19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव प्रश्न - GK Quiz (Set-3)

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। 19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 3)

व्याख्या: देबेंद्रनाथ टैगोर ने 'तत्त्वबोधिनी सभा' ​​की स्थापना की। 6 अक्टूबर 1839 को, देबेंद्रनाथ टैगोर ने तत्त्वरंजिनी सभा की स्थापना की, जिसे शीघ्र ही तत्त्वबोधिनी ('सत्य-साधक') सभा का नाम दिया गया।

देबेंद्रनाथ टैगोर एक हिंदू दार्शनिक और धार्मिक सुधारक थे। ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय और देबेंद्रनाथ टैगोर ने की थी। 1859 में, तत्त्वबोधिनी सभा को देवेंद्रनाथ टैगोर द्वारा ब्रह्म समाज में वापस भंग कर दिया गया था।

  • राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है।

व्याख्या: तत्वबोधिनी सभा की स्थापना देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता में 6 अक्टूबर, 1839 को की थी। इस सभा का उद्देश्य धार्मिक विषयों पर चिन्तन तथा उपनिषदों के सार का प्रसार करना था। आरम्भ में इसका नाम 'तत्त्वरंजिनी सभा' था और यह ब्रह्म समाज से टूटकर अलग हुए कुछ लोगों द्वारा स्थापित एक संघ था। बाद में इसका नाम तत्त्वबोधिनी सभा कर दिया गया। 1859 में पुनः इस सभा का विलय ब्रह्म समाज में कर दिया गया।

व्याख्या: हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 में पारित किया गया था। इस अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नियम के तहत भारत के सभी न्यायालयों में हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी बना दिया।

लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम का मसौदा तैयार किया गया था। यह अधिनियम लॉर्ड कैनिंग द्वारा 1856 में पारित किया गया था। लॉर्ड कैनिंग द्वारा हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को पहले वैध बनाया गया था।

हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम को 1829 में सती प्रथा के उन्मूलन के बाद पहला बड़ा सामाजिक सुधार कानून माना गया। भारतीय समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के सबसे प्रमुख प्रचारक थे

व्याख्या: महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज-सुधारक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था।

व्याख्या: वर्ष 1914 में श्रीराम वाजपेयी ने 'सेवा समिति ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' की स्थापना लॉर्ड बेडेन पावेल द्वारा इंग्लैण्ड में संगठित 'ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' के आधार पर की। इस सेवा समिति का उद्देश्य 'ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' का पूरा भारतीयकरण करना था। श्रीराम वाजपेयी को अपने इस कार्य और उद्देश्य में सफलता भी मिली थी।

व्याख्या: प्रार्थना समाज की स्थापना वर्ष 1867 ई. में बम्बई में आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डॉ. आत्माराम पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा की गई थी। जी.आर. भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे।

प्रार्थना समाज का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा-विवाह, स्त्री शिक्षा आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना था।

व्याख्या: राजा राम मोहन राय ने 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की, जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया। इसका मुख्य उद्देश्य शाश्वत भगवान की पूजा था।

यह पौरोहित्य, कर्मकांडों और बलिदानों के विरुद्ध था। यह प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों के पढ़ने पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था। यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और ज्ञानोदय का उदय हुआ जिसने परोक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।

यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह 1866 में दो में विभाजित हो गया, अर्थात् केशुब चंद्र सेन के नेतृत्व में भारत का ब्रह्म समाज, और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में आदि ब्रह्म समाज।

व्याख्या: हिन्दू कॉलेज भारत के कुछ सबसे पुराने व प्रसिद्ध महाविद्यालयों में से एक है। इसकी स्थापना 1899 में हुइ थी। यह दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। राजा राम मोहन राय ने डच घडी़साज डेविड हेयर के सहयोग से 1817 ई० में कलकत्ता में हिन्दू कालेज की स्थापना की।

व्याख्या: बंगाल में सामाजिक-धार्मिक सुधारों में अग्रणी 'आत्मीय सभा' वर्ष 1815 में राजाराम मोहन राय द्वारा कोलकाता में शुरू की गयी थी। इस सभा द्वारा दर्शन व सामाजिक सुधारों पर चर्चा की जाती है।

व्याख्या: ब्रह्मो समाज के विघटन और विघटन के बाद, साधारण ब्रह्मो समाज की स्थापना 1870 में आनंद मोहन बोस द्वारा की गई थी, रवींद्र नाथ टैगोर के पिता देवेंद्र नाथ टैगोर इस समाज से सक्रिय रूप से जुड़े थे। साधारण ब्रह्म समाज का मानना ​​था कि मृत्यु के बाद पुनर्जन्म एक प्राकृतिक क्रिया है।

व्याख्या: राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1774 ई. को बंगाल के हुगली ज़िले में स्थित 'राधा नगर' में हुआ था। इन्हें फ़ारसी, अरबी, संस्कृत जैसे प्राच्य भाषाओं एवं लैटिन, यूनानी, फ़्राँसीसी, अंग्रेज़ी, हिब्रू जैसी पाश्चात्य भाषाओं में निपुणता प्राप्त थी। पटना तथा वाराणसी में अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने 1803 ई. से 1814 ई. तक कम्पनी में नौकरी की।

राजा राममोहन राय ने एकेश्वरवाद में विश्वास व्यक्त करते हुए मूर्तिपूजा एवं अवतारवाद का विरोध किया। इन्होंने कर्म के सिद्धान्त तथा पुनर्जन्म पर कोई निश्चित मत नहीं व्यक्त किया। राजा राममोहन राय ने धर्म ग्रंथों को मानवीय अन्तरात्मा तथा तर्क के ऊपर नहीं माना।

राजा राममोहन राय के उपदेशों का सार ‘सर्वधर्म समभाव’ था। कालान्तर में देवेन्द्रनाथ टैगोर (1818-1905 ई.) ने ब्रह्मसमाज को आगे बढ़ाया और उन्होंने तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना की। इनके द्वारा ही केशवचन्द्र सेन को ब्रह्मसमाज का आचार्य नियुक्त किया गया।

केशवचन्द्र सेन (1834-1884 ई.) ने अपनी वाक्पटुता एवं उदारवादी दृष्टिकोण से इस आंदोलन को बल प्रदान किया। इनके ही प्रयासों के फलस्वरूप ब्रह्मसमाज की शाखाएँ उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं मद्रास में खोली गयी। केशवचन्द्र सेन का अत्यधिक उदारवादी दृष्टिकोण ही कालान्तर में ब्रह्मसमाज के विभाजन का कारण बना। 1865 ई. में देवेन्द्रनाथ ने केशवचन्द्र को ब्रह्मसमाज से बाहर निकाल दिया।

व्याख्या: इसे बाल विवाह निरोध अधिनियम, 1929 नामक दूसरा नाम दिया गया। बाल विवाह निरोध अधिनियम 28 सितंबर 1929 को पारित एक विधायी अधिनियम था।

इस अधिनियम में लड़कियों की विवाह योग्य आयु 14 वर्ष और लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई थी। इसके प्रायोजक हरबिलास सारदा के बाद इसे शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है।

व्याख्या: भारत में, जूरी बिल 1826 में पारित किया गया था। राजा राममोहन राय ने इसके खिलाफ याचिकाएँ भेजीं जिन पर हिंदुओं और मुसलमानों ने हस्ताक्षर किए थे।

इस विधेयक के अनुसार, प्रत्येक हिंदू या मुस्लिम, ईसाई न्यायविदों द्वारा परीक्षण के अधीन था। वे या तो यूरोपीय या भारतीय हो सकते हैं। जबकि गैर-ईसाई न्यायविदों द्वारा ईसाइयों को मुकदमे से छूट दी गई थी।

व्याख्या: देवबंद आन्दोलन की स्थापना 1866 में देवबंद (उ.प्र.) में हुई थी। उस समय उसे 'दार-उल-उलूम' कहा जाता था। मौलाना हुसैन महमूद इसके नेता थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद इससे जुड़े थे। उन्होंने 'अल-नदवाह' नामक पत्र का सम्पादन किया। चिराग अली अलीगढ आन्दोलन से सम्बद्ध थे। बदरूद्दीन तैयबजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे।

व्याख्या: शारदा देवी (अंग्रेज़ी: Sarada Devi, जन्म- 22 सितंबर, 1853; मृत्यु- 20 जुलाई, 1920) रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी थीं। 6 वर्ष की शारदामणि का 23 वर्ष के रामकृष्ण के साथ विवाह हुआ था। कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी शारदा देवी को दिव्य माता की प्रतिमूर्ति मानने लगे।


Correct Answers:

CLOSE
0/15
Incorrect Answer..!
Correct Answer..!
Previous Post Next Post
If you find any error or want to give any suggestion, please write to us via Feedback form.