ब्रिटिश सत्ता का विस्तार MCQ प्रश्न उत्तर और व्याख्या - GK Quiz (Set-5)

भारत में ब्रिटिश सत्ता का विस्तार MCQ प्रश्न उत्तर और विस्तृत समाधान के साथ। ब्रिटिश सत्ता का विस्तार MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

ब्रिटिश सत्ता का विस्तार

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 5)

व्याख्या: काल कोठरी नामक घटना पश्चिम बंगाल की एक घटना है, जो स्वतंत्रता पूर्व काल की है।ऐसा माना जाता है कि, बंगाल के नवाब (सिराजुद्दौला) ने 146 अंग्रेज़ बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। 20 जून, 1756 ई. की रात को बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये।

व्याख्या: गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म:पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 26 दिसम्बर 1666- मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 ) सिखों के दसवें गुरु थे।

व्याख्या: प्लासी का पहला युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ था। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था।

व्याख्या: डिंडीगुल शहर तमिलनाडु राज्य में स्थित है। डिंडीगुल के नाम की उत्पत्ति दो शब्दों थिंडू अर्थात तकिया और कल अर्थात पत्थर से मिलकर हुई है। इसका सम्बन्ध उन नग्न पहाड़ो से है जहाँ से शहर दिखता है।

व्याख्या: वारेन हेस्टिंग्स ने कोष को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया। वह 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार बंगाल के पहले गवर्नर-जनरल थे।

वारेन हेस्टिंग्स ने प्रथम महालेखाकार नियुक्त किया था। उन्होंने राजस्व बोर्ड की भी शुरुआत की जिसमें उच्चतम बोली लगाने वाले को 5 साल में एक बार जमीन की नीलामी की जाती थी।

व्याख्या: वारेन हेस्टिंग्स (6 दिसंबर 1732 – 22 अगस्त 1818), एक अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ था, जो फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी (बंगाल) का प्रथम गवर्नर तथा बंगाल की सुप्रीम काउंसिल का अध्यक्ष था और इस तरह 1773 से 1785 तक वह भारत का प्रथम वास्तविक (डी-फैक्टो) गवर्नर जनरल रहा। 1787 में भ्रष्टाचार के मामले में उस पर महाभियोग चलाया गया लेकिन एक लंबे परीक्षण के बाद उसे 1795 में अंततः बरी कर दिया गया। 1814 में उसे प्रिवी काउंसिलर बनाया गया।

व्याख्या: सती, जिसे सुत्ती भी कहा जाता था, हिंदू समुदायों की एक प्रथा थी, जिसके अनुसार हाल ही में विधवा हुई महिला, या तो स्वेच्छा से या बलपूर्वक, अपने मृत पति की चिता पर आत्मदाह कर लेती थी। इसलिए, जो महिला आत्मदाह करती थी, उसे सती कहा जाता था, जिसकी व्याख्या 'पवित्र महिला' या 'अच्छी और समर्पित पत्नी' के रूप में भी की जाती थी।

विलियम बेंटिक ने राजा राममोहन राय की सहायता से 1829 में सती प्रथा को समाप्त कर दिया। बेंटिक ने इस प्रथा के खिलाफ एक कानून बनाया और 1829 में धारा 17 के माध्यम से विधवाओं की सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।

व्याख्या: पिट्स इंडिया एक्ट 1784. 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाने के लिए संसद द्वारा पेश किया गया था। यह 1773 के विनियमन अधिनियम (जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है) की विफलता पर पारित किया गया था।

व्याख्या: इलाहाबाद की संधि पर 1765 में शुजा-उद-दौला और शाह आलम द्वितीय ने रॉबर्ट क्लाइव के साथ भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत के लिए हस्ताक्षर किए थे। इस संधि के माध्यम से, ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल के पूर्वी प्रांत-बिहार-ओडिशा से कर एकत्र करने की अनुमति दी गई, जिसके बदले शाह आलम द्वितीय को कोरा और इलाहाबाद दिया गया।

व्याख्या: चार्ल्स मेटकाफ़ को 1818 में ब्रिटिश कंपनी द्वारा राजपूत राज्यों के बीच संधियों पर हस्ताक्षर करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। चार्ल्स मेटकाफ़ को 1835-36 तक भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया था। उन्होंने लॉर्ड विलियम बेंटिक का स्थान लिया था।

व्याख्या: शकरखेड़ा की लड़ाई (1724)- 11 अक्टूबर 1724 को 'शकर-खेड़ा' का युद्ध लड़ा गया था। शकर खेड़ा का युद्ध बरार में हुआ था। शकर खेड़ा की लड़ाई निजाम-उल-मुल्क और मुबारिज खान, दक्कन के सूबेदार में लड़ी गई थी।

बेदारा का युद्ध(1759)- बेदारा की लड़ाई भारत के बंगाल में अंग्रेजी और डच सेना के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में, ब्रिटिश सेना द्वारा डच सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया गया था और इससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में अपना वर्चस्व कायम करने में मदद मिली थी।

पोर्टो नोवो की लड़ाई (1781)- पोर्टो नोवो की लड़ाई 1 जुलाई 1781 को मैसूर के हैदर अली और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई थी। अंग्रेज विजयी हुए और इस लड़ाई ने हैदर अली के विस्तार को रोक लगा दिया।

मुदकी का युद्ध (1845)- मुदकी की लड़ाई 18 दिसंबर 1845 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं और पंजाब के सिख साम्राज्य की सेना, सिख खालसा सेना के हिस्से के बीच लड़ी गई थी। इस युद्ध में सिक्खों की पराजय हुई।

व्याख्या: हैदर अली की मृत्यु के पश्चात 1782 ई. में 'टीपू' मैसूर का शासक बना। इसने व्यापार एवं अन्य सम्बन्धो को मजबूत करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों में दूतावासों की स्थापना की। अपने नाम के सिक्के चलाए, वर्षों एवं कैलेंडरो के हिन्दू नामों को परिवर्तित कर उन्हें अरबी में लिपि बद्ध कराया। आधुनिक यूरोपीय पद्धति पर अपनी सैन्य व्यवस्था को मजबूत किया।

व्याख्या: ब्रिटिश भारतीय राज्य क्षेत्र का अंतिम प्रमुख विस्तार डलहौजी के समय में हुआ। डलहौजी की विजयों तथा विलय से लगभग 2 लाख वर्ग मील का क्षेत्र ब्रिटिश कंपनी के अधीन आ गया। उसके बारे में रिचर्ड टेंपल का कथन है कि "एक साम्राज्यवादी प्रशासक के रूप में जो योग्य व्यक्ति इंग्लैंड ने भारत भेजे, उनमें से किसी ने भी कदाचित ही उसकी समानता की है, अतिक्रमण तो कभी नहीं किया।"

व्याख्या: प्रथम आंग्ल मराठा- पहला आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच लड़े गये तीन आंग्ल-मराठा युद्धों में से पहला था।

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध- द्वितीय मैसूर युद्ध 1780 से 1784 ई. तक चला। अंग्रेज़ों ने 1769 ई. की 'मद्रास की सन्धि' की शर्तों के अनुसार आचरण नहीं किया

प्रथम आंग्ल बर्मा युद्ध- प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध दो वर्ष (1824 से 1826 ई.) तक चला था। युद्ध का मुख्य कारण बर्मा राज्य की सीमाओं का ब्रिटिश साम्राज्य के आस-पास तक फैल जाना था, जिस कारण से अंग्रेज़ों के समक्ष एक संकट खड़ा होने का ख़तरा बड़ गया था।

प्रथम आंग्ल अफगान युद्ध- प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध (1838-1842 ई.) ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन काल में गवर्नर-जनरल लॉर्ड ऑकलैण्ड के समय में शुरू हुआ और यह उसके उत्तराधिकारी लॉर्ड एलनबरो के समय तक चलता रहा।

व्याख्या: ठगों के दमन का कार्य लॉर्ड विलियम बेंटिक के आदेश पर कर्नल स्लीमैन ने किया था। ठगों को दबाने का अभियान कर्नल सर विलियम स्लीमैन की मदद से किया गया था। ठगों के दमन में उनकी भूमिका के लिए, कर्नल स्लीमैन को थुगे स्लीमैन कहा जाता था। ठगों को दबाने का अभियान 1830 में शुरू हुआ और यह पांच साल में पूरा हुआ।

पेशेवर हत्यारों के एक सुव्यवस्थित संघ के सदस्य, जिन्होंने कई सौ वर्षों तक पूरे भारत में गिरोहों की यात्रा की । ठगों का सबसे पहला प्रामाणिक उल्लेख 1356 के बारे में दिनांकित, फिरोज शाह के इतिहास, इया-उद-दीन बरनी में पाया जाता है।


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