भक्ति आन्दोलन से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Bhakti Movement GK Quiz (set-1)

भक्ति आन्दोलन से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Bhakti Movement GK Quiz (set-1).

भक्ति आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 1)

व्याख्या: मध्य काल में भक्ति आन्दोलन की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण के अलवार भक्तों द्वारा की गई। दक्षिण भारत से उत्तर भारत में बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रामानन्द द्वारा यह आन्दोलन लाया गया। भक्ति आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था- हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना।

व्याख्या: नागार्जुन बौद्धाचार्य (जन्म -150 ई; मृत्यु -लगभग 250 ई) भारतीय बौद्ध भिक्षु-दार्शनिक और माध्यमिक (मध्य मार्ग) मत के संस्थापक, जिनकी ‘शून्यता’ (ख़ालीपन) की अवधारणा के स्पष्टीकरण को उच्चकोटि की बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धि माना जाता है।

व्याख्या: प्रथम सिक्‍ख गुरु और सिक्‍ख धर्म के प्रवर्तक, गुरु नानक जी भी निर्गुण भक्ति संत थे और समाज सुधारक थे। उन्‍होंने सभी प्रकार के जाति भेद और धार्मिक शत्रुता तथा रीति रिवाजों का विरोध किया। उन्‍होंने ईश्‍वर के एक रूप माना तथा हिन्‍दू और मुस्लिम धर्म की औपचारिकताओं तथा रीति रिवाजों की आलोचना की। उन्हें पंजाब में भक्ति आन्दोलन का प्रतिपादक कहा जाता है।

व्याख्या: स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। वे पुरी औऱ दक्षिण भारत के कई धर्मस्थानों पर गये और रामभक्ति का प्रचार किया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है।

व्याख्या: संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे। इन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया

व्याख्या: स्वामी रामानंद ने राम भक्ति का द्वार सबके लिए सुलभ कर दिया। साथ ही ग्रहस्तो में वर्णसंकरता ना फैले, इस हेतु विरक्त संन्यासी के लिए कठोर नियम भी बनाए। उन्होंने अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन [नाई], धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास, सुरसरी, पदमावती जैसे बारह लोगों को अपना प्रमुख शिष्य बनाया, जिन्हे द्वादश महाभागवत के नाम से जाना जाता है।

व्याख्या: कबीर के (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है परन्तु अधिकतर विद्वान इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है। 'काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये '। कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे।

व्याख्या: चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया।

व्याख्या: वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित शुद्धाद्वैतवाद दर्शन के भक्तिमार्ग को पुष्टिमार्ग कहते हैं। शुद्धाद्वैतवाद के अनुसार ब्रह्म माया से अलिप्त है, इसलिये शुद्ध है। पुष्टिमार्ग के अनुसार सेवा दो प्रकार से होती है - नाम-सेवा और स्‍वरूप-सेवा। पुष्टिमार्ग में जीवों के तीन प्रकार बताये जाते हैं- प्रवाह जीव, मर्यादा जीव और पुष्टि जीव। पुष्टि मार्ग में भक्ति की भी तीन प्रकार की अवधारणाएँ हैं- प्रवाह पुष्टि भक्ति, मर्यादा पुष्टि भक्ति और शुद्ध पुष्टि भक्ति।

व्याख्या: कीर्तन को पूजा के स्वरूप के रूप में 15वीं-16वीं शताब्दी में बंगाल के रहस्यवादी चैतन्य महाप्रभु ने लोकप्रिय बनाया, जो ईश्वर के अधिक प्रत्यक्ष भावनात्मक अनुभव का लगातार प्रयास करते रहे।

व्याख्या: अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य है उसे शांकराद्वैत भी कहा जाता है। शंकराचार्य मानते हैं कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नही हैं। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है।

व्याख्या: गीत गोविन्द 12 अध्यायों वाला एक गीति काव्य है जिसे प्रबंध कहे जाने वाले चौबीस भागों में विभाजित किया गया है। इसके रचयिता 12वीं शताब्दी के कवि जयदेव हैं। इस कृति में रचयिता ने धार्मिक उत्साह के साथ श्रृंगारिकता का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत किया है। यह मध्यकालीन वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है और इसमें राधा और कृष्ण की प्रेम लीला और उनके अलगाव के दुःख (विरह-वेदना) का वर्णन किया गया है।

व्याख्या: श्रीमन्त शंकरदेव असमिया भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा हिन्दू समाजसुधारक थे। शंकरदेव ने समग्र उत्तरपूर्वी प्रांत में भक्ति आन्दोलन की लहर को फैलाया। तथा समस्त जनता को एक नये भक्ति मार्ग से जोड़ने का प्रयास किया। यह नवीन भक्ति मार्ग ‘नव वैष्णव भक्ति मार्ग या धर्म’ के नाम से जाना जाता है।


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