19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव प्रश्न - GK Quiz (Set-5)

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। 19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 5)

व्याख्या: फरायजी विद्रोह बंगाल के फरीदपुर नामक स्थान से शुरू हुआ। फरायजी सम्प्रदाय का प्रवर्तन शरीयतुल्ला ने किया था। शरीयतुल्ला के पुत्र दादू मियाँ ने अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकलने तथा जमींदारों के अत्याचार को समाप्त करने के लिए 1838 में विद्रोह किया।

यह विद्रोह 1857 तक चला, किन्तु सक्रिय नेतृत्व के अभाव में समाप्त हो गया तथा बाद में इस सम्प्रदाय के लोग वहाबी आन्दोलन से जुड़ गये।

व्याख्या: "राजा राममोहन राय-आदिब्रह्म समाज" सुमेलित नहीं है। राजा राममोहन राय ने 1828 ई. में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी, जबकि देवेन्द्र नाथ टैगोर ने आदिब्रह्म समाज की स्थापना 1866 ई. में की थी।

व्याख्या: स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप में पुन: स्थापना करना था। स्वामी जी के आर्थिक विचारों में स्वदेशी का बहुत महत्त्व था। राजनैतिक क्षेत्र में वह कहते थे कि बुरे से बुरा देशी राज्य, अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा है।

उनकी इस शिक्षा के फलस्वरूप उनके अनुयायियों में स्वदेशी और देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी। भारत के सामजिक इतिहास में वह पहले सुधारक थे, जिन्होंने शूद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने तथा ऊंची शिक्षा प्राप्त करने, यज्ञोपवीत धारण करने तथा अन्य सभी प्रकार से ऊंची जाति तथा पुरुषों के बराबर के अधिकार प्रपात करने के लिए आन्दोलन किया। इन्हें भारत का मार्टिन लूथर किंग भी कहा जाता है।

इनके द्वारा नारा दिया गया कि भारत भारतीयों के लिए है। सर्वप्रथम स्वराज शब्द का प्रयोग इनके द्वारा किया गया और इन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा माना। इन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

व्याख्या: दयानन्द सरस्वती वेदों को भारत के आधार स्तम्भ के रूप में देखते थे। उन्होंने 'वेदों की ओर लौटों' तथा 'वेद ही समग्र ज्ञान के स्त्रोत हैं' का नारा दिया। इन्होंने 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की जिसने छुआछुत, मूर्तिपूजा, पशु बलि आदि धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया।

व्याख्या: आर्य समाज का एक लक्ष्य यह था कि हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन न होने दिया जाए। इसके कारण अन्य धर्मों के प्रति जेहाद शुरू हो गया। आर्य समाज ने धर्म परिवर्तित हुए हिन्दुओं के लिए 'शुद्धि' 'मुक्ति' आन्दोलन चलाया।

जिसमें अन्य धर्म में दीक्षित हुए हिन्दुओं पुन: हिन्दू धर्म ग्रहण कराने के लिए उनका 'शुद्धि' संस्कार कराया गया। इस शुद्धि संस्कार के कारण भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला। जिससे हिन्दू और मुस्लिमों के बीच की खाई बढ़ती गयी।

व्याख्या: प्रार्थना समाज की स्थापना वर्ष 1867 ई. में बम्बई में आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डॉ. आत्माराम पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा की गई थी। जी.आर. भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। प्रार्थना समाज का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा-विवाह, स्त्री शिक्षा आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना था।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने 1 मई, 1897 ई. में की थी। उनका उद्देश्य ऐसे साधुओं और सन्न्यासियों को संगठित करना था, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखें, उनके उपदेशों को जनसाधारण तक पहुँचा सकें और संतप्त, दु:खी एवं पीड़ित मानव जाति की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें।

सत्यशोधक समाज वर्ष 1875 में ज्योतिबा गोविंदराव फुले द्वारा शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणवाद और उसकी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाना था। इन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकाण्डों, पुजारियों के वर्चस्व, कर्म, पुनर्जन्म और स्वर्ग के सिद्धांतों का विरोध किया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मूल रूप से सर सैयद अहमद खान द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना 1875 में हुई थी। 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम के बाद मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।

व्याख्या: भारतीय पुनर्जागरण आन्दोलन के पिता राजा राममोहन राय थे। इन्होंने भारतीय समाज की रूढ़िवादी प्रथाओं का विरोध किया। यूरोपीय पुनर्जागरण और प्रबोधन के विचारों जैसे स्वतंत्रता, समानता, बन्धुत्व और मानवाधिकारों के समर्थक थे। इसी क्रम में उनहोंने आत्मीय सभा (1815) और ब्रह्म सभा (1828) की स्थापना की थी।

व्याख्या: स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप में पुन: स्थापना करना था। स्वामी जी के आर्थिक विचारों में स्वदेशी का बहुत महत्त्व था। राजनैतिक क्षेत्र में वह कहते थे कि बुरे से बुरा देशी राज्य, अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा है।

उनकी इस शिक्षा के फलस्वरूप उनके अनुयायियों में स्वदेशी और देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी। भारत के सामजिक इतिहास में वह पहले सुधारक थे, जिन्होंने शुद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने तथा ऊंची शिक्षा प्राप्त करने, यज्ञोपवीत धारण करने तथा अन्य सभी प्रकार से ऊंची जाति तथा पुरुषों के बराबर के अधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन किया।

इन्हें भारत का मार्टिन लूथर किंग भी कहा जाता है। इनके द्वारा नारा दिया गया कि भारत भारतीयों के लिए है। सर्वप्रथम स्वराज शब्द का प्रयोग इनके द्वारा किया गया और इन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा माना। इन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

व्याख्या: शिक्षित हिन्दू मध्यम वर्ग सर्वप्रथम पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हुआ। शिक्षित मध्यम वर्ग जब पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क में आया तो उन्होंने वहां के साहित्य, विज्ञान, संस्कृति आदि का अध्ययन किया, जिसका उन पर प्रभाव पड़ा। रूसो, मैकियावेली, टॉल्सटाय आदि की पुस्तकों का मध्यम वर्ग पर काफी प्रभाव पड़ा।

राजा राममोहन राय आदि जो पश्चिमी सभ्यता से काफी प्रभावित थे, भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि का समर्थन करने लगे। भारत में जनतांत्रिक संस्थाओं, स्वतंत्रता और समानता आदि मूल्यों के विकास के पीछे कुछ-हद तक पश्चिमी सभ्यता का हाथ है। शिक्षित मध्यम वर्ग भारत में पश्चिमी सभ्यता के समान जनतांत्रिक संस्थाओं की मांग करने लगे।

व्याख्या: सहजो बाई राजपुताना के एक प्रतिष्ठित धूसर (वैश्य) कबीले से ताल्लुक रखती थीं। उनके पिता का नाम हरिप्रसाद था। वे संत चरणदास जी (चरणासी संप्रदाय) की शिष्या थीं।

चरणदसी संप्रदाय के संस्थापक संत चरणदास थे। उनका जन्म 1703 ई. में मेवात क्षेत्र के देहरा नामक ग्राम में हुआ था। 1781 ई. में दिल्ली में उनका देहावसान हो गया। इस सम्प्रदाय में निःस्वार्थ प्रेम और सदाचार पर बल देते हुए गुरु भक्ति को ही मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया गया है।

व्याख्या: अलीगढ़ आन्दोलन का प्रवर्तक सर सैयद अहमद खां ने किया था। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों में पाश्चात्य शिक्षा एवं वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना था। सर सैयद अहमद खां चाहते थे कि मुस्लिम वर्ग पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण करके ही प्रशासन में अपना स्थान प्राप्त कर सकता है। इसके साथ ही सैयद अहमद खां ने इस्लाम में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध भी आवाज उठाई। सर सैयद अहमद खां शुरुआत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे, परन्तु अंग्रेजों को संरक्षणवादी नीति का अनुसरण करने के बाद वे मुस्लिम वर्ग के लिए कार्य करने लगे।

व्याख्या: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन एवं ब्रिटिश पक्षधर, अलीगढ़ आन्दोलन का विरोध करने वाला आन्दोलन 'देवबंद' आन्दोलन था। इस आन्दोलन की शुरुआत 1866 ई. में हुई थी।

व्याख्या: अहरार आन्दोलन की शुरुआत 1910 ई. के दशक में हुई थी। इससे जुड़े प्रमुख नेता थे - मुहम्मद अली, हकीम अजमल खां, हसन इमाम, जाफर अली खां, मजहरूल हक आदि।

व्याख्या: एनी बेसेंट को फेबियन आन्दोलन का प्रस्तावक माना जाता है। 1888-89 में फेबियन सोसाइटी के सदस्यों ने 700 से अधिक भाषण दिए। एनी बेसेंट, सिडनी वेब, बर्नाड शा, विलियम क्लार्क आदि द्वारा रचित फेबियन लेख नामक संग्रह 1889 में प्रकाशित हुआ था। इन्हीं सब के सहयोग के परिणामस्वरूप 1884 ई. में फेबियन सोसायटी की स्थापना हुई।

व्याख्या: 1905 ई. में पूना में गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत सेवक मंडल (Servants of India Society) की स्थापना की थी, इसका उद्देश्य भारत सेवा के लिए प्रचारकों को तैयार करना और संवैधानिक ढंग से भारतीय जनता के सच्चे हितों को प्रोत्साहन देना था। एम. सी. शीतलवाड़, बी. एन. राव तथा अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर इस संस्था के प्रख्यात सदस्य थे।


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