ब्रिटिश शासन का प्रभाव MCQ प्रश्न उत्तर और व्याख्या - GK Quiz (Set-2)

ब्रिटिश शासन का भारत के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव MCQ प्रश्न उत्तर और विस्तृत समाधान के साथ। भारत में ब्रिटिश शासन का प्रभाव MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

ब्रिटिश शासन का भारत के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 2)

व्याख्या:अंग्रेजी शासन के दौरान बिहार अफीम की खेती के लिए प्रसिद्ध था तथा इसका व्यापार ब्रिटिश सरकार द्वारा पड़ोसी देशों में किया जाता था। यूरोप वासियों को सर्वोत्तम शोरा और अफीम बिहार से प्राप्त होता था।

व्याख्या: कृषि के बाद इसी क्षेत्र का स्थान था, किन्तु ब्रिटिश माल की प्रतिस्पर्धा तथा भेदभावपूर्ण ब्रिटिश नीति के कारण सूती वस्त्र उद्योग का पतन हो गया। अंग्रेजो के आने से पूर्व बंगाल में जूट के वस्त्र की बुनाई भी होती थी। लेकिन 1835 ई. के बाद बंगाल में जूट हस्तशिल्प की भी धक्का लगा। 18 वीं सदी में बंगाल में वस्त्र-उद्योग के पतन के कई कारण निम्न है-

  • ब्रिटेन को निर्यात करने वाले माल पर उच्च तटकर।
  • भारत पर मुक्त व्यापार प्रणाली को थोपना।
  • भारत से कच्चे माल का निर्यात।
  • भारतीय माल पर आते-जाते समय कर।
  • भारतीय शिल्पियों को अपने रहस्य देने के लिए वाध्य करना।
  • लंकाशायर व मानचेस्टर के सूती माल की प्रतिस्पर्धा।

व्याख्या: नीलदर्पण बांग्ला का प्रसिद्ध नाटक है जिसके रचयिता दीनबन्धु मित्र हैं। इसकी रचना 1858-59 में हुई। यह बंगाल में नील विद्रोह का अन्दोलन का कारण बना। यह बंगाली रंगमंच के विकास का अग्रदूत भी बना। कोलकाता के 'नेशनल थिएटर' में सन् 1872 में खेला गया यह पहला व्यावसायिक नाटक था।

व्याख्या: कहवा या कॉफ़ी का पौधा भारत में 18वीं शताब्दी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा लाया गया था। सन् 1798 में तैलीचेरी के निकट यह प्रयोगात्मक रूप से बोया गया, किन्तु सन् 1830 से ही इसे पैदा किया जाने लगा।

व्याख्या: दादाभाई नौरोजी को 'महान वृद्ध पुरुष' (ग्रैंड ओल्डमैन ऑफ़ इण्डिया) कहा जाता है। यह प्रथम भारतीय थे जिन्हें 1892 ई. में उदारवादी दल की ओर से ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स का सदस्य चुना गया। इन्होने ही सर्वप्रथम भारत में राष्ट्रिय आय के आंकड़ो की गणना करने का प्रयास किया।

इन्होने रहनुमाई मजदयासन सभा तथा 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना की तथा 1867-68 ई. में अपनी रचना 'पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रुल इन इंडिया' में धन का अपवाह' (Drain of Wealth) सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें यह दर्शाया कि किस प्रकार भारतीय धन ब्रिटेन द्वारा लूटा जा रहा था।

व्याख्या: 1872 में यह ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के अधीन पहली बार कराई गयी थी। उसके बाद यह हर 10 वर्ष बाद कराई गयी। हालाकि भारत की पहली संपूर्ण जनगणना 1881 में हुई।

व्याख्या: रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था मद्रास, बम्बई एवं असम के अधिकाँश भागो में लागू की गई थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था को सर्वप्रथम 1807 ई. में कैप्टन रीड के प्रयासों से मद्रास के बारामहल जिले में लागू किया गया।

टॉमस मुनरो उस समय मद्रास के गवर्नर थे। इस प्रकार रैयतवाड़ी व्यवस्था के जन्मदाता टॉमस मुनरो एवं कर्नल रीड थे। इस व्यवस्था से प्रत्यक्ष रूप से उपज का 55 प्रतिशत से 66 प्रतिशत का भू-राजस्व कम्पनी द्वारा वसूला गया। उल्लेखनीय है कि रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भार का कुल 51 प्रतिशत (सर्वाधिक) हिस्सा शामिल था।

व्याख्या: देश में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन (जो कि अब छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल) से ठाणे के बीच चलाई गई थी। इस ट्रेन में लगभग 400 यात्रियों ने सफर किया था।

व्याख्या: स्वतंत्रता पूर्व अवधि में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में आधुनिक शिक्षा के प्रसार का मुख्य उद्देश्य छोटे प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति हेतु शिक्षित भारतीयों की आवश्यकता था।

व्याख्या: इसमें जमींदारों को कर संग्रह कि कुल राशि का 89 प्रतिशत कंपनी को देना पडता था और 11 प्रतिशत अपने पास रखना होता था।

स्थायी बंदोबस्तः इसे 'जमींदारी व्यवस्था' या 'इस्तमरारी व्यवस्था' के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा, यू.पी. के बनारस प्रखंड तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया।

स्थाई बन्दोबस्त व्यवस्था तत्कालीन ब्रिटिश भारत की लगभग 19% भूमि पर लागू की गई। सर्वप्रथम यह व्यवस्था बंगाल में लागू की गई। व्यवस्था के अंतर्गत ज़मींदारों से मालगुज़ारी के रूप में एक निश्चित आय हमेशा के लिए निश्चित कर ली जाती थी।

व्याख्या: 1793 में जब स्थायी बंदोबस्त लागू किया गया था तब लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल के गवर्नर-जनरल थे। स्थायी बंदोबस्त को बंगाल के स्थायी बंदोबस्त के रूप में भी जाना जाता है, यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच भू-राजस्व तय करने के लिए एक समझौता था।

  • भारत में अंग्रेजों के लिए भू-राजस्व आय का प्रमुख स्रोत था। स्थायी बंदोबस्त ऐसी ही एक भू-राजस्व व्यवस्था थी।
  • इसे पहले बंगाल और बिहार में पेश किया गया था और बाद में इसे मद्रास और वाराणसी में पेश किया गया था।
  • इस व्यवस्था को जमींदारी व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता था।
मार्टीन बर्ड को उत्तरी भारत में भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक (Father of Land-settements in Northern India) के नाम से याद किया जाता है।

व्याख्या: रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था मद्रास, बम्बई एवं असम के अधिकाँश भागो में लागू की गई थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था को सर्वप्रथम 1807 ई. में कैप्टन रीड के प्रयासों से मद्रास के बारामहल जिले में लागू किया गया। टॉमस मुनरो उस समय मद्रास के गवर्नर थे। इस प्रकार रैयतवाड़ी व्यवस्था के जन्मदाता टॉमस मुनरो एवं कर्नल रीड थे। इस व्यवस्था से प्रत्यक्ष रूप से उपज का 55 प्रतिशत से 66 प्रतिशत का भू-राजस्व कम्पनी द्वारा वसूला गया। उल्लेखनीय है कि रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भार का कुल 51 प्रतिशत (सर्वाधिक) हिस्सा शामिल था।

व्याख्या: भारत में उपनिवेशी काल में 'लिटली आयोग' (1929) का उद्देश्य श्रमिकों की मौजूदा परिस्थितियों पर प्रतिवेदन पर सिफारिशें प्रस्तुत करना था।

व्याख्या: वास्तव में पहला भारतीय बैंक 'अवध कॉमर्शियल बैंक' (A Wadh Commerical Bank) 1881 में कायम किया गया। इसके बाद 1894 में पंजाब नेशनल बैंक और 1901 में पीपुल्स बैंक (Peoples Bank) स्थापित किया गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1949 ई. में सर्वप्रथम भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया।
पहला संयुक्त स्कन्ध बैंक, जिसका नाम बैंक ऑफ़ हिन्दुस्तान था, जो कलकता में चालू किया गया था, इस बैंक के प्रबंधकर्ता यूरोपियन थे।


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