भक्ति आन्दोलन से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Bhakti Movement GK Quiz (set-2)

भक्ति आन्दोलन से जुड़े ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन एवं व्याख्या - Bhakti Movement GK Quiz (set-2).

भक्ति आंदोलन

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 2)

व्याख्या: प्रथम सिक्‍ख गुरु और सिक्‍ख धर्म के प्रवर्तक, गुरु नानक जी भी निर्गुण भक्ति संत थे और समाज सुधारक थे। गुरु नानक इस सिद्धांत के प्रतिपादक थे कि मनुष्य के लिए जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी, सवर्ण-अवर्ण कोई कसौटी नहीं, आत्मा की पवित्रता के लिए आवश्यक है कि उसकी मान्यता, आस्था, विश्वास एक ईश्वर में हो और वह सभी मनुष्यों को एक समान समझे।

व्याख्या: संत शिवनारायण जी शिवनारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते है। ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासक मुहम्मद शाह 'रंगीला' उनकी आध्यात्मिक साधना से प्रभावित होकर उनकी शिष्यता ग्रहण कर ली थी।

व्याख्या: शंकरदेव, असमी भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि हैं जिनका जन्म नवगाँव ज़िले में बरदौवा के समीप अलिपुखुरी में हुआ। इनकी जन्मतिथि अब भी विवादास्पद है, यद्यपि प्राय: यह 1371 शक मानी जाती है। जन्म के कुछ दिन पश्चात्‌ इनकी माता सत्यसंध्या का निधन हो गया।

व्याख्या: चंडीदास राधाकृष्ण लीला साहित्य के आदि कवि माने जाते हैं। इन्हें बंगाली वैष्णव समाज में बड़ा मान प्राप्त है। चंडीदास को द्विज चंडीदास, दीन चंडीदास, बडु चंडीदास, अनंतबडु चंडीदास इन कई नामों से युक्त पद प्राप्त थे।

व्याख्या: नरसिंह मेहता (जन्म 1414 ई. जूनागढ़) गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम कवि थे। इनकी मुख्य रचनाएं -‘सुदामा चरित’, ‘गोविन्द गमन’, ‘चातुरियो’, ‘सुरत संग्राम’, ‘श्रृंगार माला’, ‘वंसतनापदो’, ‘कृष्ण जन्मना पदो’ आदि। नरसी मेहता हर समय कृष्ण की भक्ति में तल्लीन रहते थे। छुआछूत वे नहीं मानते थे और हरिजनों की बस्ती में जाकर उनके साथ कीर्तन किया करते थे। इससे बिरादरी ने उनका बहिष्कार तक कर दिया था, पर वे अपने मत से डिगे नहीं।

व्याख्या: रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे। वह ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे। रामानुज ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट अद्वैत वेदान्त लिखा था। रामानुजाचार्य ने वेदान्त के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी आलवार सन्तों के भक्ति-दर्शन तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचारों का आधार बनाया।

व्याख्या: शंकरदेव ने जाति प्रथा की निंदा की और जनता में इनकी मातृभाषा द्वारा अपने विचारों का प्रचार किया।उनके धर्म जो सामान्यत: महापुरुषीय धर्म के रूप में जाना जाता है का असम के जन जीवन के सभी पक्षों पर व्यापक और दूरगामी प्रभाव पड़ा।

व्याख्या: शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के केरल में अवस्थित निम्बूदरीपाद ब्राह्मणों के 'कालडी़ ग्राम' में 788 ई. में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर भारत में व्यतीत किया। उनके द्वारा स्थापित 'अद्वैत वेदांत सम्प्रदाय' 9वीं शताब्दी में काफ़ी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवन प्रदान करने का प्रयत्न किया। उन्होंने ईश्वर को पूर्ण वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया और साथ ही इस संसार को भ्रम या माया बताया।

व्याख्या: भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ जो कालान्तर में (800 ई से 1700 ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में फैल गया। इस हिन्‍दू क्रांतिकारी अभियान के नेता शंकराचार्य थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे। इस अभियान को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। इस अभियान की प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा।

व्याख्या: वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु और उनके स्वरूपों को आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत मूल रूप से चार संप्रदाय आते हैं।
रामानुजसम्प्रदाय ,माध्वसम्प्रदाय ,वल्लभसम्प्रदाय ,निम्बार्कसम्प्रदाय।

व्याख्या: हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की और इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता। इनका जन्म 788 ई. में कालड़ी ग्राम केरल में हुआ था।इनकी मृत्यु 820 में केदारनाथ में हुई थी। शंकराचार्य की मुख्य रचनाएं है उपनिषदों, श्रीमद्भगवद गीता एवं ब्रह्मसूत्र पर भाष्य हैं। चार पीठों (मठ) की स्थापना करना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय कार्य रहा, जो आज भी मौजूद है।

व्याख्या: बीजक' कबीर वाणी का प्रामाणिक ग्रन्थ कहा जाता है। यह कबीर द्वारा ही लिखा गया है।बीजक में कबीर ने अपने नामवाची कबीर, कबिरा, कबीरा, कबिरन, कबीरन आदि अनेक शब्दों का प्रयोग किया है।

व्याख्या: मीराबाई (1498-1546) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। मीरा कृष्ण की भक्त हैं।

व्याख्या: उदयपुर के महाराजा भोजराज मीराबाई पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्ततोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ। पति की म्रत्यू पर भी मीरा माता ने अपना श्रंगार नही उतारा ॥ क्योकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी


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