नरमपंथी या उदरवादी चरण ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं व्याख्या - GK Quiz (Set-2)

उदारवादी चरण ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन और उत्तर विस्तृत समाधान के साथ। उदारवादी चरण MCQ क्विज़, आगामी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC की तैयारी करें।

उदारवादी चरण

समान्य ज्ञान क्विज (सेट - 2)

व्याख्या: गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में 'भारत सेवक समाज' की स्थापना की, ताकि देश के नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था।

व्याख्या: कांग्रेस की स्थापना के वास्तविक उद्देश्य:

  1. देश के हितों की रक्षा करने वाले भारतीयों के बीच मित्रता और संपर्क बढ़ाना।
  2. जातिगत, धर्मगत तथा प्रतीय विभेदों को मिटाकर राष्ट्रीय एकता की भावना को विकसित करना।
  3. राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों पर शिक्षित वर्गों को एकजुट करना।
  4. भविष्य के रानीतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा सुनिश्चित करना।

व्याख्या: भारत के भीतर, कर्जन ने शिक्षा, सिंचाई, पुलिस और प्रशासन की अन्य शाखाओं की जांच के लिए कई आयोगों की नियुक्ति की, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर वायसराय के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान कानून बनाया गया था। अगस्त 1904 में गवर्नर-जनरल को फिर से नियुक्त किया गया, उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन की अध्यक्षता की।

उन्होंने 1899 में कलकत्ता निगम अधिनियम पारित किया जिसने ब्रिटिश बहुमत देते हुए भारत से निर्वाचित सदस्यों की संख्या कम कर दी। उन्होंने 1904 का भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम भी पारित किया, जिसने भारतीय विश्वविद्यालयों पर सख्त आधिकारिक नियंत्रण लगाया क्योंकि वह उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का केंद्र मानते थे।

व्याख्या: लिटन 1878 भारतीय सिविल सेवा में भारतीयों के प्रवेश को प्रतिबन्धित करना चाहता था, परन्तु भारत सचिव की सहमति नहीं थी तो उसने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की अधिकतम आयु को 21 से घटा के 19 वर्ष कर दी।

व्याख्या: इल्बर्ट बिल, वायसराय के क़ानून सदस्य, 'सर सी. पी. इल्बर्ट' ने 1883 ई. में पेश किया था। यह मुख्य रूप से अंग्रेज़ अपराधियों के मामलों पर भारत के जजों द्वारा सुनवाई से सम्बन्धित था। अंग्रेज़ों ने इस बिल का तीव्र विरोध किया, क्योंकि वे किसी भी भारतीय जज से अपने केस की सुनवाई नहीं चाहते थे। भारतीय जनता ने इस बिल का जोरदार स्वागत किया।

अंग्रेज़ों के तीव्र विरोध के आगे अन्तत: सरकार को झुकना पड़ा और उसने इल्बर्ट बिल में संशोधन कर दिया। तत्कालीन वायसराय रिपन को भी झुकना पड़ा और अंत में एक ऐसा समझौता हो गया जिसके अनुसार ऐसा निर्णय हुआ कि जो उद्देश्य था वह पूरा नहीं हो सका।

व्याख्या: सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एक प्रसिद्ध भारतीय स्वाधीनता सेनानी थे।उन्होंने 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' की स्थापना की जो भारत के प्रारंभिक राजनैतिक संगठनों में एक था। आगे जाकर वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने। वे 'राष्ट्रगुरु' के उपनाम से भी जाने गए। उन्हें 1895 में पुणे में और 1902 में अहमदाबाद में कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया।

व्याख्या: 1885 में दादाभाई नौरोजी ने एओ ह्यूम द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह तीन बार (1886, 1893, 1906) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने पार्टी में नरमपंथी और गरमपंथियों के बीच हो रहे विभाजन को रोका।

व्याख्या: बाल गंगाधर तिलक जन्म से श्री केशव गंगाधर टिळक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

व्याख्या: भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे जिन्होंने कलकत्ते के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था।

व्याख्या: 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

व्याख्या: एलेन ओक्टेवियन ह्यूम ब्रिटिशकालीन भारत में सिविल सेवा के अधिकारी एवं राजनैतिक सुधारक थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे।1849 में अधिकारी बनकर सर्वप्रथम उत्तर प्रान्त के जनपद इटावा में आये। 1857 के प्रथम विद्रोह के सममय वे इटावा के कलक्टर थे।

व्याख्या: नरम दल की शुरुआत भारत की आज़ादी से पूर्व कांग्रेस पार्टी के दो खेमों में विभाजित होने के कारण हुई। जिसमें एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरू थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरू चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजों के साथ कोई संयोजक सरकार बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया।

व्याख्या: बंगाल विभाजन पहली बार 1905 ई. में वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा किया गया था। विभाजन के सम्बन्ध में कर्ज़न का तर्क था कि तत्कालीन बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे, काफ़ी विस्तृत है और अकेला लेफ्टिनेंट गवर्नर उसका प्रशासन भली-भाँति नहीं चला सकता है। इसके फलस्वरूप पूर्वी बंगाल के ज़िलों की प्राय: उपेक्षा होती है, जहाँ मुसलमान अधिक संख्या में हैं। इसीलिए उत्तरी और पूर्वी बंगाल के राजशाही, ढाका तथा चटगाँव डिवीजन में आने वाले पन्द्रह ज़िलों को असम में मिला दिया गया और पूर्वी बंगाल तथा असम नाम से एक नया प्रान्त बना दिया गया और उसे बंगाल से अलग कर दिया गया।

व्याख्या: लॉर्ड कैनिंग ने भारत के गवर्नर-जनरल (1856-1860) और फिर भारत के प्रथम वायसराय (1858) के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपने ही देशवासियों से "क्लीमेंसी कैनिंग" की उपहासपूर्ण उपाधि अर्जित की थी।

उन्होंने भारत में तीन आधुनिक विश्वविद्यालयों कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे की स्थापना की थी। उन्होंने चूक के सिद्धांत को वापस ले लिया और पोर्टफोलियो प्रणाली की शुरुआत की।

उनके कार्यकाल के दौरान, 1858 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया, वायसराय का कार्यालय बनाया गया, और 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम, भारत में एक पोर्टफोलियो प्रणाली की शुरुआत की गई थी।

उन्होंने 1857 के विद्रोह का भी दमन किया और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, भारतीय दंड संहिता (1858), और बंगाल किराया अधिनियम (1859) जैसे महत्वपूर्ण कानूनी अधिनियम पेश किए थे। उन्होंने प्रायोगिक आधार पर आयकर की शुरुआत की थी।

व्याख्या: दरुद्दीन तैयबजी का जन्म बम्बई अब के मुंबई प्रान्त में8 अक्टूबर1844 को एक धनी इस्लामी परिवार में हुआ था। उन्होंने मुंबई में 'मुम्बई प्रेसिडेंट एसोसिएशन' था मुसलमानो में शिक्षा का प्रचार करने के लिए 'अंजुमने इस्लाम' नामक संस्था बनाई। बाल गंगाधर तिलक पर राष्ट्रद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक फैसला तैयबजी ने ही किया। 9 अगस्त1909 को उनकी मृत्यु हो गई।मृत्यु के पूर्व वो भरतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी आसीन हुए।


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