ऊष्मा ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं उत्तर व्याख्या सहित | Heat GK Quiz (Set-5)

ऊष्मा (Heat) से ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC के लिए महत्वपूर्ण है।

ऊष्मा समान्य ज्ञान

व्याख्या: वाष्पीकरण की दर द्रव के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती। यह द्रव के तापमान, उसके तलक्षेत्र एवं वायुदाब पर निर्भर करती है।

व्याख्या: ऊंचे भागों में वातावरण का तापमान आमतौर पर पानी के जमने के बिंदु से निम्न होता है। अत: ऊंचे क्षेत्रों में वायु में उपस्थित वाष्पित जल बर्फ में परिवर्तित होकर पहाड़ी क्षेत्रों में एकत्र हो जाते है। इसके विपरीत निचले भागों में वातावरण का तापमान पानी के जमने के बिंदु से ऊपर होता है। अत: वाष्पित जल बर्फ न बनकर मोटी-मोटी बूंदों के आकार में वर्षा बनकर बरसता है।

व्याख्या: बर्फ पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी का 90 फीसदी हिस्सा बर्फ से परावर्तित हो जाता है और जैसा कि हम जानते हैं कि सूरज के प्रकाश से ही गरमी फैलती है तो जब बर्फ से प्रकाश परावर्तित हो जाता है तो उसमें गर्माहट भी नही फैल पाती और बर्फ पिघल नही पाती है पहाड़ों पर जब भी बर्फ पिघलती है, तो यह सूर्य के प्रकाश और गर्मी के कारण नहीं पिघलती है बल्कि यह समुद्र से आने वाली गर्म हवाओं के कारण पिघलती है।

व्याख्या: जब हम पहाड़ों पर अथवा ऊंचाई पर जाते हैं तो वहां पर वायुमंडलीय दाब सामान्य वायुमंडलीय दाब (1 atm) से कम होता है। इस कारण पानी का क्वथनांक घट जाता है अर्थात पानी कम ताप पर ही उबलने लगता है। स्वाभाविक रुप से कम ताप का अर्थ कम ऊष्मा से है। इस कारण खाने को ऊष्मा कम मिलती है जिसके कारण खाना देर से पकता है।

व्याख्या: जब वायु की गति बढ़ जाती है तो जलवाष्प के कण वायु के साथ उड़ जाते हैं, जिससे आसपास के स्थान में जलवाष्प की मात्रा कम हो जाती है और वाष्पन की दर बढ़ जाती है।

व्याख्या: मिट्टी के बर्तन में रखा पानी वाष्पीकरण के कारण गर्मियों में भी ठंडा रहता है। मिट्टी के बर्तन की दीवारों में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं और पानी के कुछ अणु इन छिद्रों से लगातार बर्तन के बाहर रिसते रहते हैं। यह पानी लगातार वाष्पित होता रहता है और बचे हुए पानी से वाष्पीकरण के लिए आवश्यक गुप्त ऊष्मा लेता है। इस प्रकार, बचा हुआ पानी गर्मी खो देता है और ठंडा हो जाता है।

व्याख्या: दबाव बढ़ने पर बर्फ का गलनांक घटता है क्योंकि दाब बढ़ने पर आयतन घटता है और पानी की मात्रा बर्फ से घट जाती है।

व्याख्या: बर्फ के पिघलने पर जल स्तर समान रहता है। एक तैरने वाली वस्तु अपने स्वयं के वजन के बराबर पानी की मात्रा को विस्थापित करती है। जब पानी जम जाता है तो यह फैलता (विस्थापित) होता है. जमे हुए पानी के एक औंस में एक औंस तरल पानी की तुलना में अधिक मात्रा होती है  जब पानी ठोस या गैस में बदलता है, तो पानी का केवल भौतिक रूप बदलता है इसके अणु समान रहते हैं।

व्याख्या: कुकर प्रेशर कुकर में खाना जल्दी पकता है क्योंकि खाना पकने के दौरान बनने वाली भाप इसमें बाहर नहीं निकल पाती है। आंच के कारण जैसे-जैसे पानी का क्वथनांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे कुकर के अंदर का दबाव या प्रेशर भी बढ़ता जाता है। यही भाप धीरे-धीरे कुकर में मौजूद खाद्य पदार्थ पर दबाव बढ़ाती जाती है जिससे वो जल्दी पक जाते हैं।

व्याख्या: किसी तत्त्व या यौगिक का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन वाष्पीकरण कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार का होता है- वाष्पन तथा क्वथन।

वाष्पन (Evaporation): किसी द्रव के सतह के कणों का गैस में बदलने की वह प्रक्रिया है जिसमें द्रव की सतह के ठीक ऊपर स्थित गैस संतृप्त न हो।

क्वथन (Boiling): क्वथन या आम भाषा में उबाल, एक भौतिक प्रक्रिया है जिसके दौरान किसी द्रव के क्वथनांक बिंदु तक गर्म हो जाने पर उसकी सतह से तेज़ी से वाष्पीकरण होता है। तकनीकी भाषा में, ऊष्मा द्वारा द्रव की सतह पर स्थित अणुओं की गतिज ऊर्जा उनके ऊपर लग रहे वायुमंडलीय वाष्पदाब के बराबर हो जाने की स्थिति को क्वथन कहते हैं।

व्याख्या: सामान्य परिस्थितियों में, जल का क्वथनांक 100°C होता है जो 212°F के बराबर होता है। जल का क्वथनांक वायुमंडलीय दाब पर निर्भर करता है, जो ऊंचाई के अनुसार बदलता रहता है।

  • ऊंचाई बढ़ने पर जल निम्न तापमान पर उबलता है।
  • यदि वायुमंडलीय दाब बढ़ाते हैं (समुद्र तल पर वापस आने या इससे नीचे जाते हैं) तो जल उच्च तापमान पर उबलता है।

जल का क्वथनांक भी जल की शुद्धता पर निर्भर करता है। जल में अशुद्धियाँ होती हैं (जैसे नमकीन जल) शुद्ध जल की तुलना में उच्च तापमान पर उबलता है। इस घटना को क्वथनांक उन्नयन कहा जाता है। यह पदार्थ के सहसंयोजक गुणों में से एक है।

व्याख्या: जब कोई पदार्थ एक भौतिक अवस्था (जैसे ठोस) से दूसरी भौतिक अवस्था (जैसे द्रव) में परिवर्तित होता है तो एक नियत ताप पर उसे कुछ उष्मा प्रदान करनी पड़ती है या वह एक नियत ताप पर उष्मा प्रदान करता है। किसी पदार्थ की गुप्त उष्मा (latent heat), उष्मा की वह मात्रा है जो उसके इकाई मात्रा द्वारा अवस्था परिवर्तन (change of state) के समय अवषोषित की जाती है या मुक्त की जाती है। इसके अलावा पदार्थ जब अपनी कला (फेज) बदलते हैं तब भी गुप्त उष्मा के बराबर उष्मा का अदान/प्रदान करना पड़ता है।

व्याख्या: ठोस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा को ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

व्याख्या: नियत ताप पर पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसे पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते है। बर्फ की गलन की गुप्त ऊष्मा का मान 80 कैलोरी/ग्राम है।

व्याख्या: जल वाष्प की गुप्त ऊष्मा 540 किलो-कैलोरी/किग्रा होती है अर्थात् 1 किग्रा जल 100°C पर भाप बनने के लिए 540 किलो कैलोरी ऊष्मा लेता है।

व्याख्या: उष्मागतिकी के प्रथम नियम द्वारा ऊर्जा संरक्षण के नियम को जाना जाता है। ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम: ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट की जा सकती है। केवल इसके एक रूप की ऊर्जा को दुसरे रूप में ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

व्याख्या: ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम: ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट की जा सकती है। केवल इसके एक रूप की ऊर्जा को दुसरे रूप में ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। W = U - U0 ( कार्य की मात्रा का W) यह समीकरण एक राशि U की परिभाषा है जो केवल उस पिंड की अवस्था पर ही निर्भर रहती है न कि इस बात पर कि वह पिंड उस अवस्था में किस प्रकार पहुँचा है। इस राशि को हम पिंड की आंतरिक ऊर्जा कहते हैं।

व्याख्या: रुद्धोष्म प्रक्रम (Adiabatic process) किसी उष्मा गतिक निकाय में किए गए ऐसे प्रक्रम को कहते हैं, जिसमें परिवर्तन के समय निकाय और वाह्य वातावरण के बीच उष्मीय ऊर्जा का आदान-प्रदान न हो। (रुद्धोष्म = रुद्ध + ऊष्म = जिसमें ऊष्मा का आदान-प्रदान अवरुद्ध हो)।

रुद्धोष्म प्रक्रम की परिकल्पना अत्यन्त व्यावहारिक महत्व की है। तेजी से घटित होने वाले अनेकों रासायनिक व भौतिक प्रक्रम रुद्धोष्म प्रक्रम होते हैं या रुद्धोष्म प्रक्रम के सन्निकट होते हैं। किन्तु रुद्धोष्म प्रक्रम के पहले या बाद के प्रक्रम में ऊष्मा का आदान-प्रदान होता है।

व्याख्या: वह ऊष्मागतिकीय प्रक्रमों (या परिवर्तनों) को समतापी प्रक्रम (isothermal process) कहा जाता हैं, जिसके अन्तर्गत निकाय का तापमान अपरिवर्तित रहे (ΔT = 0)। ऐसी स्थिति तब आती है जब निकाय किसी ऊष्मीय भण्डार (heat bath) के सम्पर्क में हो तथा प्रक्रिया इतनी धीमी गति से हो कि हीट-बाथ के साथ ऊष्मा का आदान-प्रदान करते हुए निकाय अपना तापमान लगभग नियत बनाए रख सके।


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