वैदिक काल से जुड़े जानकारी एवं महत्वपूर्ण तथ्य - Shine Study Point

वैदिक काल (Vedic period)

Vedic Period

सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को वैदिक काल अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता हैं। इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है। आर्य का शाब्दिक अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट आदि हैं। मैक्समूलर ने आर्यो का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना हैं।

  • वैदिक काल को दो भागों में विभक्त किया गया है।
    1. ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई. पू.)
    2. उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई. पू.)

वैदिक साहित्य

वैदिक साहित्य के अन्तर्गत वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद), ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद आते हैं।

वेद

वैदिक साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण स्थान वेदों का है। वेद संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है जिसका अर्थ है 'जानना' या 'ज्ञान प्राप्त करना'। वेदों का संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन को माना जाता हैं। इसलिए इन्हे वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता हैं।

  • प्रथम तीन वेद को वेदत्रयी कहा जाता है। वेदत्रयी के अन्तर्गत 'ऋग्वेद', 'यजुर्वेद' एवं 'सामवेद' आते हैं।
  • वेदों की संख्या चार हैं-
    1. ऋग्वेद
    2. सामवेद
    3. यजुर्वेद
    4. अथर्ववेद

ऋग्वेद

ऋग्वेद सबसे प्राचीन एवं सबसे विशाल वेद है। ऋचाओं से युक्त होने के कारण इसे ऋग्वेद कहा गया है।

  • ऋग्वेद में कुल 10 मंडल हैं। जिनमें 2 से 7 तक के मण्डल को सबसे प्राचीन माना जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि प्रथम एवं दशम मण्डल बाद में जोड़े गए।
  • ऋग्वेद में प्रत्येक मंडल अनेक सूक्तों में विभक्त हैं। ऋग्वेद में मूल रूप से 1017 सूक्त हैं। लेकिन बाद में इसमें 11 सूक्त परिशिष्ट रूप में जोड़े गये हैं। इस तरह ऋग्वेद में कुल सूक्तों की संख्या 1028 हो जाती हैं।
  • ऋग्वेद में कुल मंत्रों की संख्या 10,580 है। इसमें 118 मंत्र दोहराये गये हैं। मूल मंत्रों की संख्या 10,462 है।
  • 'असतो मा सद्गमय' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया हैं।

यजुर्वेद

यजु: अर्थात् यज्ञ से सम्बन्धित होने के कारण इसे यजुर्वेद कहा गया। यजुर्वेद की दो शाखायें हैं-

  1. कृष्ण यजुर्वेद
  2. शुक्ल यजुर्वेद

सामवेद

साम अर्थात् गान से सम्बन्धित होने के कारण इसका नाम सामवेद पड़ा। यज्ञ के समय देवताओं का स्तुति करते हुए सामवेद की ऋचाओं का गान किया जाता था।

  • सामवेद में कुल 1810 मंत्र हैं।
  • सामवेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है।

अथर्ववेद

अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने किया था। इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोना, रोग निवारक, शत्रु दमन मेल-मिलाप, विवाह, आर्शीवाद सूचक मंत्र दिये गये हैं।

  • अथर्ववेद में कुल 20 अध्याय हैं। इसमें 731 सूक्त एवं 5987 मंत्र हैं।
वेदऋत्विजकार्य
ऋग्वेदहोतृदेव स्तुति करना
यजुर्वेदअध्वुर्ययज्ञ कराना
सामवेदउद्गाताऋचाओं का गायन करने वाला
अथर्ववेदब्रह्मनिरीक्षणकर्ता (यज्ञों का)

ब्राह्मण ग्रंथ

दिक मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा गया है। वही ब्रह्म के विस्तारित रुप को ब्राह्मण कहा गया है। एक प्रकार से यह वेदों के व्याख्या ग्रथ के रूप में भी हैं। इसीलिए प्रत्येक वेद के लिए अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ रचे गये।

यजुर्वेद का महत्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण है, जिसकी रचना याज्ञवाल्क्य ऋषि ने की है। १०० अध्याय होने के कारण इसका नाम शतपथ ब्राह्मण पड़ा। इसमें जल प्रलय की कथा, पुरुरवा-उर्वशी आख्यान तथा अश्विनों द्वारा च्यवन ऋषि को यौवन दान की कथा है।

सामवेद का महत्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रंथ पंचविश ब्राह्मण है, जिसकी रचना ताण्ड्य ऋषि ने की है। इसी में व्रात्य स्रोम यज्ञ का वर्णन है। इस यज्ञ के द्वारा अनार्यों को आर्य समूह में सम्मिलित किया जाता था।

सामवेद का दूसरा ब्राह्मण ग्रन्थ षट्विश ब्राह्मण है, जिसकी रचना अद्भुत ऋषि ने की है। इसीलिए इसे अद्भुत ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है। इसमें अकाल भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति के बारे में बताया गया है।

अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रंथ गोपथ ब्राह्मण है, जिसकी रचना गोपथ ऋषि ने की है। इसमें ओउम एवं गायत्री का महत्व बताया गया है। यह शतपथ ब्राह्मण से प्रभावित है।

आरण्यक

आरण्यकों में आध्यात्मिक एवं दार्शनिक बातों का उल्लेख किया गया है। आरण्यकों में 'ऐतरेय आरण्यक', 'शांखायन्त आरण्यक', 'बृहदारण्यक', 'मैत्रायणी उपनिषद् आरण्यक' तथा 'तवलकार आरण्यक' मुख्य हैं।

वेदों से सम्बंधित आरण्यक

  • ऋग्वेद से सम्बंधित आरण्यक- ऐतरेय आरण्यक, शांखायन आरण्यक या कौषीतकि आरण्यक हैं।
  • यजुर्वेद से सम्बंधित आरण्यक- बृहदारण्यक, मैत्रायणी, तैत्तिरीयारण्यक हैं।
  • सामवेद से सम्बंधित आरण्यक- जैमनीयोपनिषद या तवलकार आरण्यक हैं।
  • अथर्ववेद से सम्बंधित कोई आरण्यक नहीं हैं।

उपनिषद

विशुद्ध रीति से आध्यात्मिक चिन्तन को ही प्रधानता दी गयी है और फल सम्बन्धी कर्मों के दृढ़ानुराग को शिथिल करना सुझाया गया है, उपनिषद कहलाता है।

उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है। उपनिषद वैदिक साहित्य के अन्तिम भाग तथा सारभूत सिद्धान्तों के प्रतिपादक हैं, इसलिए इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है।

  • उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। यद्यपि कुछ ही उपनिषद उपलब्ध हैं।
  • कठोपनिषद में यम-नचिकेता संवाद मिलता है। इसका सम्बन्ध भी कृष्ण यजुर्वेद से है।
  • वृहदारण्यक उपनिषद सबसे प्राचीन उपनिषद है। इसी में राजा जनक के दरबार में याज्ञवाल्क्य एवं गार्गी के बीच हुए शास्त्रार्थ का वर्णन है।
  • छान्दोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है। इसका सम्बन्ध सामवेद से है।
  • सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।

वेद से सम्बन्धित उपनिषद

  • ऋग्वेद से सम्बन्धित उपनिषद- ऐतरेयोपनिषद हैं।
  • यजुर्वेद से सम्बन्धित उपनिषद- बृहदारण्यकोपनिषद हैं।
  • शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित उपनिषद- ईशावास्योपनिषद हैं।
  • कृष्ण यजुर्वेद से सम्बन्धित उपनिषद- तैत्तिरीयोपनिषद , कठोपनिषद, श्वेताश्वतरोपनिषद, मैत्रायणी उपनिषद हैं।
  • सामवेद से सम्बन्धित उपनिषद- वाष्कल उपनिषद, छान्दोग्य उपनिषद, केनोपनिषद हैं।
  • अथर्ववेद से सम्बन्धित उपनिषद- माण्डूक्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद, मुण्डकोपनिषद हैं।

वेदांग

वेदों को जानने एवं समझने के लिए वेदांगों की रचना की गई। वेदांग सूत्र के रूप में हैं। इनकी संख्या छः है-

  1. शिक्षा- वैदिक शब्दों के शुद्ध उच्चारण हेतु शिक्षा की रचना की गई।
  2. कल्प- विधि-विधानों का वर्णन है इनकी संख्या 3 है-
    1. श्रौत सूत्र- यज्ञ सम्बन्धी नियम
    2. गृह्य सूत्र- लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के विधि - विधान
    3. धर्म सूत्र- राजा-प्रजा के अधिकार एवं कर्त्तव्य
  3. व्याकरण- भाषा को वैज्ञानिक रूप देने के लिए पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी
  4. निरुक्त- वैदिक शब्दों की उत्पत्ति एवं अर्थ
  5. छंद- वैदिक मंत्रों के लक्षण एवं विशेषतायें
  6. ज्योतिष- ब्रह्मण्ड एवं नक्षत्रों की जानकारी

स्मृतियां

ये हिन्दु धर्म की कानूनी ग्रंथ हैं। मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति है। अन्य स्मृतियों में याज्ञवाल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, वृहस्पति स्मृति, कात्यायन स्मृति एवं विष्णु स्मृति महत्वपूर्ण है।

उपवेद

उपवेद की कुल संख्या 4 हैं-

  1. धनुर्वेद- इसमें युद्ध सम्बन्धी जानकारी है। धनुर्वेद ऋग्वेद से सम्बंधित हैं।
  2. शिल्पवेद- इसमें शिल्प व्यवसाय की जानकारी है। शिल्पवेद यजुर्वेद से सम्बंधित हैं।
  3. गन्धर्ववेद- इसमें संगीत आदि की जानकारी है। गन्धर्ववेद सामवेद से सम्बंधित हैं।
  4. आयुर्वेद- इसमें चिकित्सा सम्बन्धी जानकारी है। आयुर्वेद अथर्ववेद से सम्बंधित हैं।

ऋगवेद में उल्लिखित शब्द

शब्दसंख्याशब्दसंख्याशब्दसंख्याशब्दसंख्या
इन्द्र250 बारअग्नि200 बारवरुण30 बारजन275 बार
विश171 बारपिता335 बारमाता234 बारवर्ण23 बार
ग्राम13 बारब्राह्मण15 बारक्षत्रिय9 बारवैश्य1 बार
शूद्र1 बारराष्ट्र10 बारसमा8 बारसमिति9 बार
विदथ122 बारगंगा1 बारयमुना3 बारराजा1 बार
सोम देवता144 बारकृषि24 बारगण46 बारविष्णु100 बार
रूद्र3 बारबृहस्पति11 बारपृथ्वी1 बार-------

वैदिक काल में होने वाले सोलह संस्कार

  • अन्नप्राशन संस्कार- इसमें शिशु को छठे माह में अन्न खिलाया जाता है।
  • चूड़ाकर्म संस्कार- शिशु के तीसरे से आठवें वर्ष के बीच कभी भी मुंडन कराया जाता था।
  • कर्णभेद संस्कार- रोगों से बचने हेतु आभूषण धारण करने के उद्देश्य से किया जाता था।
  • विद्यारंभ संस्कार- 5वे वर्ष में बच्चों को अक्षर ज्ञान कराया जाता था।
  • उपनयन संस्कार- इस संस्कार के पश्चात बालक द्विज हो जाता था। इस संस्कार के बाद बच्चे को संयमी जीवन व्यतीत करना पड़ता था। बच्चा इसके बाद शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता था।
  • वेदारंभ संस्कार- वेद अध्ययन करने के लिए किया जाने वाला संस्कार
  • केशांत संस्कार- 16 वर्ष हो जाने पर प्रथम बार बाल कटाना।
  • गर्भाधान संस्कार- संतान उत्पन्न करने हेतु पुरुष एवं स्त्री द्वारा की जाने वाली क्रिया।
  • पुंसवन संस्कार- प्राप्ति के लिए मंत्त्रोच्चारण
  • सीमानतोनयन संस्कार- गर्भवती स्त्री के गर्भ की रक्षा हेतु किए जाने वाला संस्कार।
  • जातकर्म संस्कार- बच्चे के जन्म के पश्चात पिता अपने शिशु को ध्रत या मधु चटाता था बच्चे की दीर्घायु के लिए प्रार्थना की जाती थी।
  • नामकरण संस्कार- शिशु का नाम रखना।
  • निष्क्रमण संस्कार- बच्चे के घर से पहली बार निकलने के अवसर पर किया जाता था।
  • समावर्तन संस्कार- विद्याध्ययन समाप्त कर घर लौटने पर किया जाता था यह ब्रह्मचर्य आश्रम की समाप्ति का सूचक था।
  • विवाह संस्कार- वर वधु के परिणय सूत्र में बंधने के समय किया जाने वाला संस्कार।
  • अंत्येष्टि संस्कार- निधन के बाद होने वाला संस्कार।

ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख नदियां

प्राचीन नामआधुनिक नामप्राचीन नामआधुनिक नाम
कुभाकाबुलसुवस्तुस्वात
क्रूमुकुर्रमगोमतीगोमल
वितस्ताझेलमअस्किनीचेनाव
पुरूष्णीरावीविपाशाव्यास
शतुद्रीसतलजसदानीरागंडक
दृषद्वतीघग्धरसुषोमासोहन
मरुदवृद्धामरूबर्मन-----------

वैदिक कालीन देवता

  • मरुत- आंधी तूफान के देवता
  • पर्जन्य- वर्षा के देवता
  • सरस्वती- नदी देवी (बाद में विद्या की देवी)
  • पूषन- पशुओं के देवता (उत्तर वैदिक काल में शूद्रों के देवता)
  • अरण्यानी- जंगल की देवी
  • यम- मृत्यु के देवता
  • मित्र- शपथ एवं प्रतिज्ञा के देवता
  • आश्विन- चिकित्सा के देवता
  • सूर्य- जीवन देने वाला (भुवन चक्षु)
  • त्वष्क्षा- धातुओं के देवता
  • आर्ष- विवाह और संधि के देवता
  • विवस्तान- देवताओं जनक
  • सोम- वनस्पति के देवता

वैदिक काल से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य

  1. जिस काल में ऋग्वेद की रचना हुई, ऋग्वेदिक काल के नाम से जाना जाता है।
  2. जिस काल में ऋग्वेद के अतिरिक्त अन्य वेदों की रचना हुई उसे वैदिक काल कहते हैं।
  3. ऋग्वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था कार्य के आधार पर था।
  4. भारत में आर्यों ने आकर वैदिक सभ्यता की नींव डाली थी।
  5. भारत में आने वाले आर्य इंडो आर्य कहलाते हैं।
  6. आर्यों का मुख्य निवास स्थान आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षेत्र और यूरेशिया माना जाता है।
  7. आर्य भारत में सबसे पहले सप्त सिन्धु प्रदेश में बसे थे।
  8. आर्य 1500 ई. पू. के आस-पास भारत आये।
  9. आर्य अनार्यों को 'दस्यु' और 'दास' कहते थे।
  10. आर्य के आहार अन्न और मांस था।
  11. आर्यों के समय की मुख्य पैदावार धान, गेहूँ, जौ था।
  12. आर्यों की भाषा संस्कृत था।
  13. आर्यों के प्रमुख देवता इन्द्र थे।
  14. आर्य प्रावमत शक्तियों की (वर्षा के देवता-इन्द्र, वायु के देवता-मरूत, प्रकाश के देवता-सूर्य) पूजा करते थे।
  15. आर्य दार्शनिक ऋषि कहलाते थे।
  16. आर्यों के समय घोड़ा का सर्वाधिक महत्व था।
  17. आर्य सरस्वती नदी को ज्यादा महत्व देता था।
  18. भारत में आर्य लोग स्थायी रूप से सबसे पहले पंजाब आकर बसे।
  19. आर्यों के मनोरंजन के साधन रथदौड़, घुड़दौड़, आखेट, संगीत, चौपड़, जुआ आदि था।
  20. आर्यों ने लोहा की खोज की ।
  21. आर्यों के समय समाज में चार वर्ण (ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) था।
  22. सबसे प्रथम प्राचीन ऋग्वेद है।
  23. सामवेद का संकलन ऋग्वेद पर आधारित हैं।
  24. वेद चार (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) हैं।
  25. ऋग्वेद के सूक्तों की रचना पंजाब प्रदेश में हुई थी।
  26. ऋग्वेद के दो से सात तक के मंडल सबसे प्राचीन हैं। इन्हें वंश मंडल भी कहा जाता है।
  27. ऋग्वेद के 10वें मण्डल के पुरुषसूक्त में चतुर्वर्णो का उल्लेख मिलता हैं।
  28. गायत्री मंत्र की रचना ऋग्वेद के तीसरे मंडल में हुई है। इसके दृष्टा विश्वामित्र हैं।
  29. दाशराज युद्ध परुषणी नदी के तट पर लड़ा गया था।
  30. ऋग्वेद में वर्णित अनु, द्रुह्य, तुर्वश, यदु एवं पुरु कबीलों को पंचजन कहा गया है।
  31. ऋग्वेद में नियमित सेना का उल्लेख नहीं मिलता। इस काल में सेना को पृत/पृतना कहा गया था।
  32. बोगजकुई अभिलेख में "हित्ती" एवं "मितानी" नामक दो कबीलों के बीच हुई संधि का उल्लेख है।
  33. वैदिक साहित्य में सप्त सैंधव प्रदेश को देवकृतयोनि अर्थात् देवताओं द्वारा निर्मित क्षेत्र कहा गया है।
  34. बाल गंगाधर तिलक ने द आर्कटिक होम ऑफ द आर्यन्स नामक पुस्तक लिखी। इन्होंने आर्यों का मूल स्थान उत्तरी ध्रुव बताया।
  35. ऋग्वैदिक काल में शिक्षा का स्वरूप मौखिक था।
  36. ऋग्वैदिक विधार्थियों की तुलना बरसाती मेढक से की गई है।
  37. मनुस्‍मृति सबसे प्राचीनतम है।
  38. 'आदि काव्‍य' की संज्ञा रामायण को दी जाती है।
  39. प्राचीनतम पुराण मत्‍स्‍य पुराण है
  40. ऋग्‍वेद में सबसे पवित्र नदी सरस्‍वती नदी को माना गया है।
  41. वैदिक समाज की आधारभूत इकाई काल/कुटुम्‍ब थी।
  42. ऋग्‍वैदिक युग की प्राचीनतम संस्‍था विदथ थी।
  43. ब्राम्‍हण ग्रंथो में सर्वाधिक प्राचीन शतपथ ब्राम्‍हण है।
  44. 'मनुस्‍मृति' मुख्‍यतया सम्‍बन्धित समाज व्‍यवस्‍था से है।
  45. 'अवेस्‍ता' और 'ऋग्‍वेद' में समानता है। 'अवेस्‍ता' ईरान से से सम्‍बन्धित है।
  46. ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलाती है, जो ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ है।
  47. ऋग्वैदिक काल में गाय के लिए युद्ध होते थे, इसलिए युद्ध को गविष्ठि कहा जाता था।
  48. गोत्र शब्द की उत्पत्ति गोष्ठ शब्द से हुई है।
  49. गोष्ठ का अर्थ उस स्थान से है जहां सामूहिक रूप में गाय रहती थीं।
  50. गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है।
  51. व्यापार के लिए दूर-दूर तक जाने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था।
  52. ऋग्वेद में सभा की 8 बार, समिति की 9 बार तथा विद्थ की 22 बार चर्चा की गई है।
  53. ऋग्वैदिक काल में राजा को जनस्य गोपा, विश्पति, गणपति एवं गोपति कहा जाता था।
  54. ऋग्वैदिक काल में प्रशासन में सबसे प्रमुख पुरोहित था।
  55. ऋगवेद में मुद्रा के रूप में निष्क और शतमान की चर्चा मिलाती है।
  56. ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख 24 बार हुआ हैं।
  57. ऋग्वैदिक आर्यों को पाँच ऋतुओ का ज्ञान था।
  58. ऋग्वैदिक काल के सबसे महत्वपूर्ण देवता को 'पुरन्दर' कहा जाता था।
  59. 800 ई.पू. के आस-पास गंगा यमुना दोआब में अतरंजीखेडा से पहली बार कृषि से सम्बन्धित लौह उपकरण के साक्ष्य मिले है।
  60. ऐतरेय ब्राह्मण में चारों वर्णों के कर्तव्यो का वर्णन मिलता है।
  61. उत्तरवैदिक ग्रन्थों में श्याम अयस (लोहे) की चर्चा मिलती है।
  62. सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं का वर्णन मिलता है।
  63. सामवेद को भारतीय संगीतशास्त्र पर प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है।
  64. गृह्य सूत्र में सोलह प्रकार के संस्कार एवं आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है।
  65. राज्याभिषेक ब्राह्मण क्षत्रीय एवं वैश्य मिलकर 17 प्रकार के जल से करते थे।
  66. शुल्व सूत्र में यज्ञवेदी के निर्माण की तकनीक मिलती है।
Previous Post Next Post
If you find any error or want to give any suggestion, please write to us via Feedback form.