19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव प्रश्न - GK Quiz (Set-7)

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। 19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

19वीं और 20वीं सदी के सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 7)

व्याख्या: मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने वर्ष 1889 में अहमदिया आंदोलन शुरू किया था। आंदोलन चरित्र में सुधारवादी था। इसके द्वारा इस्लाम में उदारवाद का परिचय देने की कोशिश की गई। यह ब्राह्मो समाज के मानवता के सार्वभौमिक धर्म की मान्यता के समान आधार पर ही था। इसने जिहाद का विरोध किया और भारतीय मुस्लिमों के बीच पश्चिमी शिक्षा के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया।

व्याख्या: रामकृष्ण परमहंस का मूलनाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। वे संत प्रकृति के व्यक्ति थे एवं उन्होंने त्याग, ध्यान एवं भक्ति भावना से मानव मुक्ति का विचार रखा था। इनका विचार था कि मनुष्य की सेवा ईश्वर की सेवा है क्योंकि मनुष्य ईश्वर का ही मूर्तिमान रूप है।

व्याख्या: रामकृष्ण परमहंस का जन्म पश्चिमी बंगाल के हुगली जिले में कमरपुरकर ग्राम के ख़ुशीराम चटर्जी के यहाँ 18 फरवरी, 1836 को हुआ था। बचपन में उनका नाम गदाधर था। 17 वर्ष की अवस्था में वे अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ कलकता के दक्षिणेश्वर में आये जहाँ उनके भाई देवी काली माँ के पुजारी थे।

व्याख्या: रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई, 1897 को हुई थी। इस मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने की थी, जो रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। इस मठ की विश्व में कुल 205 शाखाएं हैं और इसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल के वेल्लूर मठ में स्थित है। यह संगठन वेदान्त की हिन्दू विचारधारा में यकीन रखता है।

व्याख्या: राजा राममोहन राय की 27 सितम्बर 1833 को ब्रिस्टल में दिमागी बुखार के कारण मृत्यु हो गयी थी। ब्रिटिश सरकार ने राजा राममोहन की याद में एक सड़क का नाम ब्रिस्टल रख दिया।

व्याख्या: प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 में महाराष्ट्र में केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से हुई। इसके प्रमुख संस्थापक डॉ. आत्माराम पांडुरंग एवं महादेव गोविन्द रानाडे थे। रानाडे का उल्लेख 'पश्चिमी भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत' के रूप में किया जाता है। आर. जी. भंडारकर इसके अन्य प्रमुख नेता थे।

उपासना (प्रार्थना) तथा सामाजिक सुधार इस समाज के दो मुख्य अंग थे। रानाडे ने शुद्धि आन्दोलन भी प्रारंभ किया जिसमें वेश्याओं द्वारा नृत्य और मद्यपान विरोधी तथा विवाह में होने वाली फिजूलखर्ची के विरुद्ध आन्दोलन चलाए गये। देवेन्द्र नाथ टैगोर ने 'तत्त्वबोधिनी सभा' की स्थापना की थी।

व्याख्या: थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना 1875 इ. में न्यूयार्क (अमेरिका) में मैडम हेलना ब्लावत्सकी तथा कर्नल हेनरी ऑल्काट ने की थी। भारत में इसका मुख्यालय 1882 ई. में अड्यार (मद्रास) में बनाया गया था। थियोसोफिकल सोसायटी को भारत में प्रचारित एवं प्रसारित करने में आयरिश महिला एनी बेसेंट (1847-1933 ई.) का विशेष योगदान था।

व्याख्या: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 ई. में हुई थी। यह वर्ष 1917 में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज के साथ अपने प्रथम घटक कॉलेज के रूप में शुरू किया गया था। सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना श्रीमती एनी बेसेंट ने की थी।

व्याख्या: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष एनी बेसेंट थी, जो वर्ष 1917 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्ष बनी थी। सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थी। विजय लक्ष्मी पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन तथा संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्ष थी।

व्याख्या: हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 16 जुलाई 1856 को हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को वैध बनाता है। हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था। यह अधिनियम 1856 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित किया गया था। यह अधिनियम समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के अथक प्रयासों के कारण बनाया गया था।

केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से 1872 ई. में देशी बाल विवाह अधिनियम पास हुआ, जिसमें बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगाने की व्यवस्था की गई। सिविल मैरिज एक्ट (1872 ई.) के अन्तर्गत 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं तथा 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों का विवाह वर्जित कर दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा बहुपत्नी प्रथा भी समाप्त कर दी गयी।

सहमति की आयु अधिनियम, 1891 में पारित किया गया था। इस कानून के अनुसार विवाह की आयु 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गई थी। सर एंड्रयू स्कॉबल ने इस विधेयक को विधान परिषद में पेश किया था। यह अधिनियम लॉर्ड लैंसडाउन के कार्यकाल में पारित किया गया था। एक पारसी समाज सुधारक, बेहरामजी एम. मालाबारी (1853-1912) ने 1908 में एक मित्र दीवान दयाराम गिदुमल के साथ सेवा सदन की स्थापना की थी। मालाबारी ने हिंदुओं में बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह के खिलाफ पुरज़ोर आवाज उठाई थी।

बाल-विवाह नियंत्रण अधिनियम, 1929 को हरबिलास सारदा के बाद शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है। 28 सितंबर, 1929 को लड़कियों और लड़कों की विवाह योग्य आयु क्रमशः 14 वर्ष और 18 वर्ष निर्धारित करने के लिए यह एक वैधानिक अधिनियम पारित किया गया था।


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