पूर्व मध्यकालीन भारत (दक्षिण भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-6)

पूर्व मध्यकालीन भारत (दक्षिण भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-6).

पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत)

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 6)

76. गंगकोण्डचोलपुरम का शिवमंदिर का निर्माण किसके समय में हुआ?

व्याख्या: गंगईकोंडचोलपुरम उदयारपलयम तालुका, त्रिचनापल्ली ज़िला, मद्रास में स्थित है। प्राचीन समय में यह चोल वंश के प्रतापी राजा राजेन्द्र चोल (1014-1044 ई.) की राजधानी रही थी। 1955-1956 के उत्खनन में पुरातत्व विभाग को इस स्थान पर एक प्राचीन दुर्ग की भित्ति के अवशेष प्राप्त हुए थे। नगर का नाम संभवत: राजेन्द्र चोल ने गंगा नदी के तटवर्ती प्रदेश की विजय के स्मारक के रूप में 'गंगईकोंडचोलपुरम' रखा था।

77. चोल राज्य की राजधानी तंजौर को बनाने वाला कौन था?

व्याख्या: विजयालय (850-875 ई.) ने 9वीं शताब्दी के मध्य लगभग 850ई. में चोल शक्ति का पुनरुत्थान किया। विजयालय ने पाण्ड्य साम्राज्य के शासकों से तंजौर (तंजावुर) को छीनकर 'उरैयूर' के स्थान पर इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। तंजौर को जीतने के उपलक्ष्य में विजयालय ने 'नरकेसरी' की उपाधि धारण की थी।

78. चोल राज्य का संस्थापक विजयालय पहले किसका सामंत था?

व्याख्या: चोल राज्य का संस्थापक विजयालय पहले पल्लवों सामंत था।विजयालय ने पल्लवों की अधीनता से चोल मण्डल को मुक्त किया और स्वतंत्रतापूर्वक शासन करना शुरू किया।उसने पाण्ड्य साम्राज्य के शासकों से तंजौर (तंजावुर) को छीनकर 'उरैयूर' के स्थान पर इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया।

79. पूर्वमध्य काल में विजयालय ने चोल राज्य की स्थापना कब की?

व्याख्या: चोल शासन दक्षिण भारत में पल्लवों के अधीनस्थ सांमतों के रूप में कार्यरत थे। 850 ई. में विजयालय ने तंजौर पर कब्ज़ा कर लिया। इसी चोल राजवंश की स्थापना की थी। उसने परकेसरी की उपाधि धारण की।

80. किस चोल शासक ने चिदम्बरम का प्रसिद्ध नटराज मंदिर का निर्माण कराया था?

व्याख्या: यह दक्षिण भारत के सबसे लोकप्रिय शैव मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को परान्तक प्रथम ने बनाया था और पल्लव राजा सिंहवरम ने इसे पुनर्निर्मित किया था। मंदिर के परिसर में चार गोपुरम या बुर्ज हैं जो कई संरचनाओं से संपन्न हैं।

81. अभिलेखों को ऐतिहासिक प्राक्क्थन के साथ प्रारम्भ करने की परम्परा का सूत्रपात किया?

व्याख्या: राजराजा प्रथम ने अभिलेखों को ऐतिहासिक प्राक्क्थन के साथ प्रारम्भ करने की परम्परा का सूत्रपात किया।राजराज प्रथम (985-1014 ई.) अथवा अरिमोलिवर्मन परान्तक द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, परान्तक द्वितीय के बाद चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन के 30 वर्ष चोल साम्राज्य के सर्वाधिक गौरवशाली वर्ष थे। उसने अपने पितामह परान्तक प्रथम की 'लौह एवं रक्त की नीति' का पालन करते हुए 'राजराज' की उपाधि ग्रहण की।

82. किस चोल शासक ने श्रीलंकाई शासक महिन्द पंचम के समय में श्रीलंका पर आक्रमण कर उसकी राजधानी अनुराधापुर को नष्ट किया एवं उत्तरी श्रीलंका पर अधिकार कर लिया?

व्याख्या: पाण्ड्य राज्य पर अधिकार के बाद राजराज प्रथम ने श्रीलंका के शासक महेन्द्र पंचम पर आक्रमण कर उसकी राजधानी 'अनुराधापुरम' को बुरी तरह नष्ट कर दिया। इस अभियान में राजराज ने अपने द्वारा जीते गये प्रदेश का नाम 'मामुण्डी चोलमण्डलम' रखा एवं 'पोलोन्नरुवा' को उसकी राजधानी बनाया तथा सम्भवतः इस विजय के बाद राजराज प्रथम ने 'जननाथमंगलम्' नाम रखा।

83. किस चोल शासक ने अपनी यशस्वी विजयों का समापन मालदीव द्वीप सूमः की विजय से किया?

व्याख्या: अपने शासन के अन्तिम दिनों में राजराज प्रथम ने मालदीव को भी अपने अधिकार में कर दिया।

84. किस चोल शासक ने श्रीलंका के शेष बचे दक्षिणी भाग पर अधिकार कर श्रीलंका विजय को पूर्ण किया?

व्याख्या: राजेन्द्र प्रथम (1014-1044ई.) राजराज प्रथम का पुत्र एवं उत्तराधिकारी 1014 ई. में चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा। लगभग 1017 ई. में सिंहल (श्रीलंका) राज्य के विरुद्ध अभियान में उसने वहां के शासक महेन्द्र पंचम को परास्त कर सम्पूर्ण सिंहल राज्य को अपने अधिकार में कर लिया।

85. किसने चिदम्बरम के निकट गंगकौण्डचोलपुरम बसाया और उसे अपनी राजधानी बनायी?

व्याख्या: गंगा घाटी के अभियान की सफलता पर राजेन्द्र प्रथम ने 'गंगैकोण्डचोल' की उपाधि धारण की तथा इस विजय की स्मृति में कावेरी तट के निकट 'गंगैकोण्डचोल' नामक नई राजधानी का निर्माण करवाया।

86. किसने 1077 ई० में 92 व्यापारियों का एक शिष्टमंडल चीन भेजा?

व्याख्या: कुलोत्तुंग चोल I ने अपने कई दूत चीन भी भेजे। सत्तर व्यापारियों का एक मंडल 1077 ई. में चोल दूतों के रूप में चीन गया और वहाँ उसे 81,800 कांस्य मुद्राओं की माला मिली, अर्थात् यह संख्या उतनी ही थी, जितनी उन व्यापारियों की वस्तुएँ थीं, जिसमें कपूर, कढ़ाई किए कपड़े, हाथी दांत, गैंडों के सींग तथा शीशे का सामान था।

87. महासभा की कार्यकारिणी समिति को कहा जाता था

व्याख्या: वारियम व्यवस्था चोल साम्राज्य में प्रचलित थी। चोल कालीन शासन व्यवस्था में 'वारियम' एक प्रकार की कार्यकारिणी समिति थी। वारियम की सदस्यता हेतु 35 से 70 वर्ष के बीच तक के व्यक्तियों को अवसर दिया जाता था।

88. कहाँ से प्राप्त अभिलेख से महासभा की कार्यप्रणाली के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है?

व्याख्या: उत्तरमेरूर से पल्लव एवं चोल काल के लगभग दो सौ अभिलेख मिले हैं। इन अभिलेखों से परिज्ञात होता है कि पल्लव एवं चोल शासन के अन्तर्गत ग्राम अधिकतम स्वायत्तता का उपभोग करते थे। 10वीं शताब्दी का एक लेख आज भी एक मन्दिर की दीवार पर ख़ुदा है, जो यह बताता है कि चोल शासन के अन्तर्गत स्थानीय 'सभा' किस प्रकार कार्य करती थी। सभा का चुनाव उपयुक्त व्यक्तियों में से लाटरी निकालकर होता था। ग्राम स्तर पर स्वायत्तता इतनी थी कि प्रशासन के उच्च स्तरों और राजनीतिक ढाँचे में होने वाले परिवर्तनों से गाँव का दैनन्दिन जीवन अप्रभावित रहता था।

89. चोल काल में नौसेना का सर्वाधिक विकास किसके समय में हुआ?

व्याख्या: राजेन्द्र प्रथम (1012 ई. - 1044 ई.) चोल राजवंश का सबसे महान शासक था। उसने अपनी महान विजयों द्वारा चोल सम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व शक्तिशाली साम्राज्य बनाया। उसने 'गंगई कोंड' की उपाधि धारण की तथा गंगई कोंड चोलपुरम नामक नगर की स्थापना की। राजेन्द्र चोल के समय ही नौसेना का सर्वाधिक विकास हुआ।

90. युद्ध में विशेष पराक्रम दिखाने वाले योद्धा को कौन-सी उपाधि दी जाती थी?

व्याख्या: चोल काल में युद्ध में विशेष पराक्रम दिखाने वाले योद्धा को क्षत्रिय शिखामणि उपाधि दी जाती थी। चोल राजा के अंगरक्षकों को ''वेलैक्कर'' कहा जाता था।


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