यूरोपीय कंपनियों का आगमन से जुड़े MCQ प्रश्न और उत्तर - General Knowledge Quiz (Set-6)

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन से जुड़े 90 MCQ प्रश्न और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। Bharat me Europeans ka Aagman MCQ क्विज़ से अपनी आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

भारत में यूरोपीयों का आगमन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 6)

व्याख्या: डूप्ले का पूरा नाम 'जोसेफ़ फ़्रैक्वाय डूप्ले' था। वह फ़्राँसीसी ईस्ट कम्पनी की व्यापारिक सेवा में भारत आया और बाद को 1731 ई. में चन्द्रनगर का गवर्नर बन गया। 1741 ई. में वह पाण्डिचेरी का गवर्नर-जनरल बनाया गया और 1754 ई. तक इस पद पर रहा, जहाँ से वह वापस बुला लिया गया। वह योद्धा न होते हुए भी एक कुशल राजनीतिज्ञ और राजनेता था। भारतीय इतिहास में हुए कर्नाटक युद्धों में डूप्ले ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

व्याख्या: फ़्राँसीसी सरकार ने डूप्ले का कार्य पूरा होने के पहले ही उसे 1754 ई. में वापस स्वदेश बुला लिया और उसके स्थान पर 1 अगस्त 1754 ई. को जनरल गोडेहू को नया गवर्नर-जनरल बना दिया।

व्याख्या: 22 जनवरी, 1760 ई. को वांदीवाश के युद्ध में आयरकूट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने लाली के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सेना को परास्त कर दिया था। परिणामस्वरूप 16 जनवरी, 1761 ई, को पांडिचेरी पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।

व्याख्या: कर्नाटक का प्रथम युद्ध (1746-48 ई.) ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी यूद्ध (1740 ई.) का विस्तार था। कैप्टन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़ लिए जो युद्ध का तात्कालिक कारण बना। इसके परिणामस्वरूप मारीशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बूर्ड़ोने ने मद्रास पर अधिकार कर लिया। प्रथम कर्नाटक युद्ध कैप्टन पैराडाइज की फ़्रांसीसी सेना तथा महफूज खां के नेतृत्व वाली नवाब की सेना के मध्य लड़ा गया। फ्रांसीसियों ने नबाब की सेना को सेंटथोमे नामक स्थान पर पराजित किया। इस युद्ध की समाप्ति यूरोप में 'ए ला शापेल की संधि' (1748 ई.) के कारण हुई क्योंकि इस संधि के कारण ऑस्ट्रिया का उत्तराधिकार का युद्ध भी समाप्त हो गया। इस संधि से अंग्रेजों को मद्रास पुन: वापस मिल गया।

व्याख्या: गोडेहू की संधि या पाण्डिचेरी की संधि (1754) से कर्नाटक का दूसरा युद्ध समाप्त हुआ।

व्याख्या: 22 जनवरी, 1760 ई. को वांदीवाश के युद्ध में आयरकूट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने लाली के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सेना को परास्त कर दिया था। परिणामस्वरूप 16 जनवरी, 1761 ई, को पांडिचेरी पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।

व्याख्या: कर्नाटक के दूसरे युद्ध (1749-1754 ई.) के ठीक दो साल बाद ही कर्नाटक का तृतीय युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध 1756-1763 ई. तक चला। इस समय यूरोप में 'सप्तवर्षीय युद्ध' आरम्भ हो गया था, और इंग्लैंण्ड तथा फ़्राँस में फिर से ठन गई थी। इसके फलस्वरूप भारत में भी अंग्रेज़ों और फ़्राँसीसियों में लड़ाई शुरू हो गई। इस बार लड़ाई कर्नाटक की सीमा लांघ कर बंगाल तक में फैल गई।

व्याख्या: सन्‌ 1954 में भारत को स्वतंत्र हुए 7 वर्ष हो चुके थे। अंग्रेजों के जाने के साथ ही फ्रांस ने एक समझौते के तहत पांडिचेरी, कारिकल, चन्द्रनगर आदि क्षेत्र भारत सरकार को दे दिए, किन्तु अंग्रेजों के पूर्व आए पुर्तगालियों ने भारत में अपने पैर जमाए रखे। शेष भारत स्वतंत्र हो जाने के बाद भी पुर्तगाली शासक सालाजार भारत छोड़ने को तैयार नहीं था।

व्याख्या: इतिहासकार मैकाले के अनुसार डुप्ले पहला व्यक्ति था जिसने पहली बार अनुभव किया कि मुगल सम्राज्य के खण्डहरों पर एक यूरोपीय साम्राज्य बनाया जा सकता है।

व्याख्या: पुर्तगाली- 17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद भारत आने का रास्ता तय हुआ। वास्को डी गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की। उसने कालीकट के राजा जिसकी उपाधि 'जमोरिन'थी से व्यापार का अधिकार प्राप्त कर लिया पर वहाँ सालों से स्थापित अरबी व्यापारियों ने उसका विरोध किया। 1499 में वास्को-डी-गामा स्वदेश लौट गया और उसके वापस पहुँचने के बाद ही लोगों को भारत के सामुद्रिक मार्ग की जानकारी मिली।

डच- पुर्तगालियों की समृद्धि देख कर डच भी भारत और श्रीलंका की ओर आकर्षित हुए। सर्वप्रथम 1598 में डचों का पहला जहाज अफ्रीका और जावा के रास्ते भारत पहुँचा। 1602 में प्रथम डच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की गई जो भारत से व्यापार करने के लिए बनाई गई थी। इस समय तक अंग्रेज और फ्रांसिसी लोग भी भारत में पहुँच चुके थे पर नाविक दृष्टि से डच इनसे वरीय थे। डचो ने मसाले के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात की अधिक महत्व दिया। सन् 1602 में डचों ने अम्बोयना पर पुर्तगालियों को हरा कर अधिकार कर लिया। इसके बाद 1612 में श्रीलंका में भी डचों ने पुर्तगालियों को खदेड़ दिया।

ब्रिटिश- भारत में व्यापार हेतु आई सभी यूरोपीय कंपनीयों में से अंग्रेज (ब्रिटिश) सबसे शक्तिशाली थे। 1599ई. में जॉन मिल्डेनहॉल नामक पहला अंग्रेज भारत आया था। 31 दिसम्बर, 1600 में इंग्लैंड की तत्कालीन महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा ब्रिटिश कंपनी को भारत से 15 वर्षों तक व्यापार हेतु अधिकार पत्र प्रदान किया गया। स्थल मार्ग से लिंवेंट कंपनी को तथा समुद्री मार्ग से ईस्ट इंडिया कंपनी को अधिकार प्रत्र प्रदान किया गया था।

फ्रांसीसी- 1664 ई. में लुई 14 के शासनकाल में कॉलबर्ट द्वारा' फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी' की स्थापना की थी। 1668 ई. में फ्रांसिसी कैरो द्वारा औरंगजेब से आज्ञा प्राप्त कर सूरत में फ्रांसीसियों ने पहली फैक्ट्री स्थापित की थी। 1669 ई. में फ्रांसीसियों ने गोलकुंडा के सुल्तान की स्वीकृति प्राप्त करके मूसलीपट्टनम में अपनी दूसरी फैक्ट्री स्थापित की थी।

व्याख्या: उपरोक्त विकल्प में से फ्रांसीसी भारत में व्यापारी के रूप में सबसे अंत में आये थे : 1664 ई. में लुई 14 के शासनकाल में कॉलबर्ट द्वारा' फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी' की स्थापना की थी। 1668 ई. में फ्रांसिसी कैरो द्वारा औरंगजेब से आज्ञा प्राप्त कर सूरत में फ्रांसीसियों ने पहली फैक्ट्री स्थापित की थी। 1669 ई. में फ्रांसीसियों ने गोलकुंडा के सुल्तान की स्वीकृति प्राप्त करके मूसलीपट्टनम में अपनी दूसरी फैक्ट्री स्थापित की थी।

व्याख्या: ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 31 दिसम्बर, 1600 को लन्दन में, जॉन वाट्स और जॉर्ज ह्वाइट द्वारा की गई थी। कम्पनी ने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ से रॉयल चार्ट्र हासिल कर भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इसकी स्थापना के समय भारत में मुगल शासक अकबर का शासनकाल था। अकबर का शासनकाल 1556 ई. से 1605 ई. के मध्य था।


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