पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-4)

पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत) से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Gk Quiz (set-4).

पूर्व मध्यकालीन भारत (उत्तर भारत)

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 4)

31. किसने सोमपुर महाविहार का निर्माण कराया था?

व्याख्या: सोमपुर महाविहार एक प्राचीन बौद्ध बिहार है जो बर्तमान में ध्वंस अवस्था में है। यह बांग्लादेश के नवगाँव जिले के बादलगाछी उपजिले के पहाड़पुर में स्थित है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध बिहारों में से एक है। 1879 में कनिंघम ने इसकी खोज की थी। पालवंश के द्बितीय राजा धर्मपाल देव ने 7वीं शताब्दी के अन्तिम काल में या 9वीं शताब्दी में इस बिहार का निर्माण कराया था।

32. भुवनेश्वर तथा पुरी के मंदिर किस शैली से निर्मित हैं?

व्याख्या: भुवनेश्वर तथा पुरी के मंदिर नागर शैली से निर्मित हैं। नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।

33. राजवंश जो कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित करने में त्रिकोणीय संघर्ष में उलझे हुए थे, वे थे
  1. चोल
  2. पाल
  3. प्रतिहार
  4. राष्ट्रकूट

व्याख्या: हर्षवर्धन के शासन काल से ही 'कन्नौज' पर नियंत्रण उत्तरी भारत पर प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता था। अरबों के आक्रमण के उपरान्त भारतीय प्रायद्वीप के अन्तर्गत तीन महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं- गुजरात एवं राजपूताना के गुर्जर-प्रतिहार, दक्कन के राष्ट्रकूट एवं बंगाल के पाल। कन्नौज पर अधिपत्य को लेकर लगभग 200 वर्षों तक इन तीन महाशक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा गया है। इस संघर्ष में अन्तिम सफलता गुर्जर-प्रतिहारों को मिली।

34. भारत में प्रथम आक्रमणकारी था

व्याख्या: भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम अरब मुहम्मद बिन कासिम था। मोहम्मद बिन कासिम ईरान के गवर्नर अल हज्जाज का सेनापति व दामाद था। हज्जाज ने 712 में कासिम को भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा।

35. जगन्नाथ मंदिर किस राज्य में है?

व्याख्या: श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है।

36. पुरी में स्थित कोणार्क के विशाल सूर्यदेव के मंदिर के निर्माता थे

व्याख्या: कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण गंग शासक नरसिंह-I ने करवाया था। शेष तीन शासकों में से कृष्णदेव राय विजयनगर का, कनिष्क प्रयाग व उसके उत्तरी क्षेत्र का तथा पुलकेशिन नर्मदा के दक्षिणी क्षेत्रों का शासक था जो कि उड़ीसा से किसी भी रूप में संबंधित नहीं थे।

37. अजयपाल संस्थापक थे-

व्याख्या: अजमेर राजस्थान प्रान्त में अजमेर जिला एवं मुख्य नगर है। यह अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है। यह नगर सातवीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था। इस नगर का मूल नाम 'अजयमेरु' था।

38. निम्नलिखित में से कौन 'कविराज' के नाम से विख्यात था?

व्याख्या: भोज परमार 'कविराज' के नाम से विख्यात था। भोज परमार मालवा के 'परमार' अथवा 'पवार वंश' का नौवाँ यशस्वी राजा था। उसने 1018-1060 ई. तक शासन किया। उसकी राजधानी धार थी। भोज परमार ने 'नवसाहसाक' अर्थात् 'नव विक्रमादित्य' की पदवी धारण की थी। भोज स्वयं एक विद्वान् था और कहा जाता है कि उसने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोश रचना, भवन निर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखीं, जो अब भी वर्तमान हैं।

39. भोज परमार द्वारा रचित पुस्तकें हैं
  1. समरांगण सूत्रधार
  2. सरस्वती कंठाभारण
  3. योग सूत्रवृत्ति
  4. आयुर्वेद सर्वस्व

व्याख्या: भोज परमार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी 'धारा नगरी' (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया। राजा भोज वाक्पति मुंज के छोटे भाई सिंधुराज का पुत्र था। रोहक इसका प्रधानमंत्री और भुवनपाल मंत्री था। कुलचंद्र, साढ़ तथा तरादित्य इसके सेनापति थे, जिनकी सहायता से भोज ने राज्य संचालन सुचारु रूप से किया।
भोज परमार ने कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। उसने लगभग 84 ग्रन्थों की रचना की थी। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. 'राजमार्तण्ड' (पतंजलि के योगसूत्र की टीका)
  2. 'सरस्वतीकण्टाभरण' (व्याकरण)
  3. 'सरस्वतीकठाभरण' (काव्यशास्त्र)
  4. 'श्रृंगारप्रकाश' (काव्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र)
  5. 'तत्त्वप्रकाश' (शैवागम पर)
  6. 'वृहद्राजमार्तण्ड' (धर्मशास्त्र)
  7. 'राजमृगांक' (चिकित्सा)
40. 'समरांगण सूत्रधार’ का विषय है

व्याख्या: भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। समरांगणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।

41. 'उसकी मृत्यु से धारा नगरी, विद्या और विद्वान् तीनों ही निराश्रित हो गये' (अद्यधारा निराधारा निरालवा सरस्वती/पण्डिता खण्डिता सर्वे भोजराजे दिवंगते)—यह उक्ति किस शासक के संबंध में है?

व्याख्या: अद्यधारा निराधारा निरालवा सरस्वती/पण्डिता खण्डिता सर्वे भोजराजे दिवंगते उक्ति राजा भोज परमार से सम्बन्धित है।

42. किस शासक के राजदरबार में जैन आचार्य हेमचन्द्र को संरक्षण मिला?

व्याख्या: हेमचन्द्र अथवा हेमचन्द्रसूरि (1078 - 1162) श्वेताम्बर परम्परा के एक महान् जैन दार्शनिक और आचार्य थे। हेमचन्द्र दर्शन, धर्म एवं आध्यात्म के महान् चिन्तक होने के साथ-साथ एक महान् वैयाकरण, आलंकारिक, महाकवि, इतिहासकार, पुराणकार, कोशकार, छन्दोऽनुशासक एवं धर्मोपदेशक के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये न्याय, व्याकरण, साहित्य, सिद्धान्त, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और योग इन सभी विषयों के प्रखर विद्वान थे। हेमचन्द्र राजा सिद्धराज जयसिंह के सभा-कवि थे। वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न आचार्य थे। 84 वर्ष की आयु में उन्होंने अनशनपूर्वक अन्त्याराधन क्रिया का शुभारम्भ किया और कुमार पाल को धर्मोपदेश देते हुए अपने ऐहिक शरीर का परित्याग कर दिया।

43. वह प्रथम भारतीय शासक कौन जिससे तुर्क आक्रान्ता मुहम्मद गोरी का सामना हुआ और जिसने मुहम्मद गोरी को परास्त किया?

व्याख्या: मूलराज द्वितीय के बाद उसका छोटा भाई भीम द्वितीय राजा बना। आबू तथा नागौर क्षेत्रों पर अधिकार के लिये उसका चाहमान शासक पृथ्वीराज से संघर्ष हुआ। बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया। 1178 ई. में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व में तुर्कों ने उसके राज्य पर आक्रमण किया, किन्तु काशहद के मैदान में भीम ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया था। इस युद्ध में नड्डुल के चाहमानों ने भीम का साथ दिया था। उसके बाद भी आक्रमण होते रहे। 1178 ईस्वी में उसके राज्य पर मुसलमानों के आक्रमण हुए, जिसका भीम ने सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।

44. किस शासक ने कालिंजर के अजेय दुर्ग का निर्माण करवाया?

व्याख्या: धंगदेव ने कालिंजर के अजेय दुर्ग का निर्माण करवाया। धंगदेव (950 से 1002 ई.) यशोवर्मन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। वह अपने पिता के समान ही पराक्रमी एवं महात्वाकांक्षी शासक था। उसे चन्देलों की वास्तविक स्वाधीनता का जन्मदाता माना जाता है। धंगदेव ने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी। धंग प्रसिद्ध विजेता होने के साथ ही उच्चकोटि का निर्माता भी था। उसके शासन काल में निर्मित खजुराहो का विश्व विख्यात मंदिर स्थापत्य कला का एक अनोखा उदाहरण है। इसमें 'जिननाथ', 'वैद्यनाथ', 'विश्वनाथ' विशेष उल्लेखनीय हैं।

45. निम्नलिखित में वह कौन-सा संवत् है, जो कल्चुरियों द्वारा प्रयुक्त किये जाने के कारण कल्चुरि संवत् भी कहलाता है?

व्याख्या: कलचुरि संवत् - इसे 'चेदि संवत्‌' और 'त्रैकूटक संवत' भी कहते हैं। यह सं. गुजरात, कोंकण एवं मध्य प्रदेश में लेखों में मिला है। इसमें 307 जोड़ने से वि॰सं॰ तथा 249 जोड़ने से ई. सन्‌ बनता है।

46. किसके राज्यकाल में लक्ष्मीधर ने 'कल्पद्रम' या 'कत्यक तहलक्ष्माधर ने 'कल्पद्रुम' या 'कृत्यकल्प तरु' नामक विधि ग्रंथ की रचना की?

व्याख्या: गोविन्द चन्द्र गहड़वाल शासक मदन चन्द्र का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। वह गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 'पृथ्वीराजरासो' से ज्ञात होता है कि गोविन्द चन्द्र ने अमीर ख़ुसरो को लाहौर से खदेड़ दिया था।

47. चन्दावर का युद्ध (1194 ई०) किसके मध्य हुआ?

व्याख्या: चंदावर का युद्ध मुहम्मद ग़ोरी और कन्नौज के राजा जयचंद के बीच लड़ा गया जिसमें जयचंद की हार और मृत्यु हुई।

48. 'नैषेध चरित' व 'खण्डन-खण्ड-खाद्य' के रचयिता श्रीहर्ष किस शासक के राजकवि थे?

व्याख्या: श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘नैषधीयचरित्’ महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है।

49. निम्नलिखित शहरों में से किसमें लिंगराज मंदिर अवस्थित है?

व्याख्या: लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है तथा इस नगर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित है। इसे ललाटेडुकेशरी ने 617-657 ई. में बनवाया था।

50. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए :
सूची-I (ग्रंथकार)
  1. कल्हण
  2. बिल्हण
  3. जयनक
  4. सोमदेव
सूची-II (ग्रंथ)
  1. राजतरंगिनी
  2. विक्र्मांकदेव चरित
  3. पृथ्वी विजय
  4. ललित विग्रह राज
51. किस पर स्वामित्व के लिए पाल, प्रतिहार व राष्ट्रकूट के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ?

व्याख्या: हर्षवर्धन के शासन काल से ही 'कन्नौज' पर नियंत्रण उत्तरी भारत पर प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता था। अरबों के आक्रमण के उपरान्त भारतीय प्रायद्वीप के अन्तर्गत तीन महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं- गुजरात एवं राजपूताना के गुर्जर-प्रतिहार, दक्कन के राष्ट्रकूट एवं बंगाल के पाल। कन्नौज पर अधिपत्य को लेकर लगभग 200 वर्षों तक इन तीन महाशक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा गया है। इस संघर्ष में अन्तिम सफलता गुर्जर-प्रतिहारों को मिली।

52. त्रिपक्षीय संघर्ष की पहल किसने की?

व्याख्या: त्रिपक्षीय संघर्ष की पहल वत्सराज में की थी।वत्सराज राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव धारावर्ष का समकालीन था। वह 'सम्राट' की उपाधि धारण करने वाला गुर्जर प्रतिहार वंश का पहला शासक था। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

53. त्रिपक्षीय संघर्ष का आरंभ किस सदी में हुआ?

व्याख्या: 8वीं सदी के दौरान, कन्नौज पर नियंत्रण के लिए भारत के तीन प्रमुख साम्राज्यों जिनके नाम पालों, प्रतिहार और राष्ट्रकूट थे, के बीच संघर्ष हुआ। पालों का भारत के पूर्वी भागों पर शासन था जबकि प्रतिहार के नियंत्रण में पश्चिमी भारत (अवंती-जालौर क्षेत्र) था। राष्ट्रकूटों ने भारत के डक्कन क्षेत्र पर शासन किया था। इन तीन राजवंशों के बीच कन्नौज पर नियंत्रण के लिए हुए संघर्ष को भारतीय इतिहास में त्रिपक्षीय संघर्ष के रूप में जाना जाता है।

54. त्रिपक्षीय संघर्ष का आरंभ और अंत किस राजवंश ने किया?

व्याख्या: त्रिपक्षीय संघर्ष की पहल वत्सराज में की थी वह 'सम्राट' की उपाधि धारण करने वाला गुर्जर प्रतिहार वंश का पहला शासक था। 200 वर्षों तक इन तीन (पालों, प्रतिहार और राष्ट्रकूट) महाशक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा गया है। इस संघर्ष में अन्तिम सफलता गुर्जर-प्रतिहारों को मिली।

55. त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर उत्तर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने वाली और दक्षिण से उत्तर पर आक्रमण करनेवाली दक्षिण की प्रथम शक्ति थे

व्याख्या: त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर उत्तर भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने वाली और दक्षिण से उत्तर पर आक्रमण करनेवाली दक्षिण की प्रथम शक्ति राष्ट्रकूट बने। राष्ट्रकूट दक्षिण भारत, मध्य भारत और उत्तरी भारत के बड़े भूभाग पर राज्य करने वाला राजवंश था। इनका शासनकाल लगभग छठी से तेरहवीं शताब्दी के मध्य था।

56. पाल वंश का संस्थापक था

व्याख्या: गोपाल प्रथम गौड़ (उत्तरी बंगाल) पाल वंश का प्रथम राजा तथा बंगाल और बिहार पर लगभग चार शताब्दी तक शासन करने वाले पाल वंश का संस्थापक था। इसी के शासनकाल में, रामचरित्र को लिख गया था जिसमे यह उल्लेख किया गया है कि पाला राजवंश सौर राजवंश के वंशज थे।

57. पाल वंश की राजधानी थी

व्याख्या: गोपाल (750 ई.) पाल वंश का संस्थापक था। मुंगेर इस वंश की राजधानी थी।

58. राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक था

व्याख्या: दन्तिदुर्ग ने चालुक्य साम्राज्य को पराजित कर राष्ट्रकूट साम्राज्य की नींव डाली। दंतिदुर्ग ने उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ दान किया था, तथा उन्होंने महाराजाधिराज,परमेश्वर परमंभट्टारक इत्यादि उपाधियाँ धारण की थी। दंतिदुर्ग का उतराधिकारी कृष्ण प्रथम था, जिसने एलोरा के सुप्रसिद्ध कैलाश नाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।

59. राष्ट्रकूट वंश की राजधानी थी

व्याख्या: राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई. में दंतिदुर्ग ने की थी। राष्ट्रकूट वंश के उत्कर्ष का प्रारम्भ दन्तिदुर्ग द्वारा हुआ। उसने माल्यखेत या मालखंड को अपनी राजधानी बनाया। उसने कांची, कलिंग, कोशल, श्रीशैल, मालवा, लाट एवं टंक पर विजय प्राप्त कर राष्ट्रकूट साम्राज्य को विस्तृत बनाया।

60. किस प्रतिहार शासक ने 'आदिवराह' की उपाधि धारण की?

व्याख्या: आदिवराह एक प्रसिद्ध उपाधि थी, जिसे कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजा मिहिर भोज (840-890 ई.) ने धारण किया था। मिहिर भोज के चाँदी के सिक्कों पर यह नाम अंकित मिलता है, जो उत्तरी भारत में बहुतायत से मिले हैं। मिहिर भोज ने कई अन्य नामों से भी उपाधियाँ धारण की थीं, जैसे- 'मिहिरभोज' (ग्वालियर अभिलेख में), 'प्रभास' (दौलतपुर अभिलेख में), 'आदिवराह' (ग्वालियर चतुर्भुज अभिलेख में)।


Correct Answers:

CLOSE
/15
Incorrect Answer..!
Correct Answer..!
Previous Post Next Post
If you find any error or want to give any suggestion, please write to us via Feedback form.