मराठा से जुड़े ऑब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर और व्याख्या - Marathas MCQ GK Quiz (Set-6)

Marathas से जुड़े MCQ प्रश्न और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। Marathas MCQ क्विज़ से अपनी आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

मराठा सम्राज्य

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 6)

व्याख्या: द्वितीय-आंग्ल मराठा युद्ध 1803-1805 ई. तक चला। बाजीराव द्वितीय को अपने अधीन बनाने के पश्चात अंग्रेज इस बात के लिए प्रयत्नशील थे कि, वे होल्कर, भोसलें तथा महादजी शिंदे को भी अपने अधीन कर लें। साथ ही वे अपनी कूटनीति से उस पारस्परिक कलह और फूट को बढ़ावा भी देते रहे, जो मराठा राजनीति का सदा ही एक गुण रहा था। तृतीय-आंग्ल मराठा युद्ध 1817-1819 ई. तक चला। यह युद्ध अंतिम रूप से लॉर्ड हेस्टिंग्स के भारत के गवर्नर-जनरल बनने के बाद लड़ा गया। अंग्रेजों ने नवम्बर, 1817 में महादजी शिंदे के साथ ग्वालियर की संधि की, जिसके अनुसार महादजी शिंदे पिंडारियों के दमन में अंग्रेजों का सहयोग करेगा और साथ ही चंबल नदी से दक्षिण-पश्चिम के राज्यों पर अपना प्रभाव हटा लेगा। जून, 1817 में अंग्रेजों से पूना की संधि की, जिसके तहत पेशवा ने 'मराठा संघ' की अध्यक्षता त्याग दी।

व्याख्या: बाजीराव द्वितीय (1795-1818 ई.) अंतिम पेशवा था। इसे अंग्रेजों ने कानपुर के निकट बिठुर नामक स्थान पर निर्वासित कर दिया। अंतत: 1818 ई. में पूना अंग्रेजों को मिल गया। इस प्रकार मराठा परिसंघ समाप्त हो गया।

व्याख्या: सूरत की सन्धि 1775 ई. में राघोवा (रघुनाथराव) और अंग्रेज़ों के बीच हुई। इस सन्धि के अनुसार अंग्रेज़ों ने राघोवा को सैनिक सहायता देना स्वीकार कर लिया।

पुरन्दर की संधि मार्च 1776 ई. में मराठों तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई थी।

बड़गाँव समझौता जनवरी, 1779 ई. में किया गया था। यह समझौता प्रथम मराठा युद्ध (1776-82 ई.) के दौरान भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार की ओर से कर्नल करनाक और मराठों के मध्य हुआ।

सालबाई की सन्धि, मई 1782 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी और महादजी शिन्दे के बीच हुई थी।

फ़रवरी 1783 ई. में पेशवा की सरकार ने इसकी पुष्टि कर दी थी।

व्याख्या: देवगाँव की संधि अथवा 'देवगढ़ की संधि' 17 दिसम्बर, 1803 ई. को रघुजी भोंसले और अंग्रेज़ों के बीच हुई थी।

सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि, 1803 ई. में अंग्रेज़ों और दौलतराव शिन्दे के बीच हुई थी।

1804 ईसवी में अंग्रेजों ने होलकर को हराकर राजपुर घाट की संधि की थी। इस युद्ध के दौरान भारत का वाइसराय लार्ड हेस्टिंग्स था

व्याख्या: तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध वर्ष 1817-18 के मध्य प्रमुख मराठा संघ के सरदारों और अंग्रेजों के मध्य मराठा स्वतंत्रता के अंतिम प्रयास के रूप में किया गया। इस समय अंग्रेज गवर्नर लॉर्ड हेस्टिंग्स था। इस युद्ध में अंग्रेजों ने एक-एक कर के सभी मराठा शक्तियों को पराजित किया और सन्धियाँ की। पेशवा बाजीराव दिवितीय से 13 जून, 1817 को पूना की संधि, दौलत राव सिंधिया से 5 नवम्बर, 1817 को ग्वालियर की संधि, होलकर से 6 जनवरी, 1818 की मंदसौर की संधि, बाजीराव द्वितीय ने अंतत: जून 1818 में आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेजों ने पेशवा के पद को समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को कानपुर के निकट बिठुर में पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया गया। मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का रहा था।

व्याख्या: नाना फडणवीस (जन्म: 12 फरवरी 1742 ई. - मृत्यु: 13 मार्च 1800 ई) वास्तविक नाम - बालाजी जनार्दन भानु। एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा मंत्री थे , जब पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा जा रहा था उस समय वे पेशवा की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध थे।

व्याख्या: भारत के इतिहास में तीन आंग्ल-मराठा युद्ध हुए हैं। ये तीनों युद्ध 1775 ई. से 1819 ई. तक चले। ये युद्ध ब्रिटिश सेनाओं और 'मराठा महासंघ' के बीच हुए थे। इन युद्धों का परिणाम यह हुआ कि मराठा महासंघ का पूरी तरह से विनाश हो गया। मराठों में पहले से ही आपस में काफी भेदभाव थे, जिस कारण वह अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट नहीं हो सके।

व्याख्या: नाना फडणवीस (जन्म: 12 फरवरी 1742 ई. - मृत्यु: 13 मार्च 1800 ई) वास्तविक नाम - बालाजी जनार्दन भानु। एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा मंत्री थे , जब पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा जा रहा था उस समय वे पेशवा की सेवा में नियुक्त थे। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध थे।

व्याख्या: ग्रांट डफ के अनुसार 17वीं. शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मराठों का उदय आकस्मिक अग्निकांड की भांति हुआ।

व्याख्या: 1882 ई. में सालबाई की संधि से प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हो गया तथा एक-दूसरे के विजित क्षेत्र लौटा दिए गये। पेशवा माधव नारायण राव और अंग्रेजों के बीच सालबाई की संधि सम्पन्न करवाने में महादजी सिंधिया ने मध्यस्थता की। इस संधि का दूरगामी उद्देश्य मराठों और अंग्रेजों के बीच लम्बी शान्ति स्थापित करना था। इस युद्ध में किसी भी पक्ष की जीत नहीं हुई।

व्याख्या: अहमद शाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण और पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ने का तात्कालिक कारण मराठों द्वारा लाहौर से अपने वायसराय तैमूर शाह के निष्कासन का बदला लेना था। अहमद शाह अब्दाली दुर्रानी कबीले का अफगान सरदार था जो 1747 ईस्वी में नादिरशाह की हत्या के पश्चात गद्दी पर बैठा। उनहोंने 1748 ईस्वी से 1767 ई. तक मध्य भारत पर 7 बार आक्रमण किया था। उसने पहला आक्रमण 1748 ई. में किया किन्तु राजकुमार अहमद के नेत्रित्व में शाही सेना ने उसे परास्त कर दिया। तत्पश्चात अब्दाली ने 1751 ई. तथा 1752 ई. में आक्रमण कर पंजाब पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात अब्दाली ने दिल्ली पर भी आक्रमण किया तथा वहां लूटपाट की। पारस्परिक हित विरोध के कारण अब्दाली तथा मराठों के बीच तनाव निरंतर बढ़ता चला गया तथा 11 जनवरी 1761 ईस्वी को पानीपत के तृतीय युद्ध में उसने मराठों को परास्त कर मराठा शक्ति की कमर तोड़ डाली।

व्याख्या: औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर के पास हुई थी। इस समय मराठा नेतृत्व राजाराम की मृत्यु के पश्चात उसकी विधवा पत्नी ताराबाई के हाथ में था। ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी महाराज द्वितीय का राज्यभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गयी।

व्याख्या: मराठा शासक शिवाजी महाराज का 16 जून, 1674 ई. में रायगढ़ में छत्रपति के रूप में राज्यभिषेक हुआ। स्थानीय ब्राह्मण शिवाजी महाराज के राज्यरोहण के उत्सव में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि उनकी दृष्टि में शिवाजी महाराज उच्च कुल क्षत्रिय नहीं थे। अत: उनहोंने वाराणसी से एक ब्राह्मण गंगा भट्ट को इस बात के लिए सहमत किया कि वह उन्हें उच्चकुल क्षत्रिय और राजा घोषित करे। इस एक व्यवस्था में शिवाजी महाराज दक्षिणी सुल्तानों के समकक्ष हो गये और उनका दर्जा विद्रोही का न रहकर एक प्रमुख का हो गया। आया मराठा सरदारों के बीच भी शिवाजी महाराज का रूतबा बढ़ गया। उन्हें शिवाजी महाराज की स्वाधीनता स्वीकार करनी पड़ी और मीरासपट्टी कर भी चुकाना पड़ा। राज्यारोहन के बाद शिवाजी महाराज की प्रमुख उपलब्धी थी 1677 ई. में कर्नाटक क्षेत्र पर उनकी विजय जो उनहोंने कुतुबशाह के साथ मिलकर प्राप्त की थी। जिंजी, वेल्लौर और अन्य दुर्गों की विजय ने शिवाजी महाराज की प्रतिष्ठा में वृद्धि की। 4 अप्रैल, 1680 ई. में शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गयी। 20 अप्रैल, 1627 ई. को पूना के निकट शिवनेर के दुर्ग में शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था।

व्याख्या: शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके दो पत्नियों से उत्पन्न दो पुत्रों शम्भाजी एवं राजाराम के मध्य उत्तराधिकार का विवाद खड़ा हो गया। शम्भाजी 20 जुलाई, 1680 को सिंहासन पर बैठा। वह अभिमानी, क्रोधी और भोगविलासी था। शम्भाजी ने 1681 ई. में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण दी थी। अत: 21 मार्च 1689 को औरंगजेब ने शम्भाजी और उसके सहयोगी कवि कलश की हत्या करवा दी और रायगढ़ पर कब्जा कर लिया।


Correct Answers:

CLOSE
/15
Incorrect Answer..!
Correct Answer..!
Previous Post Next Post
If you find any error or want to give any suggestion, please write to us via Feedback form.