19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव प्रश्न - GK Quiz (Set-6)

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। 19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 6)

व्याख्या: अहमदिया आन्दोलन का आरंभ 1889-90 में मिर्जा गुलाम अहमद ने फरीदकोट में किया। गुलाम अहमद हिन्दू सुधार आन्दोलन, थियोसोफी और पश्चिमी उदारवादी दृष्टिकोण से प्रभावित तथा सभी धर्मों पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय धर्म की स्थापना की कल्पना करते थे।

अहमदिया आन्दोलन का उद्देश्य मुसलमानों में आधुनिक बौद्धिक विकास का प्रचार करना था। मिर्जा गुलाम अहमद ने हिन्दू देवता कृष्ण और ईसा मसीह का अवतार होने का दावा किया।

व्याख्या: 1893 में ढाका में फ़राज़ी आंदोलन के विरोध में करामत अली द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को ताइयूनी आंदोलन कहा जाता है। यह अरबी शब्द 'ताइयुन' से बना है जिसका अर्थ 'पहचानना' है।

करामत अली की गतिविधियाँ दो गुना थीं, पहला, उसने मुस्लिम समाज से शिर्क और बिद्दत को मिटाने के लिए संघर्ष किया, और दूसरा, उसने कई मुसलमानों, जो अंधविश्वास से गुमराह थे, इस्लाम के सच्चे रास्ते पर को वापस लाया।

व्याख्या: कूका विद्रोह सन 1871-72 में पंजाब के कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा किया गया एक सशस्त्र विद्रोह था जो मूलतः अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में किया गया था।

बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी ने इसका नेतृत्व किया था। कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली।

कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी। अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। भारत का वायसराय लॉर्ड नर्थब्रूक था।

सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं। इस पन्थ का आरम्भ 1840 ईस्वी में हुआ था। इसे प्रारम्भ करने का श्रेय सेन साहब अर्थात भगत जवाहर मल को जाता है।

व्याख्या: रहनुमाई मजदायस्नान सभा की स्थापना 1851 में पारसियों के एक समूह द्वारा सामाजिक परिस्थितियों के उत्थान और पारसी धर्म की बहाली के लिए की गई थी।

आंदोलन की शुरुआत नौरोजी फरदोनजी, दादाभाई नौरोजी, केआर कामा और एसएस बेंगाली ने की थी। सुधार का संदेश समाचार पत्र रास्त गोफ्तार (सत्य बताने वाला) द्वारा फैलाया गया था।

सामाजिक क्षेत्र में पर्दा प्रथा को हटाकर और विवाह की उम्र बढ़ाकर पारसी महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास किया गया। इस सभा के माध्यम से उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन किए।

व्याख्या: 29 अक्टूबर 1870 को केशुब चंदर सेन के साथ भारतीय सुधार संघ का गठन किया गया था। इसने ब्राह्मो समाज के धर्मनिरपेक्ष पक्ष का प्रतिनिधित्व किया और ऐसे कई लोगों को शामिल किया जो ब्राह्मो समाज के नहीं थे।

व्याख्या: प्रसिद्ध आर्य समाजी जनों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, राम प्रसाद 'बिस्मिल', पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, चौधरी छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, के बाबा रामदेव आदि आते हैं।

व्याख्या: वेद समाज की स्थापना 1864 में मद्रास (चेन्नई) में केशव चंद्र सेन और के. श्रीधरलु नायडू ने की थी। वेद समाज ब्रह्म समाज से प्रेरित था। इसने जाति भेद को खत्म करने और विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने का काम किया।इसके सदस्य एक ईश्वर में विश्वास करते थे।

उन्होंने रूढ़िवादी हिंदू धर्म के अंधविश्वासों और कर्मकांडों की निंदा की। वेद समाज के सदस्यों की एक महत्वपूर्ण विचारधारा विवाह और अंतिम संस्कार की रस्मों को दिनचर्या के मामलों के रूप में, सभी धार्मिक महत्व के निराधार के रूप में थी।

व्याख्या: 1905 ई. में पूना में गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत सेवक मंडल (Servants of India Society) की स्थापना की थी। जिसका उद्देश्य भारत सेवा के लिए प्रचारक तैयार करना और संवैधानिक ढंग से भारतीय जनता के सच्चे हितों को प्रोत्साहित करना था।

व्याख्या: यंग बंगाल आन्दोलन का प्रवर्तक हेनरी विवियन डेरोजियो था जिसने 1826-1831 तक हिन्दू कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। उसने अपने छात्रों को विवेकपूर्ण और मुक्त ढंग से सोचने, सभी आधारों की प्रमाणिकता की जांच करने, समानता और स्वतंत्रता से प्रेम करने तथा सत्य की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। डेरोजियो संभवत: आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रवादी कवि था।

व्याख्या: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा था। उनके सम्मान में, 1984 में भारत सरकार ने उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया।

हालाँकि राष्ट्रवाद के विकास का श्रेय पश्चिमी प्रभाव को दिया जाता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में गहराई से निहित है। उन्होंने औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा में अत्यधिक योगदान दिया और भारत को 20वीं सदी में ले जाने में विशेष भूमिका निभाई।

व्याख्या: वर्ष 1914 में श्रीराम वाजपेयी ने 'सेवा समिति ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' की स्थापना लॉर्ड बेडेन पावेल द्वारा इंग्लैण्ड में संगठित 'ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' के आधार पर की। इस सेवा समिति का उद्देश्य 'ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' का पूरा भारतीयकरण करना था। श्रीराम वाजपेयी को अपने इस कार्य और उद्देश्य में सफलता भी मिली थी।

व्याख्या: स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उनहोंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।

भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुंचा। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत 'मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों' के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

व्याख्या: अकाली आंदोलन भारत में गुरुद्वारों में सुधार लाने के लिए एक अभियान था। इसे गुरुद्वारा सुधार आंदोलन भी कहा जाता है। यह आंदोलन 1920 से 1925 के बीच सक्रिय था।

आंदोलन की शुरुआत सिंह सभा की राजनीतिक शाखा (अकाली दल) ने की थी। पंजाब अकाली आंदोलन का मुख्य केंद्र था। सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1922 में पारित किया गया था।

व्याख्या: सिखों में धर्म सुधार आन्दोलन के अग्रदूत दयालदास थे। उन्होंने सिखों में प्रचलित हिन्दू रीति-रिवाजों के विरुद्ध उपदेश दिए और मूर्तिपूजा का विरोध किया। उनके अनुयायी निरंकारी कहलाए। उनके पुत्र दरबारा सिंह ने निरंकारी आन्दोलन को पंजाब और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में बहुत प्रचारित किया।

1815 ई. में रामसिंह के नेतृत्व में नामधारियों का सिख सुधार आन्दोलन शुरू हुआ, जो धर्म और नैतिकता में सादगी के पक्षधर थे। वे भक्ति संगीत पर जोर देते और सफेद कपड़े पहनते थे, किन्तु वे अंग्रेजों द्वारा पकड़े लिए गये और रंगून भेज दिए गये। पाश्चात्य शिक्षा के लाभों को सिख समाज तक पहुंचाने के लिए 1892 ई. में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना की गयी, जो आगे चलकर गुरुनानक विश्वविद्यालय बना।

वर्ष 1920 में गुरुद्वारों के महतों के खिलाफ अकाली आन्दोलन चला। वर्ष 1922 में गुरुद्वारा प्रबन्धन एक्ट पारित किया गया। वर्ष 1925 में इसे संशोधित कर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धन कमेटी की स्थापना हुई।

व्याख्या: अल-हिलाल, अल बिलाल समाचार पत्र को मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कलकत्ता से उर्दू में निकालते थे।


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