मराठा से जुड़े ऑब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर और व्याख्या - Marathas MCQ GK Quiz (Set-3)

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मराठा सम्राज्य

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 3)

व्याख्या: शिवाजी महाराज के प्रशासन में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही होते थे और उनमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। युद्ध में भी यदि कभी कोई महिला (मुस्लिम) या मुस्लिम बच्चा उनके सामने पद जाते थे, तो वे उनका आदर ही करते थे। शिवाजी महाराज की सेना में पैदल और घुड़सवारों के अलावा नौसेना भी थी। शिवाजी महाराज के पास लगभग 200 छोटी-बड़ी युद्धक नौकाएं थीं। नौ-सेना का अड्डा कोलाबा और जिंजी तट पर था। 1665 ई. के पुरन्दर संधि के उपरान्त जब शिवाजी महाराज औरंगजेब के दरबार में गया था तो उसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को 'राजा' की पदवी दी थी।

व्याख्या: नजरबंदी से शिवाजी महाराज के पलायन के बाद मुगलों के साथ शत्रुता को कम करने के लिए मुगल सरदार जसवंत सिंह ने शिवाजी महाराज व औरंगजेब के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए नए शान्ति प्रस्तावों को आगे बढ़ाया था। 1668 से 1670 के बीच की अवधि में औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को राजा की उपाधि प्रदान की थी और संभाजी को 5000 घोड़ों के साथ मुगल मनसबदार के रूप में भी बहाल किया गया था।

व्याख्या: छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन 1674 में रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ और वह 'छत्रपति' बने।

व्याख्या: 14 जून, 1674 को शिवाजी महाराज ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से अपना राज्यभिषेक रायगढ़ में करवाया तथा 'छत्रपति' की उपाधि धारण की।

व्याख्या: छत्रपति शिवाजी महाराज ने 14 जून, 1674 को रायगढ़ में सम्पूर्ण वैदिक विधि-विधानों के अनुकूल अपना राज्याभिषेक किया, जिसमें मुख्य पुरोहित का कार्य गंगाभट्ट ने सम्पन्न किया। इस अवसर पर शिवाजी महाराज ने छत्रपति शिवाजी महाराज की उपाधि धारण की तथा अपने राज्याभिषेक के वर्ष से उसने अन्य हिन्दू नरेशों की भांति एक ने सम्वत भी प्रारम्भ किया। इस अवसर पर हेनरी औक्सिंडेन उपस्थित हुआ था, उसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से शिवाजी महाराज को उपहार भेंट किये थे।

व्याख्या: अपने राज्याभिषेक के बाद शिवाजी महाराज का अंतिम महत्त्वपूर्ण सैन्य अभियान कर्नाटक अभियान था।

व्याख्या: शिवाजी महाराज को 'पहाड़ी चूहा' व 'साहसी डाकू' की संज्ञा औरंगजेब ने दी थी।

व्याख्या: अष्टप्रधान मंत्रिपरिषद का गठन शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में किया। उन्होंने अपने प्रशासन में 8 मंत्रियों की नियुक्ति की थी। जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। मई, 1666 ई. में शिवाजी महाराज शाही दरबार में उपस्थित हुए जहाँ उनके साथ तृतीय श्रेणी के मनसबदारों जैसा व्यवहार किया गया और उन्हें नजरबंद भी कर दिया गया। शिवाजी महाराज की अष्टप्रधान मंत्रिपरिषद इस प्रकार थी-

  • पंतप्रधान या पेशवा - प्रधान मंत्री
  • अमात्य या मजूमदार - वित्त मंत्री
  • शुरूनाविस / सचिव - सचिव
  • वकिस-नेविस - आंतरिक मंत्री
  • सर-ए-नौबत या सेनापति - प्रमुख कमांडर
  • सुमंत / दाबिर - विदेश मंत्री
  • न्यायाधीश - मुख्य न्यायाधीश
  • पंडित राव - उच्च पुजारी

व्याख्या: सरदेशमुखी', मराठा शासन में राजस्व पर लगाया जाने वाला कर था। मराठा साम्राज्य मुगल शासन के निरंतर विरोध से उत्पन्न होने वाला एक और शक्तिशाली क्षेत्रीय राज्य था।

पूना, मराठा साम्राज्य की राजधानी बन गई। भारत में मराठा साम्राज्य द्वारा अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में चौथ एक कर या भेंट थी।

व्याख्या: सर-ए-नौबत (सेनापति) - इसका मुख्य कार्य सेना में सैनिकों की भर्ती करना, संगठन एवं अनुशासन और साथ ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती आदि करना था।

व्याख्या: राजस्व के प्रमुख स्रोत के रूप में 'भूमिकर', 'चौथ' एवं 'सरदेशमुखी' का प्रचलन था। इसके अतिरिक्त व्यापार कर, उद्योग कर, युद्ध में प्राप्त धन, भेंट आदि भी राजस्व के स्रोत थे। शिवाजी महाराज ने ज़मींदारी एवं जागीरदारी की व्यवस्था का विरोध करते हुए 'रैय्यतवाड़ी व्यवस्था' को अपनाया था। शिवाजी महाराज के समय में कुल उपज का 33 प्रतिशत भाग राजस्व के रूप में लिया जाता था, जो कालान्तर में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया था। बंजर भूमि पर से अल्प मात्रा में कर लिया जाता था।

व्याख्या: चौथ 17वीं और 18वीं शताब्दी में एक-चौथाई राजस्व प्राप्ति को कहा जाता था। यह भारत में एक जिले की राजस्व प्राप्ति या वास्तविक संग्रहण की एक चौथाई उगाही थी। यह कर (शुल्क) ऐसे जिले से लिया जाता था, जहाँ मराठा मार्गाधिकार या स्वामित्व चाहते थे। यह नाम संस्कृत शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है - 'एक चौथाई'।

व्याख्या: आय का मुख्य साधन सरदेशमुखी था। यह राज्यों की आय का 1/10 भाग होता था। राजस्व के प्रमुख स्रोत के रूप में 'भूमिकर', 'चौथ' एवं 'सरदेशमुखी' का प्रचलन था। इसके अतिरिक्त व्यापार कर, उद्योग कर, युद्ध में प्राप्त धन, भेंट आदि भी राजस्व के स्रोत थे।

व्याख्या: शिवाजी महाराज के नियमित घुड़सवार सैनिक को पागा या बारगीर एवं अस्थायी घुड़सवार सैनिक को सिलहवार कहा जाता था।

व्याख्या: घुड़सवार सेना की सबसे छोटी इकाई में 25 जवान होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। पाँच हवलदारों का एक जुमला होता था, जिसके ऊपर एक जुमलादार होता था; दस जुमलादारों की एक हज़ारी होती थी और पाँच हज़ारियो के ऊपर एक पंजहज़ारी होता था। वह सरनोबत के अंतर्गत आता था। प्रत्येक 25 टुकड़ियों के लिए राज्य की ओर से एक नाविक और भिश्ती दिया जाता था। मराठा सैन्य व्यवस्था के विशिष्ट लक्षण किले थे। विवरणकारों के अनुसार शिवाजी महाराज के पास 250 क़िले थे, जिनकी मरम्मत पर वे बड़ी रक़म खर्च करते थे। प्रत्येक क़िले को तिहरे नियंत्रण में रखा जाता था, जिसमें एक ब्राह्मण, एक मरा, एक कुनढ़ी होता था।


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