रेडियो सक्रियता से संबंधित प्रश्नोत्तरी (Quiz)

रेडियो सक्रियता से संबंधित ऑब्जेक्टिव प्रश्न एवं उत्तर विस्तृत समाधान के साथ, जो प्रतियोगी परीक्षा जैसे बैंकिंग, SSC, रेलवे, UPSC, State PSC के लिए महत्वपूर्ण है।

रेडियो सक्रियता क्विज

व्याख्या: अंटोइन हेनरी बैकेरल (15 दिसम्बर 1852 - 25 अगस्त 1908) एक फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री, नोबेल पुरस्कार विजेता और मैरी क्यूरी तथा पियरे क्यूरी के साथ रेडियोधर्मिता के अनवेष्क थे, जिसके लिए तीनों को 1903 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।

रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है।

व्याख्या: रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण (alpha particles), बीटा कण (beta particle), गामा किरण (gamma rays) और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं।

व्याख्या: रेडियोसक्रिय परिवर्तन में परमाणु के नाभिक भाग लेता है।

व्याख्या: किसी परमाणु के स्थाई नाभिक में प्रोटॉन की संख्या न्यूट्रॉन की संख्या से कम होती है।

व्याख्या: रेडियोधर्मिता की मात्रा को मापने के लिए मूल इकाई क्यूरी (Ci) थी - जिसे पहले रेडियम -226 के एक ग्राम के अनुरूप परिभाषित किया गया था। 1 क्यूरी = प्रति सेकंड 3.7x1010 रेडियोधर्मी क्षय। इकाइयों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (SI) में क्यूरी को बेकरेल (Bq) से बदल दिया गया है।

व्याख्या: रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण (alpha particles), बीटा कण (beta particle), गामा किरण (gamma rays) और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं।

व्याख्या: अर्नेस्ट रदरफोर्ड (30 अगस्त 1871 - 31 अक्टूबर 1937) प्रसिद्ध रसायनज्ञ तथा भौतिकशास्त्री थे। उन्हें नाभिकीय भौतिकी का जनक माना जाता है। भौतिक रसायन के लगभग सभी प्रयोगों में उपयोग होने वाली अल्फा, बीटा और गामा किरणों के बीच अन्तर बताने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही थे।

व्याख्या: अर्नेस्ट रदरफोर्ड (30 अगस्त 1871 - 31 अक्टूबर 1937) प्रसिद्ध रसायनज्ञ तथा भौतिकशास्त्री थे। उन्हें नाभिकीय भौतिकी का जनक माना जाता है। भौतिक रसायन के लगभग सभी प्रयोगों में उपयोग होने वाली अल्फा, बीटा और गामा किरणों के बीच अन्तर बताने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही थे।

व्याख्या: अल्फा किरण हीलियम नाभिक के समकक्ष होता है। अल्फा (α) कण मुख्यत हीलियम-नाभिक होते हैं। इनकी संरचना दो प्रोटानो व दो न्यूट्रानों के द्वारा होती हैं। रेडियो धर्मिता में ये कण नाभिक से उत्सर्जित होते हैं।

व्याख्या: इस प्रक्रिया को गामा-क्षय (gamma decay) कहा जाता है। अपने ऊँचे ऊर्जा स्तर के कारण, जैविक कोशिका द्वारा सोख लिए जाने पर अत्यंत नुकसान पहुँचा सकती हैं। गामा किरण नाभिक में से अल्फा और बीटा के निकलने से बनता है। यह सबसे अधिक वेधन छमता वाला किरण होता है।

व्याख्या: अल्फा किरणें अल्फा कणों से मिलकर बनी होती है , हीलियम परमाणु के नाभिक को अल्फा कण कहा जाता है अत: अल्फा किरणें हीलियम परमाणु के नाभिक से बनी होती है। अल्फा किरणों का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का चार गुना होता है। इन किरणों पर दो इकाई का धनावेश होता है।

व्याख्या: कुछ रेडियोसक्रिय नाभिकों (जैसे, पोटैशियम-40) से उत्सर्जित होने वाले उच्च-ऊर्जा तथा उच्च-वेग वाले इलेक्ट्रॉन या पॉजिट्रॉनों को बीटा कण (Beta particles) कहते हैं। ये एक प्रकार के आयनकारी विकिरण हैं। इन्हें 'बीटा किरण' भी कहते हैं। रेडियोसक्रिय नाभिक से बीटा कणों का निकलना 'बीटा-क्षय' (beta decay) कहा जाता है। बीटा कणों को ग्रीक-वर्ण बीटा (β) द्वारा निरूपित किया जाता है। बीता-क्षय दो प्रकार का होता है, β− तथा β+, जिसमें क्रमशः इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन निकलते हैं।

व्याख्या: बीटा कण के उत्सर्जन से समभारिक का निर्माण होता है

व्याख्या: β कण के उत्सर्जन से से किसी तत्व का परमाणु क्रमांक बढता है।

व्याख्या: β किरण में ऋणात्मक आवेश होता है।

व्याख्या: एक बीटा पार्टिकल का निर्माण नाभिक के क्षरण से होता है। एक बीटा पार्टिकल उच्च ऊर्जा वाला इलेक्ट्रान ही होता है। बीटा पार्टिकल की ऊर्जा हानि से ही इलेक्ट्रान का निर्माण होता है।

व्याख्या: सामान उर्जा की α किरणों की तुलना में β किरणों में बंधन क्षमता अधिक होती है ,क्योंकि β किरणों का द्रव्यमान नगण्य होने से उनका वेग अधिक होता है

व्याख्या: β किरण में ऋणात्मक आवेश होता है।

व्याख्या: गामा किरण (γ-किरण) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण या फोटॉन हैं, जो परमाणु-नाभिक के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न होता है।

व्याख्या: गामा किरण (γ-किरण) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण या फोटॉन हैं, जो परमाणु-नाभिक के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न होता है। गामा किरणों के फोटॉनों की ऊर्जा अब तक प्रेक्षित अन्य सभी फोटॉनों की ऊर्जा से अधिक होती है। सन 1900 में फ्रांस के भौतिकशास्त्री हेनरी बेकुरल ने इसकी खोज की थी जब वे रेडियम से निकलने वाले विकिरण का अध्ययन कर रहे थे।

व्याख्या: गामा किरण नाभिक में से अल्फा और बीटा के निकलने से बनता है। यह सबसे अधिक वेधन छमता वाला किरण होता है।

व्याख्या: गामा किरणें अति उच्च आवृति की विद्युत चुम्बकीय तरंगे होती है, इनकी भेदन क्षमता अति उच्च होती है, परन्तु आयनन क्षमता नगण्य होती है। ये वैद्युत अथवा चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रभावित नहीं होती।

व्याख्या: अल्फा कण के उत्सर्जन से परमाणु-संख्या में 2 की और द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी आती है। अल्फा कण हीलियम के नाभिक होते हैं, उनकी आयनन क्षमता उच्च होती है और वायु में भेदन क्षमता लगभग 2-3 सेमी होती है।

व्याख्या: सीसा (Z=82) से भारी सभी तत्व अस्थायी होते है और स्थायित्व प्राप्त करने के लिए वे रेडियोएक्टिव किरणे उत्सर्जित करके अपने द्रव्यमान में कमी उत्पन्न करते रहते है। इसीलिए सभी भारी तत्व अनन्तः स्थायी तत्व सीसे में बदल जाते है।

व्याख्या: अल्फा कण के उत्सर्जन से परमाणु-संख्या में 2 की और द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी आती है। अल्फा कण हीलियम के नाभिक होते हैं, उनकी आयनन क्षमता उच्च होती है और वायु में भेदन क्षमता लगभग 2-3 सेमी होती है।

व्याख्या: पोलोनियम एक रासायनिक तत्व है। इसकी खोज सन् 1898 में मेरी क्युरी और प्येर क्युरी ने की थी। यह एक रेडियोएक्टिव तत्व है जिसके मुख्य समस्थानिक का द्रव्यमान 210 है,लेकिन इसके अलावा पोलेनियाम के 10 अन्य समस्थानिक ज्ञात है जो आवर्त सारणी में किसी तत्व के सर्वाधिक समस्थानिक है

व्याख्या: एलुमिनियम एक रासायनिक तत्व है जो धातुरूप में पाया जाता है। यह भूपर्पटी में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली धातु है। एलुमिनियम का एक प्रमुख अयस्क है - बॉक्साईट। यह मुख्य रूप से अलुमिनियम ऑक्साईड, आयरन आक्साईड तथा कुछ अन्य अशुद्धियों से मिलकर बना होता है। बेयर प्रक्रम द्वारा इन अशुद्धियों को दूर कर दिया जाता है जिससे सिर्फ़ अलुमिना (Al2O3) बच जाता है। एलुमिना से विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध एलुमिनियम प्राप्त होता है।

व्याख्या: नाभकीय विखंडन के दौरान श्रृखला अभिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए न्यूट्रॉनो का अन्वेषण करने हेतु बोरॉन का प्रयोग किया जाता है।

व्याख्या: जरकोनियम (Zirconium) एक रासायनिक तत्व है जो आवर्त सारणी के चतुर्थ अंतवर्ती समूह (transition group) का तत्व है। इस तत्व के पाँच स्थिर समस्थानिक पाये जाते हैं, जिनका परमाणु भार 90, 91, 92, 94, 96 है। कुछ अन्य रेडियधर्मी समस्थानिक जैसे परमाणु भार 89 भी कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं।

व्याख्या: β कण नाभिक से उत्सर्जित तीव्रगामी इलेक्ट्रॉन होते हैं। β कण के उत्सर्जन से नाभिक की द्रव्यमान संख्या तो अपरिवर्तित रहती है, परन्तु परमाणु क्रमांक में 1 की वृद्धि हो जाती है। इसकी आयनन क्षमता अल्फ़ा कणों से 1/100 गुना कम होती है, परन्तु भेदन क्षमता 100 गुना अधिक होती है। ये प्रतिदीप्ती उत्पन्न कर सकती है तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित भी कर सकती है।

व्याख्या: अल्फा कण के उत्सर्जन से परमाणु-संख्या में 2 की और द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी आती है। अल्फा कण हीलियम के नाभिक होते हैं, उनकी आयनन क्षमता उच्च होती है और वायु में भेदन क्षमता लगभग 2-3 सेमी होती है।

व्याख्या: यदि किसी रेडियोधर्मी पदार्थ की मात्रा को दुगुना कर दिया जाय तो रेडियोधर्मी क्षरण की दर अपरिवर्तित रहती है

व्याख्या: किसी रेडियोधर्मी पदार्थ की आधी मात्रा क्षय होने में लगा समय अर्द्ध आयुकाल कहलाता है। यह काल द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। अत: यदि 1 ग्राम पदार्थ 70 दिन में आधा रह जाता है तो अगले 70 दिन में आधा रह जाएगा। अत: कुल समय 140 दिन लगेगा।

व्याख्या: एक रेडियोधर्मी पदार्थ की अर्ध आयु चार महीने है ,एस पदार्थ के तीन चौथाई भाग को क्षय होने में समय आठ महीने लगेगा।

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