृति मिलती है। पर्वतीय भागों में हिमानियों द्वारा बनायी गयी घाटियां पार्श्ववर्ती और तली अपरदन के कारण सपाट तल वाली तथा चौरस खुली हुई होती हैं। अपरदन के कारण इनके दोनों किनारे काफी समानान्तर एव अन्नतोदर ढाल वाले बन जाते हैं।

व्याख्या: हिमनद के निक्षेप द्वारा निर्मित स्थलरुपों में ड्रमलीन गोलाश्म म्रतिका द्वारा निर्मित एक प्रकार के ढेर या टीले होते हैं, जिनका आकार उल्टी नाव या कटे हुए उल्टे अण्डे के समान होता हैं। हिमनद के मुख की ओर का भाग खडे ढाल वाला तथा खुरदरा होता हैं परन्तु दूसरा पाश्र्व मन्द ढाल वाला होता हैं।

व्याख्या: महाखड्ड' या गार्ज 'वी” आकार की घाटी का ही विशिष्ट रूप हैं। इसके पार्श्व तीव्र तथा खडी दीवार के समान होते हैं। इनकि रचना प्रायः कठोर शैलों युक्त क्षेत्र में होती हैं। हिमालय में सिन्धु, सतलुज व ब्रह्म्पुत्र नदियो के महाखड्ड (गार्ज) प्रमुख हैं।

व्याख्या: कार्स्ट स्थलाकृतियाँ (Karst topography) सामान्यतः घुलनशील चट्टानों वाले क्षेत्रों में जल की क्रिया द्वारा बनी स्थलाकृतियाँ हैं। इनका नामकरण यूगोस्लाविया के कार्स्ट प्रदेश के आधार पर हुआ है जहाँ ये स्थलरूप बहुतायत से पाए जाते हैं। भारत में ऐसी स्थलाकृतियाँ रीवाँ के पठार, राँची पठार और चित्रकूट के पास पायी जाती हैं।

व्याख्या: पिंगो (अंग्रेज़ी:Pingo) एक परिहिमानी स्थलरूप है जो एक ऐसे टीले के रूप में आर्कटिक और उप-आर्कटिक प्रदेशों में पाया जाता है जिसके केन्द्र में बर्फ़ का एक केन्द्रक होता है और इसके ऊपर चट्टानी पदार्थों की परत द्वारा टीले का निर्माण हुआ होता है। इसकी ऊंचाई और आकार मे वृद्धि होने का कारण इसके केन्द्रक में स्थित बरफ के आयतन में वृद्धि होती है।

व्याख्या: भूविज्ञान में फ़्योर्ड (fjord, fiord) सागर से जुड़ी हुई एक प्रवेशिका (पतली खाड़ी) होती है जिसके किनारों पर तीखी ढलानों वाली ऊँची चट्टाने या पहाड़ियाँ हों। आमतौर पर इनका निर्माण हिमानियों (ग्लेशियर) द्वारा मार्ग काटने से हुआ होता है।

व्याख्या: कार्स्ट स्थलाकृतियाँ (Karst topography) सामान्यतः घुलनशील चट्टानों वाले क्षेत्रों में जल की क्रिया द्वारा बनी स्थलाकृतियाँ हैं। इनका नामकरण यूगोस्लाविया के कार्स्ट प्रदेश के आधार पर हुआ है जहाँ ये स्थलरूप बहुतायत से पाए जाते हैं। भारत में ऐसी स्थलाकृतियाँ रीवाँ के पठार, राँची पठार और चित्रकूट के पास पायी जाती हैं। गुप्तधाम कन्दरा एक ऐसी ही गुफा है जो कार्स्ट प्रक्रमों द्वारा निर्मित है। भारत में कार्स्ट स्थलाकृति का प्रभाव बस्तियों के बनने और उनके प्रतिरूप पर भी पड़ा है

व्याख्या: कार्स्ट कलाकृति, गुलिन (चीन) कार्स्ट स्थलाकृतियाँ (Karst topography) सामान्यतः घुलनशील चट्टानों वाले क्षेत्रों में जल की क्रिया द्वारा बनी स्थलाकृतियाँ हैं। इनका नामकरण यूगोस्लाविया के कार्स्ट प्रदेश के आधार पर हुआ है जहाँ ये स्थलरूप बहुतायत से पाए जाते हैं। भारत में ऐसी स्थलाकृतियाँ रीवाँ के पठार, राँची पठार और चित्रकूट के पास पायी जाती हैं। गुप्तधाम कन्दरा एक ऐसी ही गुफा है जो कार्स्ट प्रक्रमों द्वारा निर्मित है। भारत में कार्स्ट स्थलाकृति का प्रभाव बस्तियों के बनने और उनके प्रतिरूप पर भी पड़ा है

व्याख्या: घोल रंध्र - भूमि के धंसने से जमीन पर बना एक गड्ढा, रंध्र या छेद है। यह ज्यादातर कार्स्ट प्रक्रियाओं के कारण बनते हैं- उदाहरण के लिए, कार्बोनेट चट्टानों के रासायनिक विघटन से। घोल रंध्रों का आकार व्यास और गहराई दोनों में 1 से लेकर 600 मीटर (3.3 से 2,000 फीट) तक हो सकता है। घोल रंध्र धीरे-धीरे या फिर अचानक बन सकते हैं, और ये दुनिया भर में पाए जाते हैं।


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