पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-5)

पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-5).

पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत)

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 5)

61. किस विदेशी यात्री ने गुर्जर-प्रतिहार वंश की 'अल-गुजर' एवं इस वंश के शासकों को 'बैरा' कहकर पुकारा?

व्याख्या: अलमसूदी अरब का एक विद्वान् और प्रमुख भूगोलवेत्ता था। 915-916 ई. में वह भारत की यात्रा करने वाला बग़दाद का विदेशी यात्री था। वह सम्भवत: गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक महिपाल (910-940 ई.) के शासन काल के दौरान ही अलमसूदी गुजरात आया था। उसने गुर्जर प्रतिहारों को 'अलगुर्जर' एवं राजा को 'बौरा' कहा था। अपनी भारत यात्रा के समय अलमसूदी राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी देता है।

62. 'कर्पूरमंजरी' नाटक के रचयिता राजशेखर को किस प्रतिहार शासक ने संरक्षण दिया?

व्याख्या: राजशेखर काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे गुर्जरवंशीय नरेश महेन्द्रपाल प्रथम एवं उनके बेटे महिपाल के गुरू एवं मंत्री थे। कर्पूरमंजरी संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार एवं काव्यमीमांसक राजशेखर द्वारा रचित प्राकृत का नाटक (सट्टक) है। प्राकृत भाषा की विशुद्ध साहित्यिक रचनाओं में इस कृति का विशिष्ट स्थान है। महेन्द्रपाल प्रथम मिहिर भोज का पुत्र और गुर्जर-प्रतिहार वंश का सातवाँ शासक था।

63. प्रतिहार स्वयं को ...... का वंशज मानते थे जो राम के प्रतिहार (अर्थात् द्वारपाल) थे

व्याख्या: गुर्जर प्रतिहार राजवंश की स्थापना नागभट्ट ने 725 ई. में की थी। उसने राम के भाई लक्ष्मण को अपना पूर्वज बताते हुए अपने वंश को सूर्यवंश की शाखा सिद्ध किया। 'गुर्जर प्रतिहार सूर्यवंश का होना सिद्द करते है तथा गुर्जर प्रतिहारो के शिलालेखो पर अंकित सूर्यदेव की कलाकृर्तिया भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती है।

64. 750 ई० में बंगाल के पाल वंश की स्थापना करनेवाले गोपाल ऐसे शासक थे जिन्हें

व्याख्या: गुप्त और पुष्यभूति वंश के ह्रास और अंत के बाद भारतवर्ष राजनीतिक दृष्टि से विच्छृंखलित हो गया और कोई भी अधिसत्ताक शक्ति नहीं बची। राजनीतिक महत्वाकांक्षियों ने विभिन्न भागों में नए-नए राजवंशों की नींव डाली। गोपाल भी उन्हीं में एक था। बौद्ध इतिहासकार तारानाथ और धर्मपाल के खालिमपुर के ताम्रलेख से ज्ञात होता है कि जनता ने अराजकता और मात्स्यन्याय का अंत करने के लिये उसे राजा चुना। वास्तव में राजा के पद पर उसका कोई लोकतांत्रिक चुनाव हुआ, यह निश्चित रूप से सही मान लेना तो कठिन है, यह अवश्य प्रतीत होता है कि अपने सत्कार्यों से उसने जनमानस में अपने लिये उच्चस्थान बना लिया था। उसका किसी राजवंश से कोई संबंध नहीं था और स्वयं वह साधारण परिवार का व्यक्ति था, जिसकी कुलीनता आगे भी कभी स्वीकृत नहीं की गई।

65. किस पाल शासक को गुजराती कवि सोडूढ़ल ने 'उत्तरापथ स्वामिन्’ कहा?

व्याख्या: गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल 770 ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने 40 वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्‍नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्‍नौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथ स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था।

66. 9वीं सदी में भारत आए अरव यात्री सुलेमान ने किस साम्राज्य को 'रूहमा कहकर संबोधित किया?

व्याख्या: पाल वंश के आरम्भ के शासकों ने आठवीं शताब्दी के मध्य से लेकर दसवीं शताब्दी के मध्य, अर्थात क़रीब 200 वर्षों तक उत्तरी भारत के पूर्वी क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व क़ायम रखा।भारत आने वाले एक अरब व्यापारी सुलेमान ने पाल साम्राज्य की शक्ति और समृद्धि की चर्चा की है। उसने पाल राज्य को 'रूहमा' कहकर पुकारा है (यह शायद धर्मपाल के छोटे रूप 'धर्म' पर आधारित है)।

67. हिन्दू विधि की एक प्रसिद्ध पुस्तक 'दायभाग' के रचयिता थे

व्याख्या: दायभाग जीमूतवाहनकृत एक प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथ है जिसके मत का प्रचार बंगाल में है। 'दायभाग' का शाब्दिक अर्थ है, पैतृक धन का विभाग अर्थात् बाप दादे या संबंधी की संपत्ति के पुत्रों, पौत्रों या संबंधियों में बाँटे जाने की व्यवस्था। जीमूतवाहन (12वीं शती) के भारत के विधि एवं धर्म के पण्डित थे। वे पारिभद्रकुल के ब्राह्मण थे।

68. रामपालचरित' की रचना किसने की?

व्याख्या: संध्याकर नंदी पाल राजाओं द्वारा आश्रय प्राप्त एक विद्वान थे। उसने 'रामपालचरित' नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की थी। संध्याकर नंदी कृत 'रामपालचरित' पुस्तक में रामपाल को पाल वंश का अंतिम शासक बताया गया है।

69. पाल वंश के पतन के बाद बंगाल का राजनीतिक नेतृत्व प्रदान किया

व्याख्या: पाल वंश के पतन के बाद बंगाल का राजनीतिक नेतृत्व प्रदान सेन वंश ने किया।सेन-वंश का मूल-सामन्तसेन को, जिसने बंगाल के सेन वंश की नीव डाली थी, कर्नाटक क्षत्रिय कहा गया है। सेन वंश के लोग सम्भवत: ब्राह्मण थे किन्तु अपने सैनिक-कर्म के कारण वे बाद में क्षत्रिय कहे जाने लगे। इसलिए उन्हें ब्रह्म क्षत्रिय भी कहा गया है।

70. सेन वंश का संस्थापक कौन था?

व्याख्या: सेन-वंश का मूल-सामन्तसेन को, जिसने बंगाल के सेन वंश की नीव डाली थी, कर्नाटक क्षत्रिय कहा गया है। इसमें सन्देह की गुंजाइश कम है कि सेनों का उद्भव दक्षिण में ही हुआ था और अवसर पाकर वे उत्तर भारत में चले आये तथा बंगाल में अपना राज्य स्थापित कर लिया। सेन वंश के लोग सम्भवत: ब्राह्मण थे किन्तु अपने सैनिक-कर्म के कारण वे बाद में क्षत्रिय कहे जाने लगे। इसलिए उन्हें ब्रह्म क्षत्रिय भी कहा गया है।

71. किसने 'कुलीन प्रथा'/'कुलीनतावाद' का आरंभ किया?

व्याख्या: बल्लाल सेन एक विचित्र शासक था। बंगाल के ब्राह्मणों और अन्य ऊंची जातियों में उसे इस बात का श्रेय दिया गया है कि आधुनिक विभाजन उसी ने कराये थे। बल्लाल सेन ने वर्ण-धर्म की रक्षा के लिए उस वैवाहिक प्रथा का प्रचार किया जिसे कुलीन प्रथा कहा जाता है। प्रत्येक जाति में उप-विभाजन, उत्पत्ति की विशुद्धता और ज्ञान पर निर्भर करता था।

72. किसने स्मृति ग्रंथ 'दान सागर' एवं ज्योतिष ग्रंथ 'अद्भुत सागर' की रचना की?

व्याख्या: अपने पिता विजयसेन की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र बल्लाल सेन 1159 ई. में सेनवंश का शासक बना।
बल्लाल सेन की माँ का नाम विलास देवी था।
बल्लाल सेन ने 'दानसागर' नामक ग्रंथ की रचना की थी।
अद्भुतसागर की रचना बल्लाल सेन ने प्रारम्भ की थी परन्तु उसे पूर्ण नहीं कर पाया।

73. कश्मीर पर लगभग 50 वर्षों तक शासन करने वाली  (लगभग 50वषों तक शासन करने वाली रानी दिद्दा मूल रूप से किस वंश की राजकुमारी थी?

व्याख्या: दिद्दा कश्मीर की पहली महिला शासिका थी। वह लोहार वंश की राजकुमारी तथा उत्पल वंश की शासिका(रानी) थी। उसने राजा भीमगुप्त की मृत्यु करवाई। वह काबुल के शाही परिवार की थी। लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था।

74. कायस्थों का एक जाति के रूप में प्रथम उल्लेख कहाँ मिलता है?

व्याख्या: कायास्थों का सर्वप्रथम उल्लेख याज्ञवलक्य स्मृति में मिलता है किन्तु एक जाति के रूप में कायस्थों का प्रथम उल्लेख गुप्तोत्तर कालीन रचना ओशनम स्मृति में मिलता है ये लेखक, गणक या दस्तावेज संग्रह कार्य से जुड़े हुए थे।

75. 'कर्पूरमंजरी' नाटक के रचयिता राजशेखर को किस प्रतिहार शासक ने संरक्षण दिया?

व्याख्या: राजशेखर काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे गुर्जरवंशीय नरेश महेन्द्रपाल प्रथम एवं उनके बेटे महिपाल के गुरू एवं मंत्री थे। कर्पूरमंजरी संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार एवं काव्यमीमांसक राजशेखर द्वारा रचित प्राकृत का नाटक (सट्टक) है। प्राकृत भाषा की विशुद्ध साहित्यिक रचनाओं में इस कृति का विशिष्ट स्थान है। महेन्द्रपाल प्रथम मिहिर भोज का पुत्र और गुर्जर-प्रतिहार वंश का सातवाँ शासक था।


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