पूर्व मध्यकालीन भारत (दक्षिण भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-1)

पूर्व मध्यकालीन भारत (दक्षिण भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-1).

पूर्व मध्यकालीन भारत (दक्षिण भारत)

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 1)

1. ऐहोल प्रशस्ति का रचयिता रविकीर्ति किस चालुक्य शासक का दरबारी कवि था?

व्याख्या: रविकीर्ति पुलकेशिन द्वितीय का दरबारी कवि था।एहोल कर्नाटक के बीजापुर में स्थित, बादामी के निकट, बहुत प्राचीन स्थान है। इसे एहोड़ और आइहोल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रूप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसका रचयिता जैन कवि रविकीर्ति था। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय की विजयों का वर्णन है। अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन की पराजय का भी वर्णन है।

2. प्रसिद्ध चोल शासक राजराजा का मूल नाम था

व्याख्या: राजराज प्रथम (985-1014 ई.) अथवा अरिमोलिवर्मन परान्तक द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, परान्तक द्वितीय के बाद चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन के 30 वर्ष चोल साम्राज्य के सर्वाधिक गौरवशाली वर्ष थे। उसने अपने पितामह परान्तक प्रथम की 'लौह एवं रक्त की नीति' का पालन करते हुए 'राजराज' की उपाधि ग्रहण की।

3. वह चोल राजा कौन था जिसने श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता दी और सिंहल राजकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था?

व्याख्या: चोल नरेश कुलोतुंग i ने श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता दी और सिंहल राजकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। कुलोतुंग i ने सुगन्दवृत्त' (करों को हटाने वाला) उपाधि धारण की।

4. बादामी में दुर्ग का निर्माण करवाने और बादामी को राजधानी बनाने का श्रेय किस चालुक्य शासक को हैं

व्याख्या: पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.), चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भी जाना जाता था। यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी (बीजापुर ज़िले में, बादामी) को राजधानी बनाकर अपने पृथक् व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था। इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।

5. किस चालुक्य शासक ने थानेश्वर व कन्नौज के महान् शासक हर्षवर्धन को नर्मदा के तट पर परास्त किया और उसे दक्षिण बढ़ने से रोका?

व्याख्या: पुलकेशिन द्वितीय इस राजवंश का पराक्रमी व प्रसिद्ध शासक था जिसका शासन-काल 609-642 ई. है। पुलकेशिन द्वितीय का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सैनिक संघर्ष उत्तर भारत के सर्वशक्तिमान शासक हर्षवर्धन के विरुद्ध हुआ। पुलकेशिन द्वितीय के बारे में जानकारी उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा प्राकृत भाषा में रचित ऐहोले नाम के एक प्रशस्ति से पता चलता है. पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को नर्मदा के तट पर हराया था। इस युद्ध से पुलकेशिन द्वितीय के गौरव में वृद्धि हुई, उसने परमेश्वर व दक्षिणापथेश्वर उपाधियाँ धारण कीं।

6. चालुक्यों और पल्लवों के बीच लम्बे समय तक चलने वाले संघर्ष का आरंभ किसने किया?

व्याख्या: पल्लव और बादामी के चालुक्य राजाओं के बीच संघर्ष का मुख्य कारण सिंहासन, प्रतिष्ठा और क्षेत्रीय संसाधनों की प्राप्ति का था। यह संघर्ष 8 वीं सदी से छठी शताब्दी तक जारी रहा। बाद में मदुरै और तिन्नेवेल्ली के नियंत्रण में पाण्ड्य राजा भी इस संघर्ष में शामिल हो गए। दोनों राज्यों ने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया। इस संघर्ष की शुरुआत पुलकेशिन ii ने की थी।

7. चालुक्य-पल्लव संघर्ष के दौरान किसने पुलकेशिन ॥ की हत्या कर वातापी पर कब्ज़ा पर लिया तथा वातापीकोण्डा' (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की?

व्याख्या: नरसिंहवर्मन् 1 पल्लव राजवंश का राजा। इसने 630 से 668तक राज किया। इसने महाबलिपुरम में अपने पिता महेन्द्रवर्मन् के आरम्भ किये निर्माण महाबलिपुरम के तट मन्दिर परिसर को पूरा किया। यह मल्ल भी था इसीलिये इसे ममल्लन् बी कहते हैं और महाबलिपुरम् को ममल्लपुरम् भी कहते हैं इसने पड़ोसी चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया था और वातापीकोण्डा ' (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की।

8. किस चालुक्य शासक ने चेर, चोल व पांड्य को हराया, जिस कारण उसे 'तीनों समुद्रों (बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर व अरब सागर) का स्वामी' भी कहा गया?
9. श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने वाला चोल वंश का सबसे प्रतापी राजा था

व्याख्या: राजेन्द्र प्रथम (1014-1044ई.) राजराज प्रथम का पुत्र एवं उत्तराधिकारी 1014 ई. में चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा। उसकी उपलब्धियों के बारे में सही जानकारी 'तिरुवालंगाडु' एवं 'करंदाइ अभिलेखों' से मिलती है। अपने विजय अभियान के प्रारम्भ में उसने पश्चिमी चालुक्यों, पाण्ड्यों एवं चेरों को पराजित किया। इसके बाद लगभग 1017 ई. में सिंहल (श्रीलंका) राज्य के विरुद्ध अभियान में उसने वहां के शासक महेन्द्र पंचम को परास्त कर सम्पूर्ण सिंहल राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। श्रीलंका को विजित कर राजेन्द्र ने पाण्ड्य तथा चेरों को परास्त किया। उसने 'गंगैकोण्डचोल', 'वीर राजेन्द्र', 'मुडिगोंडचोल' आदि उपाधियाँ धारण की थीं।

10. पहाड़ी काटकर एलोरा के विश्वविख्यात कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया था

व्याख्या: विश्वविख्यात कैलाशनाथ मंदिर को राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई0) में निर्मित कराया था। एलोरा का कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में प्रसिद्ध 'एलोरा की गुफ़ाओं' में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्‍थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।मंदिर एलोरा की गुफ़ा संख्या 16 में स्थित है।

11. निम्नलिखित में किसने तंजौर में वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था?

व्याख्या: बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है।

12. चालुक्य वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था

व्याख्या: पुलकैशिन 2 चालुक्य राजवंश का एक महान शासक था। इन्होंने लगभग 620 ईसवी में शासन किया था। इन्हें पुलकैशी नाम से भी जाना जाता था।

13. निम्नलिखित में से कौन सा शहर चोल राजाओं की राजधानी था?

व्याख्या: तंजावुर अथवा 'तंजौर' तंजावुर ज़िले का प्रशासिक मुख्यालय है, जो तमिलनाडु राज्य, दक्षिण-पूर्वी भारत में कावेरी के डेल्टा में स्थित है। नौवीं से ग्याहरवीं शताब्दी तक चोलों की आरंभिक राजधानी तंजौर, विजयनगर, मराठा तथा ब्रिटिश काल के दौरान भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण रहा। अब यह एक पर्यटक स्थल है और इसके आकर्षणों में बृहदीश्वर चोल मंदिर, विजयनगर क़िला और मराठा राजकुमार सरफ़ोजी का महल शामिल है।

14. पांड्य साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?

व्याख्या: पाण्ड्य राजवंश का प्रारम्भिक उल्लेख पाणिनि की अष्टाध्यायी में मिलता है। इसके अतिरिक्त अशोक के अभिलेख, महाभारत एवं रामायण में भी पाण्ड्य साम्राज्य के विषय में जानकारी मिलती है। मेगस्थनीज पाण्ड्य राज्य का उल्लेख ‘माबर‘ नाम से करता है। उसके विवरणानुसार पाण्ड्य राज्य पर ‘हैराक्ट‘ की पुत्री का शासन था, तथा वह राज्य मोतियों के लिए प्रसिद्ध था। पाण्ड्यों की राजधानी 'मदुरा' (मदुरई) थी, जिसके विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र से जानकारी मिलती है। मदुरा अपने कीमती मोतियों, उच्चकोटि के वस्त्रों एवं उन्नतिशील व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।

15. राष्ट्रकूट साम्राज्य का संस्थापक कौन था?

व्याख्या: राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई. में दंतिदुर्ग ने की थी। राष्ट्रकूट वंश के उत्कर्ष का प्रारम्भ दन्तिदुर्ग द्वारा हुआ। किंतु उससे पहले भी इस वंश के राज्य की सत्ता थी, यद्यपि उस समय इसका राज्य स्वतंत्र नहीं था। सम्भवतः वह चालुक्य साम्राज्य के अंतर्गत था। चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने उसे पृथ्वी वल्लभ या खड़वालोक की उपाधि दी थी। दन्तिदुर्ग ने न केवल अपने राज्य को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त ही किया, अपितु अपनी राजधानी मान्यखेट (मानखेट) से अन्यत्र जाकर दूर-दूर तक के प्रदेशों की विजय भी की।


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